Azadi Ka Amrit Mahotsav पूरा देश देश इन दिनों आज़ादी की 75वीं सालगिरह के जश्न में डूबा हुआ है. अमृत महोत्सव के इस ख़ास मौके पर उन क्रांतिकारियों की शहादत को भी नमन किया जा रहा है, जिनके संघर्ष और बलिदान की वजह से आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं. ऐसे ही क्रांतिकारी बलिदानियों में एक नाम हैं चंद्रशेखर आज़ाद का, जिन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबवाते हुए संगम नगरी प्रयागराज में जिस जगह शहादत पाई थी, वह आज शहीद स्थल के रूप में जाना जाता है. यहां अमर शहीद आज़ाद की आदमकद प्रतिमा पर फूल चढ़ाने और आज़ाद की शहादत को नमन करने के लिए रोज़ाना हज़ारों की संख्या में लोग आते हैं.
शहादत दिलाने वाली पिस्टल देखकर सिहर उठती है धड़कन
इसी आज़ाद पार्क में स्थित इलाहाबाद म्यूज़ियम में आज़ाद को शहादत दिलाने वाली उनकी पिस्टल व मुठभेड़ के वक़्त की कुछेक तस्वीरें भी रखी गईं हैं. म्यूज़ियम में चंद्रशेखर आज़ाद के नाम पर एक गैलरी भी तैयार कराई जा रही है. आज़ादी की 75वीं सालगिरह के मौके पर प्रयागराज में चंद्रशेखर आज़ाद से जुड़े स्थलों पर ख़ास सजावट की जा रही है, यहां रोज़ाना कई विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. नई पीढ़ी को आज़ाद समेत तमाम दूसरे बलिदानियों द्वारा चलाए गए आंदोलनों से रूबरू कराया जा रहा है. इन आयोजनों के ज़रिये लोगों में देशभक्ति की भावना पैदा की जा रही है.
भुलाए नहीं भूलता 27 फरवरी का वो दिन
चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म वैसे तो मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था, लेकिन उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा संगम नगरी प्रयागराज में बीता था. चंद्रशेखर आज़ाद शुरू से ही महात्मा गांधी के विचारों से अलग क्रांतिकारी विचारधारा के थे. अपने कई क्रांतिकारी आन्दोलनों के चलते उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था. कहा जाता है कि आज़ाद को पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने सात सौ लोगों की स्पेशल टीम तैनात कर रखी थी. 27 फरवरी 1931 को पंडित नेहरू से प्रयागराज के आनंद भवन में मुलाकात करने के बाद चंद्रशेखर आज़ाद कुछ क्रांतिकारियों के साथ शहर के कंपनी बाग़ में बैठक कर आगे के आंदोलन की रणनीति तय कर रहे थे, तभी उनकी मुखबिरी हो गई. सटीक मुखबिरी के चलते अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था. अपने साथियों को पीछे के रास्ते से सुरक्षित निकालने के लिए चंद्रशेखर आज़ाद करीब बत्तीस मिनट तक अंग्रेजों से मुकाबला करते रहे.
जब अपनी ही कनपटी पर दाग दी बुमतुल बुखारा की आखिरी गोली
उन्होंने अपनी पिस्टल जिसे वह बुमतुल बुखारा कहते थे, उससे अकेले ही कई अंग्रेजों को मैदान छोड़ने पर मजबूर कर दिया. मुकाबला करते-करते जब उनकी पिस्टल में सिर्फ एक गोली बची तो उन्होंने अंग्रेजों के सामने घुटने टेकने के बजाय खुद को ही ख़त्म करने का फैसला किया. उन्होंने वहीं नारा लगाया कि- आज़ाद हमेशा आज़ाद था और आज़ाद ही रहेगा. उन्होंने अपनी बुमतुल बुखारा से अपनी कनपटी पर गोली मारकर वीरगति हासिल कर ली. सिर्फ 25 साल की उम्र में ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
हजारों लोगों में देशभक्ति की भावना जगा रहा आजाद पार्क
देश की आज़ादी में चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत का बहुत अहम योगदान है. चंद्रशेखर आज़ाद ने प्रयागराज के कंपनी बाग़ में जिस जगह शहादत पाई थी, उसे अब आज़ाद पार्क का नाम दे दिया गया है. शहादत स्थल पर आज़ाद की बड़ी से मूर्ति लगाई गई है. आज़ाद का शहादत स्थल प्रयागराज के प्रमुख स्थलों में एक है. यहां रोज़ाना हज़ारों की संख्या में देश के कोने-कोने से सैलानी आकर आज़ाद की शहादत को सलाम करते हैं. आज़ाद पार्क कैम्पस में ही इलाहाबाद म्यूज़ियम भी है. इस म्यूज़ियम में आज़ाद से जुड़ी कई सामग्रियों को धरोहर के तौर पर संजोकर रखा गया है. आज़ाद की पिस्टल यहां शोकेस में रखी गई है. शहादत के बाद की आज़ाद की ब्लैक एंड व्हाइट फोटो भी यहां लगी हुई है. म्यूज़ियम में बड़ी संख्या में रोज़ाना दर्शक आकर आज़ाद से जुड़ी सामाग्रियों को देखकर उनके जीवन व संघर्षों से रूबरू होते हैं.
आजाद की वीरता की गाथा कहता इलाहाबाद म्यूजियम
इलाहाबाद म्यूज़ियम के प्रभारी अधिकारी डॉ. राजेश मिश्र के मुताबिक़ उनके यहां चंद्रशेखर आज़ाद के नाम पर एक वीथिका तैयार कराई जा रही है. आज़ाद गैलरी के नाम से बन रही यह वीथिका लगभग बनकर तैयार है और अब इसके लोकार्पण का इंतजार है. डॉ. राजेश मिश्र के मुताबिक़ आज़ाद गैलरी में आने वाले को चंद्रशेखर आज़ाद के पूरे जीवन और उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के बारे में जानकारी मिल सकेगी. अमृत महोत्सव के ख़ास मौके पर आज़ाद पार्क के शहीद स्थल पर आने वाले लोगों का साफ़ कहना है कि आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान की वजह से ही देश आज खुली हवा में सांस ले पा रहा है.
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