आवारा पशुओं को लेकर रियलिटी चेक, परेशान किसानों ने खोली सरकार के दावों की पोल
एबीपी गंगा की टीम ने उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं को लेकर रियलिटी चेक किया है। जहां परेशान किसानों ने सरकार के दावों की पोल खोलकर रख दी है। उन्होंने बताया कि कैसे आवारा पुश उनके लिए सिरदर्द बने हुए हैं और किस तरह उन्हें रातों में जागकर अपने खेतों की रखवाली करनी पड़ रही है।
लखनऊ, एबीपी गंगा। उत्तर प्रदेश में गोवंश के संरक्षण के तमाम वादों की हकीकत की पोल खोलने के बाद अब एबीपी गंगा आपको गोवंशों से मुसीबत की अलग तस्वीर दिखाने जा रहा है।प्रदेश के किसान इन सर्द रातों का इम्तेहान देने को मजबूर हैं, क्योंकि उनके खजाने पर किसी और की निगाह गड़ी है। जिस वजह से गिरते पारे के बीच भी उन्हें खेतों की रखवाली करनी पड़ रही है। ये रखवाली पूरी रात चलती है। यहां बात हम आवारा पशुओं की कर रहे हैं, जो किसानों की फसल के दुश्मन बने हुए हैं और इनसे बचने की जुगत में किसान सर्द रातों में चौकीदारी करने को मजबूर हैं।
आवारा पशुओं को लेकर रियलिटी चेक
कानपुर एबीपी गंगा ने कई जिलों के गांवों की पड़ताल की है। ऐसे ही कानपुर देहात के गांव मदारपुर पहुंचे हमारे सहयोगी प्रभात अवस्थी। जब हमारे सहयोगी ने किसानों से पूछा आखिर इस सर्दी में जब लोग रात में अपने घरों में रजाई में सो रहे हैं, आप खेतों की रखवाली में खड़े हैं। इस पर उन्होंने जवाब दिया, आवारा पशु खेत चर जाते हैं, इससे हम बहुत परेशान हैं। एक अन्य किसान ने कहा कि हम खेतों में इतना पैसा लगाते हैं और आवारा पशु फसल को बर्बाद कर रहे हैं।
कानपुर देहात ही नहीं, बल्कि प्रदेश के दूसरे शहरों की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है। हर जगह किसानों की हालत एक जैसी है। आवारा पशुओं से राहत का कोई उपाय कारगर साबित नहीं हो रहा है। गौवंश का संरक्षण और आवारा पशुओं से फसलों के बचाव के दावे बेमानी साबित हो रहे हैं। उन्नाव की तस्वीर भी कुछ यही बयां कर रही है। यहां के तहसील ऐरा भदियार गांव में जाकर हमारे सहयोगी आशीष गौड़ ने जाना किसानों का हाल
उन्नाव प्रदेश सरकार मवेशियों के लेकर लाख दावे कर रही है, जिले में कई गौशालाएं बनाई गई हैं, लेकिन हकीकत क्या है, इसकी बानगी खुद उन्नाव के किसान दे रहे हैं। किसानों का कहना है कि हम आवारा मवेशियों से बेहद परेशान है। हम आठ बजे खाना खाकर घर से निकलने हैं और 12-1 बजे तक अपने खेतों की रखवाली आवारा पशुओं से करते रहते हैं। किसानों का गुस्सा प्रशासन की तरफ देखने को मिला। उन्होंने कहा कि अगर प्रशासन की तरफ से हमें मदद मिलती है, तो हमें इतनी समस्या नहीं झेलनी पड़ती। किसान का कहना है हम रात भर जागते हैं, जिस वक्त नींद आ जाती है। आवारा पशु पूरे फसल बर्बाद कर देते हैं।
कानपुर देहात, उन्नाव की इस तस्वीर के बाद अब आपको दिखाते हैं बरेली की तस्वीर। जहां हमारे सहयोगी अनूप मिश्रा ने सर्द रात में गांव बेनीपुर का जायजा लिया। जहां बड़ी तादाद में किसान अलाव के सामने हाथ सेंकते मिले और खेतों की रखवाली करते भी
बरेली बरेली जिले के बेनीपुर गांव में किसान अलाग को घेरे हुए हाथों में डंडा लिए दिखाई दिए। ये डंडाे आवारा पशुओं से अपने खेत बचाने के लिए हैं। कड़ाके की ठंड में इन किसानों की रात खेतों में ही गुजरती है, क्योंकि एक नींद की झपकी, इनकी खेतों पर की गई मेहनत पर पानी फेर देती है। किसानों का कहना है कि इस शीतलहर में हमारी पूरी रात ऐसे ही गुजरती है, ताकि हमारी फसलों को नुकसान न हो।
रूहेलखंड और अवध की बेल्ट के बाद एबीपी गंगा की टीम ने हरित प्रदेश के इलाकों का भी जायजा लिया।आगरा में हमारे सहयोगी नितिन उपाध्याय ने फतेहाबाद रोड स्थित गांव गढ़ी वृंदावन का दौरा किया। यहां किसान जगते मिले, देर रात ना सोने का एक मात्र कारण आवारा जानवरों से अपने खेत की देखभाल करना था।
आगरा किसानों का कहना है कि सिर्फ दावे किए गए कि गौशालाएं बन गईं, फीते काटे गए, लेकिन कहीं कोई गौशाला नहीं बनी है। उन्होंने बताया कि सारी रात हम खेत की रखवाली करते हैं। गाय, नंदी और नील गाय हमारी फसलों को बर्बाद कर रही है। हमने खेतों में तार भी लगा दिए, इसके बावजूद जानवर हमारी फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। किसानों का कहना है कि कभी तो हम रोएंगे। किसानों ने बताया कि लोहे की तार पर हमने काफी खर्च किया, ताकि आवारा पशुओं से अपने खेतों को बचा सकें। किसानों ने बताया कि टाटा स्टील के एक बंडल तारों की कीमत करीब 28 सौ रुपये है। एक बीघा खेत में अगर तार लगाते हैं तो करीब 30-35 सौ रुपये खर्च होंगे। किसानों का कहना है कि ये एक अतिरिक्त खर्चा है।
आगरा के बाद इटावा से 12 किलोमीटर की दूरी पर ब्लॉक बसरेहर के अशानंदपुर , टीकरपुर एवं अकबरपुर गाँव मे किसान लाठी डंडों के साथ अपनी फसलों की रखवाली आवारा पशुओं से कर रहा है, तो कहीं 7 से 8 लोग टोली बनाकर रात में टार्च लाठी डंडे लेकर गश्त कर रहे है, वैसे खतरा इन किसानों को भी है। उधर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को भी पाले के बीच परीक्षा देनी पड़ रही है। जहां मेरठ के किसानों की रात भी दूसरे जिलों के किसानों की तरह खेत में कट रही है।
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