प्रयागराज, एबीपी गंगा। पिछले हफ्ते हुए सनसनीखेज खुलासे के बाद से दुनिया का सबसे बड़ा एजूकेशनल बोर्ड कहे जाने वाले यूपी बोर्ड की साख दांव पर हैं। बोर्ड ने स्टूडेंट्स और उनके अभिभावकों से नंबर बढ़ाने के बदले पैसे मांगे जाने की डिमांड किये जाने की बात सामने आने पर पुलिस में शिकायत कर पहले तो तेजी दिखाई, लेकिन अब किसी जांच के बिना ही अपने कर्मचारियों को क्लीनचिट देकर उनका बचाव किये जाने का फैसला सवालों के घेरे में आ गया है। बोर्ड के ज़िम्मेदार लोग न तो अपने कर्मचारियों की मिलीभगत मानने को तैयार हैं और न ही विभागीय जांच कराने को। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि बाहरी लोगों को स्टूडेंट्स के रोल नंबर, उनके सब्जेक्ट्स और पैरेंट्स के मोबाइल नंबर जैसे गोपनीय रिकॉर्ड कैसे हासिल हो गए।


लाखों में है छात्रों की संख्या


यूपी बोर्ड को यूं ही दुनिया का सबसे बड़ा एजूकेशनल बोर्ड नहीं कहा जाता। इस साल हुई बोर्ड की दसवीं और बारहवीं के इम्तहान में अठावन लाख से ज़्यादा स्टूडेंट्स शामिल हुए हैं। पिछले सालों में तो यह संख्या पैंसठ लाख का आंकड़ा भी पार कर चुकी है। इम्तहान देने वाले स्टूडेंट्स की संख्या लाखों में है, लेकिन बोर्ड की साख तलवार की धार पर है।


पैसों के बदले नंबर


दरअसल, कुछ लोग पिछले तीन-चार हफ़्तों से तमाम स्टूडेंट्स और उनके अभिभावकों को फोन कर छात्रों के फेल होने या नंबर कम होने का दावा करते थे। खुद को बोर्ड ऑफिस का कर्मचारी बताकर ये लोग पास करने या नंबर बढ़ाने के बदले मोटी रकम की डिमांड कर रहे थे। पैसों के लिए ये कई बैंक के खाते देते थे और सामने आए बिना ही डिजिटल तरीके से रूपये ट्रांसफर करने की बात कहते थे।


नहीं हुई विभागीय जांच 


इस बारे में बोर्ड में शिकायतों का अंबार लग गया तो बोर्ड की सचिव नीना श्रीवास्तव ने सूबे के डीजीपी ओपी सिंह को चिठ्ठी लिखकर उनसे कार्रवाई का अनुरोध किया। इतना ही नहीं चिट्ठी में उन बारह मोबाइल नम्बर्स का जिक भी किया गया, जिनसे स्टूडेंट्स व उनके अभिभावकों को फोन किया जा रहा था। उम्मीद की जा रही थी कि पहल करने के बाद बोर्ड न सिर्फ इस मामले में एफआईआर कराएगा, बल्कि विभागीय जांच कराकर अपने कर्मचारियों की भूमिका का भी पता लगाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।


कर्मचारी गलत काम नहीं कर सकते


बोर्ड की सचिव ने साफ़ कर दिया है कि वह कोई विभागीय जांच नहीं कराएंगी। इतना ही नहीं किसी विभागीय जांच के बिना ही वह खुलकर अपने मातहतों को क्लीनचिट देकर उनका बचाव भी कर रही हैं। बोर्ड सचिव नीना श्रीवास्तव का तो यह भी कहना है कि उनके कर्मचारी कोई गलत काम कर ही नहीं सकते हैं।


पहले भी लग चुके हैं आरोप 


वैसे यह पहला मौका नहीं है, जब यूपी बोर्ड पर पैसे लेकर पास किये जाने के गंभीर आरोप लगे हैं। साल 2011 की यूपी टीईटी परीक्षा के नतीजों में गड़बड़ी के मामले में बोर्ड के कई अफसरों को जेल जाना पड़ा था, जबकि तत्कालीन सचिव प्रभा त्रिपाठी की गिरफ्तारी के लिए एसटीएफ लगातार छापेमारी कर रही थी। इसी विवाद के दौरान हर्ट अटैक से प्रभा त्रिपाठी की मौत हो गई थी।


सामने आना चाहिए सच


कर्मचारियों की भूमिका की जांच नहीं कराए जाने और क्लीनचिट देकर उनका बचाव किये जाने के बोर्ड के फैसले से शिक्षा से जुड़े जानकार भी हैरत में हैं। उनका भी मानना है कि बोर्ड को खुद आगे आकर अपनी साख बचाने की कोशिश करनी चाहिए थी। शिक्षाविदों के साथ ही बोर्ड का इम्तहान देने वाले स्टूडेंट्स के अभिभावक भी दूध का दूध और पानी का पानी किये जाने की मांग कर रहे हैं।


खड़े हो रहे हैं सवाल 


यूपी बोर्ड को दुनिया का सबसे बड़ा एजूकेशनल बोर्ड कहा जाता है। यहां दसवीं और बारहवीं क्लास में हर साल तकरीबन साठ लाख बच्चे इम्तहान देते हैं। इस बार भी अठावन लाख से ज़्यादा स्टूडेंट्स ने इम्तहान के लिए आवेदन किया था। ऐसे में बोर्ड की साख बरकरार रखने के लिए अफसरों को खुद ही सख्त कदम उठाने थे, लेकिन ज़िम्मेदार लोगों को बैकफुट पर आना खुद में कई सवाल खड़े कर रहा है।