सियासी दुनिया में रिश्ते कब बने और किस बात पर बिगड़ जाएं कोई नहीं जानता. चुनावी परिणाम तक सियासी दोस्तों को दूर और तेवर दिखाने वालों को पास ले आते हैं. शायद इसी का नाम सियासत है. हालांकि सियासी दुनिया में भी कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो सियासत और उसके परिणाम से इतर बनते बिगड़ते रहे हैं. कुछ ऐसा ही रिश्ता रहा है अमिताभ बच्चन और गांधी परिवार के बीच. 


2024 के चुनाव परिणाम आने के बाद जब पहली बार सत्र शुरू हुआ तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी एवं समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन के बीच हंसते मुस्कुराते हुई मुलाकात की तस्वीर का सुर्खियों में रही थी. पहली नजर में इसे सामान्य और शिष्टाचार की मुलाकात माना जा सकता है. लेकिन सियासत में मुलाकातों के मायने कब सामान्य माने गए हैं? कुछ ऐसा ही हो रहा मौजूदा समय में. 


मानसून और बजट सत्र के आखिरी दिन जब राज्यसभा में सपा सांसद जया बच्चन ने राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की 'टोन' पर आपत्ति जताई उसके बाद हंगामा शुरू हो गया और समूचा विपक्ष वाक आउट कर गया. जब विपक्षी नेता सदन के बाहर आए और मीडिया से बात की तब राज्यसभा सांसद जया बच्चन ने कहा कि सभापति उन्हें डांटने वाले कौन होते हैं? सदन से बाहर आने के बाद जया बच्चन ने कहा कि वह हमारे अन्नदाता तो हैं नहीं और कितना सहन करें? विपक्ष की सभी महिला सांसद इस मुद्दे पर एक साथ आ गई हैं. यहां तक कि कांग्रेस संसदीय दल की चेयरपर्सन सोनिया गांधी भी जया बच्चन के साथ खड़ी दिखाई दीं.




पुरानी रही है परिवार की दोस्ती
दरअसल, सोनिया गांधी का जया बच्चन के साथ खड़ा होना काफी चर्चा का विषय बन गया है. एक जमाने में गांधी और बच्चन परिवार में काफी अच्छी दोस्ती हुआ करती थी. कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन और भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बहुत अच्छी दोस्त थीं.


इन रिपोर्ट्स में बताया गया है कि इमरजेंसी के बाद दोनों के रिश्तों में जरूर कुछ दूरियां बढ़ी थीं. तब कथित तौर पर तेजी बच्चन राज्यसभा जाना चाहती थीं लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया. हालांकि इसका असर इंदिरा गांधी के बेटे, भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन की दोस्ती पर नहीं दिखा. दोनों बचपन से काफी अच्छे दोस्त थे.


प्रियंका गांधी ने किया था याद
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे राजीव गांधी के बेटे और रायबरेली से सांसद राहुल गांधी और बेटी, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी बच्चन परिवार को खूब मानते थे. इसकी झलक प्रियंका गांधी एक सोशल मीडिया में दिखती है. साल 2020 में प्रियंका ने लिखा था, 'तेजी बच्चन बड़ी हनुमान भक्त थीं. अक्सर मंगल को दिल्ली के हनुमान मंदिर में मुझे ले जाकर मेरे लिए कांच की चूड़ियां खरीदतीं और हनुमानजी की कथा सुनातीं. उनसे ही मैंने हनुमान चालीसा के कई छंद सीखे. आज वह नहीं रहीं मगर उनकी भक्ति का प्रतीक ह्रदय में बसा है.'



उन्होंने एक अन्य पोस्ट में लिखा, 'हरिवंशराय बच्चन जी जिन्हें हम अंकल बच्चन के नाम से जानते थे, इलाहाबाद के एक महान पुत्र थे. एक वक्त था जब मेरे पिता की मृत्यु के बाद बच्चन जी की रचनाओं को मैं देर-देर तक पढ़ती थी. उनके शब्दों से मेरे मन को शांति मिलती थी, इसके लिए मैं उनके प्रति आजीवन आभारी रहूंगी.'



कुछ किताबों के जरिए लेखकों ने यहां तक दावा किया है कि जब सोनिया गांधी, राजीव गांधी से शादी करने के बाद पहली बार भारत आईं तो वह पहले कुछ दिनों तक बच्चन परिवार के साथ ही रहीं थीं. भूतपूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद जब चुनाव हुआ तो राजीव गांधी ने अपने मित्र अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद से टिकट दिया था.




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इस वजह के बढ़ी दूरियां
तब अमिताभ बच्चन ने इलाहाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से हेमवंती नंदन बहुगुणा को करीब दो लाख वोटों के अंतर से चुनाव में हराया था. इस चुनाव में अमिताभ बच्चन को करीब 68 फीसदी वोट मिले थे. इसके बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने. लेकिन बाद में उनपर बोफोर्स घोटाले के आरोप लगे. इसमें अमिताभ बच्चन का भी नाम उछला.


जानकारों की मानें तो खुद पर लगे आरोपों से आहत अमिताभ बच्चन ने सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया था और उसके बाद राजनीति से दूरी बना ली. फिर यहीं से गांधी और बच्चन परिवार के बीच दूरियां बढ़ने लगी. बाद में जया बच्चन समाजवादी पार्टी में शामिल हो गईं और तब अमर सिंह ने उनका खूब साथ दिया था.


जया बच्चन उसके बाद सपा से राज्यसभा सांसद चुनी गईं थीं. जया बच्चन पहली बार 2004 में राज्यसभा सांसद बनी थीं. उसके बाद 2006 में वह फिर से राज्यसभा के चुनी गई थीं. बता दें कि वह वर्तमान में भी सपा से ही राज्यसभा सांसद हैं.


यह देखना दिलचस्प होगा कि सोनिया गांधी और जया बच्चन की यह मुलाकात वास्तव में सिर्फ शिष्टाचार और संसद में विपक्ष की एकजुट मर्यादा के लिए ही है या यह बातचीत पारिवारिक रिश्तों को और सुदृढ़ करेगी.