वीरता की मिसाल थे मार्शल अर्जन सिंह, 1965 के युद्ध में पाकिस्तान को चटाई थी धूल
एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह की सबसे खास बात ये थी कि वो बातचीत से ही किसी को अपना मुरीद बना लेते थे। दुनिया में बहुत कम वायुसेना अध्यक्ष होंगे जिन्होंने मात्र 40 साल की उम्र में ये पद संभाला हो और सिर्फ 45 साल की उम्र में 'रिटायर' हो गए हों।
नई दिल्ली, एबीपी गंगा। भारतीय वायु सेना ने सोमवार को मार्शल अर्जन सिंह को उनकी दूसरी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी। दुनिया में बहुत कम वायुसेना अध्यक्ष होंगे जिन्होंने मात्र 40 साल की उम्र में ये पद संभाला हो और सिर्फ 45 साल की उम्र में 'रिटायर' हो गए हों। अर्जन सिंह ने 1964 से 1969 तक वायु सेना प्रमुख के रूप में कार्य किया। भारतीय वायुसेना की तरफ से कहा गया है कि मार्शल अर्जन सिंह की पेशेवर क्षमता और देश के प्रति उनकी सेवा अद्भुत थी वो एक सच्चे नेता और प्रतीक थे।
We pay tribute to Marshal of the IAF on his Death Anniversary. #MIAF was known for his Professionalism, Leadership & Strategic Vision. His dynamic personality, professional competence & honesty of purpose in his service to the country, truly sets him apart as a leader & an icon. pic.twitter.com/vaNkGTUTGc
— Indian Air Force (@IAF_MCC) September 16, 2019
1965 के युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाने वाले मार्शल अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1919 को पंजाब में हुआ था। 1965 के युद्ध में पाकिस्तान को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था और इसकी प्रमुख वजह थे अर्जन सिंह। असाधारण नेतृत्व क्षमता के धनी अर्जन सिंह भारतीय वायुसेना के इकलौते अफसर थे जिनको फील्ड मार्शल के बरारब फाइव स्टार रैंक मिली थी। तो चलिए आपको अर्जन सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताते हैं...
अर्जन सिंह छात्र जीवन से होनहार थे और उन्होंने डेढ़ मील तैराकी प्रतियोगिता में फ्री स्टाइल तैराकी में ऑल इंडिया रिकॉर्ड बनाया था। पायलट प्रशिक्षण के लिए 1938 में उन्हें रॉयल एयर फोर्स कॉलेज, क्रेनवेल के लिए चुना गया। उस समय उनकी उम्र महज 19 साल थी। भारतीय कैडेट्स के अपने बैच में उन्होंने कोर्स में टॉप किया। कॉलेज के दिनों में वह तैराकी, एथलेटिक्स और हॉकी टीमों के उप कप्तान भी रहे।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अर्जन सिंह ने बर्मा के अभियान में असाधारण नेतृत्व कौशल और साहस का प्रदर्शन किया। इसके लिए 1944 में उनको प्रतिष्ठित ब्रिटिश पुरस्कार डिस्टिंगाइश्ड फ्लाइंग क्रॉस (डीएफसी) से सम्मानित किया गया। जब अर्जन सिंह 1964 में वायुसेना अध्यक्ष बने तो वो बहुत युवा थे। 1949 में अर्जन सिंह ने ऑपरेशनल कमान के एयर ऑफिसर कमांडिंग (एओसी) के तौर पर प्रभार संभाला। बाद में ऑपरेशनल कमान का नाम पश्चिमी वायु कमान हो गया।
अर्जन सिंह को 1949 से 1952 तक और 1957 से 1961 तक सबसे ज्यादा समय तक ऑपरेशनल कमान के एओसी रहने का खास स्थान हासिल है। एओसी इन सी से प्रमोट होकर वह एयर वाइस मार्शल के पद पर पहुंचे। 1962 के युद्ध के अंत तक उनको डेप्युटी चीफ ऑफ एयर स्टाफ और 1963 में वाइस चीफ ऑफ एयर स्टाफ नियुक्त किया गया।
भारत आए मिग 21
चीन से लड़ाई हारने के बाद भारतीय वायुसेना विस्तार और आधुनिकीकरण की योजना बना रही थी। उस समय भारत के पास मुश्किल से 20 स्कवार्डन रहे होंगे। अधिकतर विमान पुराने पड़ चुके थे। भारत के पहले मिग 21 तब आए जब अर्जन सिंह एयर चीफ बन रहे थे।
पद्म विभूषण से सम्मानित वायुसेना अध्यक्ष के तौर पर अर्जन सिंह ने 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। उन्हें 1965 के युद्ध में उनके असाधारण नेतृत्व कौशल के लिए पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया। 16 जुलाई, 1969 को अर्जन सिंह वायुसेना से सेवानिवृत्त हुए थे।बेहतरीन नेतृत्व क्षमता
एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह की सबसे खास बात ये थी कि वो बातचीत से ही किसी को अपना मुरीद बना लेते थे। लंबी कद कांठी, विनम्रता, बात करने का अद्भुत सलीका और बेहतरीन नेतृत्व क्षमता की मिसाल शायद ही किसी और में देखने को मिले। साल 2002 में भारत सरकार ने एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह को 'मार्शल ऑफ द एयरफोर्स' नियुक्त किया। मार्शल का वही स्थान होता है जो थल सेना में 'फील्ड मार्शल' का होता है।
60 अलग-अलग तरह के विमानों में भरी उड़ान
अपने करियर में अर्जन सिंह ने 60 अलग-अलग तरह के विमानों में उड़ान भरी। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के पहले इस्तेमाल होने वाले बाईप्लेन से लेकर सुपरसोनिक मिग-21 तक की उड़ान भरी। उन्होंने पहली बार वायुसेना अध्यक्ष के तौर पर अकेले मिग-21 की उड़ान भरी थी।
कई पदों पर किया कार्य
1971 में अर्जन सिंह को स्विटरजलैंड में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया। तीन साल बाद उनको केन्या में देश का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया। 1978 में उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य के तौर पर भी अपनी सेवा दी। बाद में वह इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी, नई दिल्ली के चेयरमैन बने और 1983 तक पद पर रहे। 1989 में उनको दिल्ली का उपराज्यपाल बनाया गया।
गोल्फ से था प्यार
भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत्त होने के बाद भी वह भूतपूर्व वायु सैनिकों के कल्याण के लिए समर्पित रहे। अपने जीवन के अंतिम दिनों तक अर्जन सिंह गोल्फ खेलते रहे। एक वक्त ऐसा भी आया जब वो चल नहीं पाते थे तब वो अपनी व्हील चेयर पर बैठकर लोगों को गोल्फ खेलते हुए देखा करते थे।