Retired IPS Dinesh Sharma Suicide: लखनऊ में पूर्व आईपीएस अधिकारी दिनेश शर्मा ने गोली मारकर आत्महत्या (Suicide) कर ली. उन्होंने अपने सुसाइड नोट में डिप्रेशन की बात कही है, जिसके बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. ये पहला ऐसा मामला नहीं है इससे पहले भी आईएएस, आईपीएस या अन्य अधिकारी ने नौकरी में रहते या रिटायर होने के बाद आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठाने की खबरें आती रही है. दिनेश शर्मा के आत्महत्या करने के बाद एक बार फिर पुलिस अधिकारियों से लेकर मनोवैज्ञानिक भी कई तरह की चर्चा कर रहे हैं. 


रिटायर्ड डीजी सूर्य कुमार शुक्ला ने कहा कि दिनेश शर्मा की खुदकुशी की खबर सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य और अफसोस हुआ. रिटायर होने के बाद वो रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर्स वेलफेयर एसोसिएशन से जुड़े रहे. उनकी व उनके परिवार की समस्याओं को हल करने में मदद करते थे. अक्सर हम लोगों की मीटिंग होती थी. विश्वास नहीं हो रहा कि उन जैसा सक्रिय व्यक्ति भी आत्महत्या कर सकता है, लेकिन फिलहाल जो चीजें सुनने में आ रही कि उन्हें कोई लाइलाज बीमारी हो गई थी उनको बहुत दर्द होता था, परेशान हो जाते थे इसलिए उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस घटना से सीख लेनी चाहिए. 


पूर्व आईपीएस की खुदकुशी से सब हैरान


सूर्य कुमार शुक्ला ने कहा, इंसान को चिंता तब ज्यादा होती जब वह खाली महसूस करता है. पुलिस सक्रिय विभाग है तो इनके जो भी कर्मचारी अधिकारी रिटायर हो उनको कुछ ना कुछ काम दिया जाना चाहिए. जिससे ये व्यस्त रहे और अवसाद से बचे रहे. दिनेश शर्मा से कई बार और भेंट होती थी, कभी ऐसा लगा नहीं कि वो आत्महत्या कर सकते हैं. पुलिस का बहुत ही व्यस्त जीवन होता है 24 घंटे की ड्यूटी होती है और एकाएक सेवानिवृत्त होने के बाद हो सकता है उन्होंने कुछ खाली महसूस किया हो इसकी वजह से डिप्रेशन और ज्यादा हुआ हो. 


डिप्रेशन बन रहा है आत्महत्या की वजह


हालांकि रिटायर्ड डीजीपी एमसी द्विवेदी का कहना है कि ऐसा नहीं है कि अधिकारियों में सुसाइड करने वालों का प्रतिशत अधिक हो, क्योंकि बाद में भी अच्छी लाइफ रहती है, लेकिन कुछ विशेष कारण हो सकते हैं, जैसे कोई एक गंभीर बीमारी, घर में दुर्घटना जिसकी वजह से आदमी डिप्रेशन में चला जाए. दिनेश शर्मा बहुत एक्टिव थे रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर्स की एसोसिएशन के महासचिव थे. 


जानें क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक


मनोवैज्ञानिक डॉ. जागृति शुक्ला के मुताबिक पिछले कुछ सालों में हम देख रहे हैं कि सुसाइड रेट बहुत बढ़ गया है. वरिष्ठ नागरिकों के सुसाइड का रेट भी बढ़ा है. उम्र बढ़ने के साथ कई शारीरिक और मानसिक बदलाव आते हैं. ओल्ड एज में हमारा स्टैमिना कम होता है. कई बार लोग उसको भी स्वीकार नहीं कर पाते. जब आप आईपीएस होते तो आपका एक अलग स्टेटस होता तमाम लोग मिलते हैं, रिटायर के बाद सब बदल जाता है. तब आपको पहचान की समस्या होना एक बहुत बड़ा कारण है. व्यक्ति खुद से ही चीजों में जूझता रहता है, ऐसा नहीं कि चीजें दिखती नहीं.


इसके कई लक्षण होते हैं, अगर सुसाइड करता है तो उसकी लाइफ में पीछे जाकर देखें तो पता चलता है कि कई चीजों को हम इग्नोर कर जाते हैं, लेकिन कुछ इंडिकेशन जरूर मिलते हैं. जैसे अपने ही बारे में शिकायत करना कि मेरा स्वास्थ्य ऐसा है या फिर गुस्सा आना. हम उसे डील करने की जगह उन पर ही इरिटेट होने लगते हैं कि जब देखो अपनी बीमारी की बात करते रहते हैं, लेकिन इसमें उनकी गलती नहीं है क्योंकि मेंटल हेल्थ से रिलेटेड इश्यू है. ऐसे में हमे चाहिए उनसे बात करें और जरूरत हो तो प्रोफेशनल हेल्प लेनी चाहिए. 


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