बीते दौर में आम आदमी को पर्दे पर उतारने वाले Hrishikesh Mukherjee आज भी क्यो आते हैं याद
अपने दौर के मशहूर डॉयरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी की आज जयंती है। सत्यम, चुपके-चुपके, अनुपमा, आनंद, अभिमान, गुड्डी, गोलमाल, मझली दीदी, चैताली, नमक हराम जैसी कई सुपरहिट फिल्मों से बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई है।
एंटरटेनमेंट डेस्क। ऋषिकेश मुखर्जी जो सिर्फ एक डायरेक्टर ही नहीं बल्कि कैमरामैन, एडिटर और राइटर भी रह चुके हैं। जब भी भारतीय सिनेमा में बेहतरीन निर्देशकों की बात होती है तो सबसे पहले नाम ऋषिकेश मुखर्जी का जरूर आता है। ऋषिकेश मुखर्जी शुरुआती सिनेमा के उन निर्देशकों में शामिल थे जिन्होंने लीग से हट कर फिल्में बनाईं और साथ ही अपनी फिल्में बनाने वो कंटेंट पर काफी वर्क करते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी फिल्मों का सब्जेक्ट ऐसा होता था कि जल्दी कोई ऐसे सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने का रिस्क भी नहीं उठा पाता था। चो चलिए इस शख्सियत के बारे में जुड़े कई किस्से हम आपको अपनी इस रिपोर्ट में बताते है।
ऋषिकेश मुखर्जी ने एक के बाद एक कई सुपरहिट फिल्में दीं है। आनंद, बावर्ची, गोलमाल, मुसाफिर, चुपके चुपके, गुड्डी, खूबसूरत और अभिमान जैसी फिल्में बनाईं। ऐसा माना जाता है की ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों में हल्के फुल्के मजाक के साथ सीख भी मिलती है। इनके बारे में एख मश्हूर किस्सा हैं, एक बार इन्होंने फिल्म के सेट पर धर्मेन्द्र और अमिताभ के ज्यादा सवाल करने पर बड़ी जोर की फटकार लगाई थी।
हिन्दी सिनेमा के बेताज बादशाह ऋषिकेश मुखर्जी ने हिंदी सिनेमा को एक अलग पहचान दिलाई। जिनके बारे में कहा जाता है कि उनकी फिल्मों में असली हिंदुस्तान की झलक देखने को मिलती थी। ऋषिकेश मुखर्जी फिल्म इंडस्ट्री में 50 से ज्यादा फिल्में देने वाले पहले निर्देशक थे, जिन्होंने 4 से ज्यादा दर्शकों तक अपनी फिल्मों से लोगों का मनोरंजन किया। ऋषि दा के बारे में बताया जाता है कि 50 के दशक में वो जब बंबई आए थे। तो वो अकेले नहीं थे बल्कि बिमल रॉय के साथ एक पूरा हुजूम आया। बिमल रॉय की फिल्मों में उनका कॉन्ट्रीब्यूशन बतौर एडिटर हुआ करता था और आज ऋषिकेश मुखर्जी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के सबसे अव्वल दर्जे के फिल्म निर्देशक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने घर के छोटे मुद्दों से लेकर समाज के संवेदनशील मुद्दों पर फिल्में बनाईं हैं। उनकी दूरदर्शी सोच उनकी फिल्मों में साफ नजर आती थी। तभी तो वो गोलमाल में भवानी प्रसाद के रूप में उत्पल दत्त के किरदार को मुकम्मल कर पाए और आनंद में हंसते मुस्कुराते एक बीमार शख्स का किरदार भी उन्होंने दिखाया जिसे राजेश खन्ना ने प्ले किया था।
कॉमेडी फिल्मों के जरिए किस तरह लोगों को सीख दी जा सकती है ऐसा ऋषिकेश मुखर्जी से पहले किसी ने नहीं किया। ये ऋषि दा का ऑरिजनल स्टाइल था। ऋषिकेश मुखर्जी की पहचान एक ऐसे निर्देशक की थी जो किसी भी एक्टर को शूट किए जाने वाले सींस की जानकारी नहीं देते थे, किसी को भी ये नहीं पता होता था कि अगले सीन में उसे क्या रोल मिलने वाला है। ऋषिकेश मुखर्जी को स्टार मेकर के नाम से भी जाना जाता था। फिल्म इंडस्ट्री को धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, अमोल पालेकर जैसे सितारे देने वाले ऋषिकेष मुखर्जी का जन्म 30 सितंबर, 1922 को कोलकाता में हुआ था।
1957 में मुसाफिर फिल्म से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी। 1998 में झूठ बोले कौआ काटे नाम से एक फिल्म बनाई थी। जो उनके करियर की आखरी फिल्म साबित हुई। वहीं 27 अगस्त 2006 को मुंबई में उनका निधन हो गया। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को कई बेहतरीन फिल्में दि जिसमें मुसाफिर उनकी पहली फिल्म थी। ये फिल्म इसलिए भी खास थी क्योंकि इस को कई अलग अलग कहानियों को लेकर बनाया गया था। वहीं उन्होंने अपनी फिल्म आशिर्वाद से ऐसा धमाल मचाया कि, ये फिल्म अशोक कुमार के करियर की सबसे बेहतरीन फिल्म बन गई।
ऋषिकेश मुखर्जी को लेकर फिल्म रंग बिरंगी के दौरान हुई एक घटना आज भी काफी फेमस है। फिल्म रंग -बिरंगी की शूटिंग के दौरान एक बड़ा स्टार फिल्म सेट पर पहुंचने में लेट हो गए और लेट- लतीफ ऋषिकेश को पसंद नहीं थी। जब वो स्टार सेट पर आया तब कुछ नहीं बोले, लेकिन जब स्टार मेकअप करने के बाद शॉट के लिए तैयार हुआ तो ऋषिकेश दा ने कहा आज शूटिंग नहीं होगी।
ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म आनंद ने राजेश खन्ना को सुपरस्टार बना दिया था। ऋषिकेष मुखर्जी की कई एसी फिल्में थीं जो रिश्तों की अहमियत को समझाती थी और सामाजिक मुद्दों को भी झलकाती थीं। उनके इसी बेमिसाल काम की वजह से भारत सरकार ने उन्हें 1999 में दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया। 2001 में पद्म विभूषण अवार्ड से नवाजा गया। 2001 में ही उन्हें नेशनल अवार्ड भी दिया गया और फिल्मफेयर के 8 अवार्ड भी उनकी झोली में आए। ऐसा कहा जाता है कि सुपरस्टार्स उन्हें टीचर भी कहते थे क्योंकि वो सीख देने के साथ साथ फटकार भी लगा देते थे। आज के दौर के निर्देशक भी उन्हें आज अपना आइडियल मानते हैं और उनकी फिल्में उनसे प्रेरित होते हैं।