Jayant Chaudhary on Haryana Elections 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं. सभी दल पूरी ताकत के साथ हरियाणा की रणभूमि में सियासी अस्त्र और शस्त्र लेकर उतरे हैं, लेकिन हरियाणा के सियासी मैदान से एक बड़े योद्धा गायब हैं. हम बात कर रहें हैं राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय राज्यमंत्री जयंत चौधरी की. आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि जयंत चौधरी ने हरियाणा में हैंडपंप गाड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए, चर्चा ये भी है कहीं किसान आंदोलन से दूरी भी तो हरियाणा चुनाव ना लड़ने की मजबूरी बन गया हो.



जयंत चौधरी का जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला चौंकाने वाला था. कुछ इसी तरह से हरियाणा विधानसभा चुनाव में एक भी सीट पर चुनाव ना लड़ना भी बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है. सवाल है कि 750 किलोमीटर दूर जम्मू कश्मीर में 12 सीट पर चुनाव लड़ना आरएलडी की बड़ी रणनीति का हिस्सा है और हरियाणा में चुनाव ना लड़ना भी बीजेपी की एक बड़ी रणनीति है. अब सवाल उठ रहें हैं कि जयंत चौधरी के सामने क्या कोई बड़ी मजबूरी थी या फिर ये फैसला गठबंधन के लिए जरूरी था. इसको लेकर तमाम सवाल जरूर खड़े हो रहें हैं और हरियाणा की कुरुक्षेत्र से जयंत से दूरी लोगों को अखर भी रही है.


गठबंधन में कई बातें देखनी पड़ती हैं- त्रिलोक त्यागी


सियासत में हर बात के पीछे की बड़ी वजह होती है और हरियाणा चुनाव में हैंडपंप से पानी ना निकालना भी किसी वजह की तरफ इशारा कर रहा है. इस बारे में हमने जब आरएलडी के राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी से बात की तो उन्होंने कहा कि बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी थी, अकेले नहीं. हम बीजेपी के साथ गठबंधन में हैं तो तमाम बातें देखनी पड़ती हैं. बीजेपी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया और हम इस फैसले के साथ खड़े हो गए, जम्मू कश्मीर में हमने भी अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया तो बीजेपी हमारे फैसले के साथ खड़ी हो गई. हम जम्मू कश्मीर में 12 सीटों पर चुनाव पूरी ताकत से लड़ रहें हैं.


हमारे नेता बड़ा सोच समझकर फैसला लेते हैं- राजेंद्र शर्मा


अब सियासी बात आई तो दूर तलक जाएगी ही. हरियाणा चुनाव में एक भी सीट पर आरएलडी ने प्रत्याशी नहीं उतारा, इसके पीछे क्या सोच, क्या मजबूरी और क्या कारण है जरूरी. इस पर हमने जब आरएलडी के राष्ट्रीय महासचिव राजेंद्र शर्मा से बात की तो उन्होंने कहा कि हमारे नेता जयंत चौधरी सोच समझकर ही फैसला लेते हैं. उनका ये बड़ा फैसला है और उसके पीछे की सोच भी बड़ी है. सियासत में हर कदम के मायने होते हैं. हम बीजेपी के साथ गठबंधन में हैं तो चुनाव लड़ने से ज्यादा हमें चुनाव लड़वाने पर फोकस करना पड़ा. शायद यही वजह है कि हम हरियाणा के मैदान में नहीं उतरे हैं और बीजेपी सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही है.


बीजेपी से सौदेबाजी की स्थिति में नहीं जयंत चौधरी


हरियाणा चुनाव का संग्राम जीतने को सभी दलों ने रणभेरी बजा रखी है, लेकिन जयंत का हैंडपंप मैदान से गायब है. इस बारे में हमने जब वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेंद्र शर्मा से बात की तो बोले जयंत चौधरी बीजेपी से सौदेबाजी की स्थिति में नहीं हैं अब. बीजेपी का अपना अनुशासन है और गठबंधन धर्म निभाते हुए जयंत को भी ये अनुशासन मानना पड़ेगा. दूसरी बड़ी बात ये है किसान आंदोलन में जयंत के मजबूती से शामिल ना होने से किसान भी नाराज हैं और वहां के जाट भी. ऐसे में जयंत इस माहौल में ऐसा कदम नहीं उठाना चाहते जो भविष्य की राजनीति पर असर डाले, इसलिए बीजेपी के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले के वो साथ हो गए. जयंत चौधरी ने इसीलिए हरियाणा में हैंडपंप गाड़ने से दूरी बना ली और प्रत्याशी नहीं उतारे.


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