नोएडा, एबीपी गंगा। कभी केंद्र और यूपी की राजनीति में अपनी मजबूत पैठ बनाने वाली राष्ट्रीय लोक दल आज अपनी सियासी विरासत को बचाने की कोशिश में जुटी है। देश के प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह जैसे कद्दावर नेता के बेटे अजित सिंह की पार्टी का वर्चस्व खत्म होता जा रहा है। कहना गलत नहीं होगा कि 2019 के चुनाव में रालोद की साख दांव पर लगी है। इस चुनाव के नतीजे रालोद का भविष्य तय करेंगे।
सियासी विरासत बचा पाएगी रालोद!
एक समय ऐसा भी था जब पश्चिम यूपी में रालोद का डंका बजता था, लेकिन अब समय पूरी तरह बदल चुका है। रालोद अध्यक्ष अजित सिंह के पास अपने पिता और किसान नेता स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह की विरासत को बचाने की चुनौती है। अजित सिंह 1999 की अटल बिहारी वाजपेयी और 2009 की यूपीए सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे। यूपी में साल 2002 के विधानसभा चुनाव में रालोद ने अच्छा प्रदर्शन किया था। भाजपा से गठबंधन कर रालोद ने 14 सीटें जीती थी। वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ चुनावी मैदान में उतरने के बाद रालोद के खाते में पांच सीटें आई थी। 2012 में कांग्रेस के साथ विधानसभा चुनाव लड़ने पर कांग्रेस नौ सीटों पर सिमट गई। 2017 के चुनाव में तो रालोद सिर्फ छपरौली सीट ही बचा पाई थी, जबकि बीते लोकसभा चुनाव में वो खाता तक ना खोल सकी। खुद पार्टी अध्यक्ष अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी अपनी सीट नहीं बचा पाए थे।
सपा-बसपा के साथ गठबंधन दिलाएगा संजीवनी!
कभी पश्चिम यूपी रालोद का गढ़ हुआ करता था, लेकिन अब यहां रालोद की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। हालत यह हो गई है कि सपा-बसपा के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी रालोद सिर्फ तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है। रालोद की इस सियासी चाल को राजनीतिक पंडित अजित सिंह का पैंतरा बता रहे हैं।
अजगर से मजगर की राजनीति
स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह की राजनीति अहीर, जाट, गुर्जर, राजपूत (अजगर) जातियों के ईर्द-गिर्द चलती थी, लेकिन अजित सिंह ने इसे मुस्लिम, जाट, गुर्जर और राजपूत गठजोड़ (मजगर) में बदल दिया। अब देखना होगा कि रालोद के लिए ये फैक्टर कितना कारगर साबित होता है।