रुड़की: इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अंग्रेजी शासन काल से रुड़की शिक्षानगरी अपनी पहचान बनाए हुए है. वहीं, रुड़की के सती मोहल्ले के रहने वाले कारीगर अरशद और एहसान अपने पुश्तैनी काम को आगे बढ़ा रहे हैं. अंग्रेजों के जमाने का करीब 200 साल पुराना एक पंखा आज भी उनके पास मौजूद है जो कि कैरोसिन तेल या स्प्रिट से चलता था. उन्होंने इस पंखे को आज भी संजोए रखा है, जिसकी डिमांड देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी है.
भाप से चलता है पंखा
उन्होंने बताया कि, यह पंखा कैरोसिन से चलता है, इसमें भाप बनती है, उसके बाद आम पंखे की तरह चलता है. जो लाइट नहीं होने पर आसानी से काम आ सकता है. कारीगर अरशद का कहना है कि, उनका पुश्तैनी काम है, वो महीने में 20 से 30 पंखे तैयार करते हैं और इनमें अलग अलग तरह मॉडल बनाकर तैयार करते हैं, जिनकी कीमत बाजार में 15 से 20 हजार रुपये तक मिल जाती है, लेकिन विदेशों में इसकी कीमत लाखों में पहुंच जाती है.
शोपीस की तरह प्रयोग करते हैं
वहीं, इस पंखे को माया नगरी मुंबई के अलावा अन्य शहरों में पसंद किया जा रहा है और संपन्न परिवार के लोग कैरोसिन के पंखे को घरों में शोपीस के रूप में भी रखते हैं, इसलिए लोग यूनिक चीजों को रखना अधिक पसंद करते हैं. वहीं, कारीगर अरशद अपनी लगातार मेहनत कर इन यूनीक आइटम को संजोकर रखे हैं ताकि शिक्षानगरी में आगे तक पहचान बनी रही.
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