हौंसला न हारेंगे...! पति की मौत के बाद ई-रिक्शे से बच्चों की जिंदगी संवार रही रुड़की की ये महिला
Uttarakhand Woman Story: रुड़की की एक महिला ने समाज की रूढ़ीवादी परंपराओं को आईना दिखाते हुए एक मिसाल कायम की है. वह कठित परिस्थितियों से पार पाते हुए अपने पैरों पर खड़ी हैं.
Roorkee News Today: उत्तराखंड के रुड़की की नई बस्ती में रहने वाली एक महिला की कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है. वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान महिला के पति की मौत हो गई, लेकिन मुश्किल परिस्थितियों में उन्होंने हार नहीं मानीं और परिवार की जिम्मेदारी उठाई.
यह महिला अब ई-रिक्शा चलाकर अपने तीन बच्चों का पालन-पोषण कर रही है और समाज के लिए एक मिसाल बन गई है. इससे पहले उन्होंने दूसरों के घरों में काम करने सहित कई अन्य मेहनतकश काम किए, इसके बाद उन्होंने रूढ़ीवादी परंपराओं से परे अलग रास्ता चुना और महिलाओं के प्रेरण स्रोत बन गई.
कोराना में पति की मौत
इस साहसी महिला की जिंदगी तब बदल गई जब कोरोना महामारी के दौरान उसके पति की हार्ट अटैक से मौत हो गई. पति के अचानक मौत हो जाने की वजह से वह पूरी तरह से टूट गईं, लेकिन अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए उन्होंने मजबूती से समाज में खड़े होने का फैसला किया. पति की मौत के बाद उन पर घर की पूरी जिम्मेदारी आ गई.
परिवार का भरण पोषण करने के लिए पहले उन्होंने घर-घर जाकर काम किया, लेकिन इससे घर का गुजारा चलना मुश्किल हो गया था. इसके बाद उन्होंने चाय का ठेला लगाने की कोशिश की, लेकिन समाज के तानों से परेशान होकर उन्हें यह काम भी बंद करना पड़ा. इसके बाद इस जुझारू महिला ने ई-रिक्शा चलाने का फैसला किया और अब वह उसी के सहारे अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं.
ई-रिक्शा बना सहारा
ई-रिक्शा चलाना आसान काम नहीं था, खासकर तब जब समाज की रूढ़िवादी सोच महिलाओं को ऐसे कामों को करते हुए नहीं देखना चाहती है. इस महिला ने समाज की परवाह न करते हुए अपनी मेहनत और हिम्मत से इस चुनौती को स्वीकार किया.
वह किराए पर ई-रिक्शा चलाती हैं, जिससे वह रोजाना 500 से 600 रुपये कमा लेती हैं. इस कमाई में से 300 रुपये ई-रिक्शा का किराया चुकाने के बाद जो पैसे बचते हैं, उससे वह अपने तीन बच्चों जिनमें दो बेटे और एक बेटी का पालन-पोषण कर रही हैं.
जनप्रतिनिधियों से नहीं मिली मदद
महिला ने अपने संघर्ष के दौरान नगर विधायक प्रदीप बत्रा और खानपुर विधायक उमेश कुमार से मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी. हालांकि, इस असफलता के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और खुद ही अपने हालात सुधारने का फैसला लिया. अब वह हर दिन अपने ई-रिक्शा के पहियों पर जिंदगी की नई इबारत लिख रही है और अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए संघर्ष कर रही हैं.
समाज के लिए बनी प्रेरणा
रुड़की की यह महिला आज समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन चुकी है. उन्होंने दिखा दिया है कि चाहे कितनी भी बड़ी मुश्किलें क्यों न आएं, अगर इंसान में हिम्मत और आत्मविश्वास हो तो वह हर बाधा को पार कर सकता है. उनके संघर्ष की यह कहानी समाज के हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो मुश्किल परिस्थितियों में हार मान लेते हैं.
उनका संघर्ष इस बात का सबूत है कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, मेहनत और दृढ़ निश्चय से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है. यह महिला अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए हर दिन कड़ी मेहनत कर रही है और समाज को यह संदेश दे रही है कि जिंदगी में कभी हार नहीं माननी चाहिए.
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