(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Rudraprayag: चार धाम में श्रद्धालु यहां-वहां फेंक रहे प्लास्टिक, कचरा, जानें कैसे यह दे सकता है विपदा को आमंत्रण?
Uttarakhan News: चार धाम की यात्रा पर आए श्रद्धालु इधर-उधर प्लास्टिक और कचरा फेंक रहे हैं. यहां जानें इससे कैसे पर्यावरण प्रभावित हो रहा है ?
Char Dham yatra 2022 Latest News: केदारनाथ यात्रा में भारी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने से गंदगी भी फैलने लगी है. तीर्थयात्री धाम पहुंचने के बाद यहां-वहां कूड़ा-कचरा फेंक रहे हैं, जो भविष्य के लिए किसी खतरे से कम नहीं है. वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा आज भी सभी को याद है, जिस कारण हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और सैकड़ों लोग बेघर हो गये थे. बावजूद इसके अभी भी सबक नहीं लिया जा रहा है, जो चिंता का विषय है.
बता दें कि छह मई को बाबा केदारनाथ के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये गये थे. तब से लेकर अब तक बाबा के दरबार में दो लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंच चुके हैं. हर दिन हजारों की संख्या में केदारनाथ पहुंच रहे श्रद्धालु पैदल मार्ग से लेकर धाम तक चारों ओर फैले बुग्यालों में प्लास्टिक कचरा फेंक रहे हैं. प्लास्टिक कचरे को लेकर भी जिला प्रशासन कोई बड़ा कदम नहीं उठा रहा है. यह प्लास्टिक कचरा आपदा की दृष्टि से भी संवेदनशील है.
आज भी सभी को याद है वर्ष 2013 की आपदा
वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा आज भी सभी को याद है. केदारनाथ धाम से सात किमी ऊपर वासुकीताल के फटने के बाद जो तांडव मचा था, उसे पूरे विश्व ने देखा. इस आपदा को आज भी याद कर रूह कांपने लगती है. इस आपदा के आने का मुख्य कारण यही रहा कि हिमालयी क्षेत्रों में मनुष्य की गतिविधियां अधिक बढ़ती गई और जब भी हिमालयी क्षेत्रों में मनुष्य का ज्यादा हस्तक्षेप हुआ है, तब-तब आपदाओं ने जन्म लिया है.
मनुष्य हिमालयी क्षेत्रों में स्थित बुग्यालों में प्लास्टिक कचरे को लेकर जाता है और यहां-वहां प्लास्टिक कचरे को छोड़ देता है. इस प्लास्टिक कचरे के कारण बुग्यालों को भारी नुकसान पहुंचता है. इससे जमीन नग्न हो जाती है और जमीन के खाली होने से लैंड स्लाइड का खतरा पैदा हो जाता है. पारस्थितिकीय तंत्र गड़बड़ाने से दिक्कतें पैदा हो जाती हैं.
इन दिनों केदारनाथ धाम से लेकर पैदल मार्ग में जगह-जगह कूड़ा-कचरा फैला हुआ है, जिसे साफ करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे हैं. तीर्थयात्री प्लास्टिक की बोटल, चिप्स इत्यादि सामान को लेकर जा रहे हैं और प्लास्टिक कचरे को बुग्यालों में फेंक रहे हैं. इससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है. साथ ही हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाना वाला बिना पूंछ के चूहे का अस्तित्व भी संकट में है.
क्या कहते हैं पर्यावरणविद् ?
पर्यावरणविद् देव राघवेन्द्र बद्री ने बताया कि केदारनाथ यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्री अपने साथ खाने-पीने का सामान लेकर आते हैं और उन्हें यहां-वहां फेंक देते हैं. इससे प्लास्टिक कचरा सड़ता नहीं है. जिस जगह पर यह गिरा होता है, वहां घास उग पाना मुश्किल हो जाता है, जिससे पारिस्थितिकीय तंत्र भी गड़बड़ाने लग जाता है. यह प्लास्टिक कचरा घास को जला देता है और जमीन नग्न हो जाती है. जमीन के खाली होने से लैंड स्लाइड होने का खतरा बन जाता है.
पर्यावरणविद् ने बताया कि जहां घास जमी होती है, वहां लैंड स्लाइड नहीं होता है. बताया कि हिमालयी क्षेत्रों में विशेष प्रकार का बिना पूंछ का चूहा पाया जाता है, जिसे हिमालयन पिका कहा जाता है. इस जानवर का इको सिस्टम से बहुत गहरा रिश्ता है. प्लास्टिक कचरे के कारण इसके जीवन पर भी खतरा मंडरा रहा है. उन्होंने कहा कि केदारनाथ धाम के बगल से मंदाकिनी नदी बह रही है. प्लास्टिक कचरे से नदी को भी भारी नुकसान पहुंचता है. यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को प्लास्टिक कचरे को अपने साथ वापस लाना चाहिए, अन्यथा इस प्लास्टिक कचरे के कारण भविष्य में बहुत बड़ी घटना हो सकती है.
वहीं डीएम मयूर दीक्षित ने कहा कि केदारनाथ धाम में वेस्ट मैनेजमेंट के तहत कार्य किया जा रहा है. तीर्थयात्रियों से निवेदन किया जा रहा है कि वे पानी की बोतल और चिप्स के प्लास्टिक कचरे को अपने साथ वापस लेकर आएं. साथ ही उन्होंने कहा कि धाम में सफाई व्यवस्था को लेकर नगर पंचायत को कड़े निर्देश दिए गए हैं.
19 मई को पैदल मार्ग से केदारनाथ धाम तक एक विशेष अभियान चलाया जायेगा, जिसमें यात्रियों से निवेदन किया जायेगा कि वे धाम की सुंदरता को खराब ना करें और प्लास्टिक कचरे को अपने साथ वापस लेकर जाएं.
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