Rudraprayag: द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर के कपाट शीतकाल के लिए हुए बंद, अब ऊखीमठ में होंगे दर्शन
भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह डोली 19 नवंबर को राकेश्वरी मंदिर रांसी, 20 नवंबर को गिरिया पहुंचेगी. 21 नवंबर को भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचेगी.
Uttarakhand News: उत्तराखंड में द्वितीय केदार मद्महेश्वर भगवान के कपाट शीतकाल के लिए शुक्रवार (18 नवंबर) सुबह 8 बजे विधि-विधान से बंद हो गये हैं. सुबह चार बजे मंदिर खुलने के के बाद श्रद्धालुओं ने भगवान मद्महेश्वर के निर्वाण रूप के दर्शन किए. इसके बाद पुजारी शिव शंकर लिंग ने भगवान मद्महेश्वर की समाधि पूजा शुरू की और भगवान को भस्म, भृंगराज फूल, बाघांबर से ढक दिया. इस तरह भगवान मद्महेश्वर को समाधिरूप दिया गया.
इसके साथ ही भगवान मद्महेश्वर के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो गये. कपाट बंद होने के बाद भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह डोली को मंदिर परिसर में लाया गया. इस दौरान भगवान मद्महेश्वर ने अपने भंडार, बर्तनों का निरीक्षण भी किया.
वहीं इसके बाद भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह डोली रात्रि विश्राम के लिए गौंडार प्रस्थान हुई. भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह डोली 19 नवंबर को राकेश्वरी मंदिर रांसी, 20 नवंबर को गिरिया पहुंचेगी. वहीं कार्याधिकारी आर सी तिवारी और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी राजकुमार नौटियाल ने बताया कि 21 नवंबर को भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचेगी. इस अवसर पर ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में मद्महेश्वर मेले का भी आयोजन होता है. मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डॉ हरीश गौड़ ने बताया कि इस साल साढ़े सात हजार श्रद्धालुओं ने भगवान मद्महेश्वर के दर्शन किए. इसमें कुछ विदेशी श्रद्धालु भी शामिल हैं.
यहां भगवान शंकर के नाभि की पूजा होती है
बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय, मंदिर समिति उपाध्यक्ष किशोर पंवार सहित मुख्य कार्याधिकारी योगेन्द्र सिंह ने मद्महेश्वर धाम के कपाट बंद होने के अवसर पर तीर्थयात्रियों को शुभकामनाएं प्रेषित की. बता दें कि द्वितीय केदार मद्महेश्वर धाम में भगवान शंकर के नाभि रूप की पूजा की जाती है और यह धाम रांसी से 18 किमी की दूरी पर विराजमान है. पंच केदार मंदिरों में द्वितीय केदार के रूप में प्रसिद्ध है. वहीं पंच केदार मंदिरों में प्रथम केदार के रूप में केदारनाथ, तृतीय केदार के रूप में तुंगनाथ, चतुर्थ केदार के रूप में रुद्रनाथ और पांचवें और अंतिम केदार के रूप में कल्पेश्वर को पूजा जाता है.
मद्महेश्वर मंदिर समुद्रतल से 3497 मीटर (11473 फीट) की ऊंचाई पर है. यहां पहुंचने के बाद मंदिर से डेढ़ किमी की दूरी पर बुढ़ा मद्महेश्वर हैं. बुढ़ा मद्महेश्वर से हिमालय की चैखम्बा पर्वतश्रृंखला के बेहद शानदार दृश्य दिखाई देते हैं.