Independence Day Special: सहारनपुर का देश की आजादी में क्या रहा है योगदान? स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत को जमकर दी टक्कर
Independence Day 2022: शहीद ए आजम भगत सिंह अंग्रेजी हकूमत की आंख में धूल झोंकते हुये जब भी सहारनपुर आये यहां मौजूद फुलवारी नामक एक मंदिर के शिखर में एक कमरे में रहा करते थे.
Saharanpur News: देश में आजादी की 75वीं वर्षगांठ इस बार देशवासी बहुत ही धूमधाम से मनाने जा रहे हैं. इस बार हर घर तिरंगा, घर घर तिरंगा लहराया जाएगा, लेकिन उत्सव पर हम उन आजादी दिलाने वाले लोगों को याद ना करें तो यह उचित नहीं होगा. इस आजादी के पीछे लाखों करोड़ों लोगों का योगदान रहा है, किसी का प्रत्यक्ष रूप से किसी का अप्रत्यक्ष रूप से, कोई क्रांतिकारी तो कोई आंदोलनकारी देश के हर गांव हर शहर के लोगों ने देश की आजादी में अपनी अपनी भूमिका निभाई. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद के लोगों ने भी देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
दी जाती थी पीपल के पेड़ पर सरेआम फांसी
अंग्रेजों की क्रूरता के बावजूद जनपद के स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत को जमकर टक्कर दी. अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता की बात करें तो जनपद की पुरानी कोतवाली जो कि आज लोहा बाजार के नाम से जानी जाती है वहां पर आंदोलनकारियों को कोतवाली के बाहर पीपल के पेड़ पर सरेआम फांसी पर लटका दिया जाता था और मरने के बाद भी उन आंदोलनकारियों के पार्थिव शरीर को कई दिन तक नहीं उतारा जाता था ताकि लोगों में दहशत रहे और वह आंदोलनकारियों का साथ न दें. आज भी उसी स्थान पर शहीदों के सम्मान में स्मारक मौजूद है.
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सहारनपुर आए थे शहीद ए आजम भगत सिंह
सहारनपुर में आजादी को लेकर चले आंदोलन का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि चाहे महात्मा गांधी हों या शहीद ए आजम भगत सिंह हों वे स्वतंत्रता के लिए आंदोलन को बढ़ाने के लिए सहारनपुर लगातार आते रहे. शहीद ए आजम भगत सिंह तो अंग्रेजी हकूमत की आंख में धूल झोंकते हुये जब भी सहारनपुर आये तो यहां पर आज भी मौजूद फुलवारी नामक एक मंदिर के शिखर में एक कमरा बना हुआ था जिसमें शहीदे आजम भगत सिंह रहा करते थे. यह कमरा इस तरह बना हुआ था कि बड़े शिखर के आगे एक छोटा शिखर बना हुआ है जिससे दूर से देखने पर यह कमरा नजर नहीं आता था. बाद में शहीद ए आजम भगत सिंह के परिवार के कई लोग सहारनपुर में ही आकर रहने लगे.
गोली लगने के बाद उठ खड़े हुए जगदीश वत्स
इसी तरह अगर हम बात करें सहारनपुर के गांव खजूरी अकबर के लाल जगदीश वत्स की तो जगदीश वत्स ने महात्मा गांधी के करो या मरो आंदोलन से प्रेरित होकर अपने साथियों के साथ सरकारी भवनों के ऊपर लगे अंग्रेजी हुकूमत के झंडे की जगह भारत की स्वाधीनता के झंडे लगाने की ठान ली और उन्होंने सहारनपुर के रेलवे स्टेशन कोतवाली और पोस्ट ऑफिस के झंडे उतारकर भारत की स्वाधीनता के झंडे लहरा दिए. मौजूदा कोतवाल ने जगदीश वत्स को गोली मार दी, गोली लगने के बावजूद बहादुर जगदीश फिर उठ खड़े हुए और उन्होंने भारतीय कोतवाल के गाल पर तमाचा रसीद करते हुए कहा कि तुम गद्दार हो और उन्होंने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया.
पैसेंजर ट्रेन लूटने की योजना सहारनपुर में
नमक आंदोलन में भी सहारनपुर के हजारों लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एकत्रित होकर पांव धोई नदी के किनारे स्थित फुलवारी में जाकर नमक बनाया. इस योगदान की गवाही आज भी वहां स्थित स्मारक दे रहा है. इस आंदोलन के बाद अंग्रेजी हुकूमत द्वारा सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया. सहारनपुर से चलकर लखनऊ जाने वाली सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को काकोरी में लूटने की योजना भी सहारनपुर में ही बनाई गई.
भारत छोड़ो आंदोलन की चिंगारी सहारनपुर में
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की चिंगारी सहारनपुर में भी फूटी. सहारनपुर के जड़ौदा जट के ठाकुर मंगल सिंह के सुझाव को मानते हुए सहारनपुर मुजफ्फरनगर का आंदोलन का काम कृष्ण कुमार रावत को सौंपा गया. सहारनपुर के अधिकांश कार्यकर्ताओं को 9 अगस्त की रात को ही गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी से बचें कार्यकर्ताओं को तार काटना, रेलवे पटरी उखाड़ना, स्टेशन आग लगाने के काम सौंपे गए. मनानी स्टेशन को आग लगा दी गई. इस आंदोलन में छात्र भी पीछे नहीं रहे . 13 अगस्त 1942 को टेलीफोन की तार काटते हुए छात्र शांति स्वरूप को बंदी बना लिया गया जिन्हें बाद में अट्ठारह कोड़ों की सजा देकर छोडा गया.
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर का योगदान
सहारनपुर का आजादी के आंदोलन के साथ-साथ पत्रकारिता में भी बहुत बड़ा योगदान रहा है. देश के जाने माने स्वतंत्रता सेनानी और साहित्यकार कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर के स्वतंत्रता में योगदान को कोई भुला नहीं सकता. कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर के बेटे अखिलेश प्रभाकर ने आजादी को लेकर चले आंदोलन की स्मृतियों के बारे में बताया कि आजादी के समय वह 19 साल के थे, उनके पिता कन्हैयालाल मिश्र 15 वर्ष की आयु में ही 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में कूद पढ़े. 1928 में स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर दिया. कन्हैयालाल मिश्र मूल रूप से देवबंद के रहने वाले थे.
गांधीजी ने हंसते हुए कही थी ये बात
1929 में जब गांधी जी सहारनपुर आए और वहां से जब वह मुजफ्फरनगर जाने लगे तो कन्हैयालाल प्रभाकर जी ने गांधी से देवबंद जाने के लिए आग्रह किया लेकिन गांधीजी के सचिव आचार्य कृपलानी ने जब असमर्थता जाहिर की तो कन्हैयालाल प्रभाकर जी ने गांधी जी से कहा कि उनका देवबंद जाना बहुत अनिवार्य है यदि वह वहां नहीं रुकेंगे तो देवबंद के लोग सड़कों पर लेट जाएंगे. गांधीजी ने हंसते हुए कहा कि मैं दूसरों के विरूद्ध सत्याग्रह करता हूं और तुम मेरे खिलाफ सत्याग्रह करोगे, सत्याग्रही के खिलाफ सत्याग्रह.
इस उदाहरण से पता चलता है कन्हैयालाल का जज्बा
आजादी को लेकर कन्हैया लाल प्रभाकर मिश्र जी में क्या जज्बा था इसका एक उदाहरण यह भी है कि जब कन्हैया लाल प्रभाकर जी के पिता रमादत को पता चला कि कन्हैयालाल जेल भरो आंदोलन में जेल जा रहा है तो वह विचलित हो गए कि उनका इकलौता संतान जेल चला जायेगा और उन्होंने धमकी देते हुये कहा कि अगर तुम जेल गए तो मैं जहर खा लूंगा इस पर कन्हैयालाल जी ने अपने पिता से जवाब दिया फिर ठीक है मैं 15 दिन बाद जेल चला जाऊंगा पहले आप जहर खा लीजिए और मैं आपका संस्कार और तेहरवीं की रस्म पूरी करने के उपरांत जेल चला जाऊंगा.
उनकी प्रेस को 97 बार नीलाम करने की कोशिश
इतना ही नहीं कन्हैया लाल जी द्वारा संचालित प्रेस विकास के नाम से थी और उसी नाम से उन्होंने विकास साप्ताहिक नाम से समाचार पत्र निकाला लेकिन अंग्रेजी सरकार को इस समाचार पत्र में आजादी की बू आने लगी और उन्होंने इस समाचार पत्र को बंद करवा दिया, उसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अन्य नामों से समाचार पत्र निकाले लेकिन अंग्रेजी हुकूमत सभी को बंद कराती चली गई. उनकी प्रेस को 97 बार नीलाम करने की कोशिश की गई.
कन्हैया लाल के पुत्र भी करते थे सेनानियों की मदद
इतना ही नहीं कन्हैया लाल प्रभाकर के पुत्र अखिलेश प्रभाकर भी अपनी पढ़ाई के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों की मदद करते थे. अपने पिता के साथ बैठकों में जाना उन्हें आज भी याद है. अखिलेश जी बताते हैं कि उनकी प्रेस में आंदोलनों को लेकर जो पंपलेट छपा करते थे उन्हें वह चोरी से अपने स्कूल के बस्तों में रखकर आंदोलनकारियों तक पहुंचाते थे क्योंकि उनकी प्रेस पर पुलिस की कड़ी नजर रहती थी. अखिलेश जी बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के साथ एक बार फिर उनका बंद हुआ समाचार पत्र विकास भी आजाद हुआ और उसी दिन उसका पुनः प्रकाशन किया गया.
सहारनपुर की धरती पर हुए हजारों स्वतंत्रता सेनानी
सहारनपुर की धरती पर जहां हजारों स्वतंत्रता सेनानी ऐसे हैं जिनका नाम आज भी कागजों में दर्ज है और इसके अलावा ना जाने ऐसे कितने गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी हैं जिनकी कहानियां बताने वाला आज कोई नहीं. सहारनपुर से बाहर के आंदोलनकारियों के लिए सहारनपुर सबसे बेहतर शरणस्थली था. पाकिस्तान से लेकर कोलकाता तक सहारनपुर रेल मार्ग से सीधा जुड़ा था और यहां आस-पास के देहात में आंदोलनकारी शरण लिया करते थे .
क्रांतिकारी आते थे बम बनाने की विधि सीखने
सहारनपुर में क्रांतिकारी बम बनाने की भी विधि सीखने आते थे. बम बनाने की फैक्ट्री में डॉक्टर गया प्रसाद, शिव वर्मा और जयदेव कपूर तीनों लोग गिरफ्तार हुए थे. आजादी के योगदान में जहां मेरठ की 1857 की क्रांति को याद किया जाता है तो वहीं सहारनपुर के देवबंद के दारुल उलूम से निकला रेशमी रुमाल आंदोलन भी देश की आजादी के लिए याद किया जाता है .