अयोध्या मामले में सुप्रीम सुनवाई के बाद मध्यस्थता फेल,वाराणसी के संतों में दो फाड़
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संतों में मतभेद खुलकर सामने आ गये हैं। उनका कहना है कि मध्यस्थता का फैसला सिर्फ राम मंदिर के निर्माण में देरी के लिये किया गया था।
वाराणसी, नितीश कुमार पाण्डेय। अयोध्या मामले पर शुक्रवार को होने वाली सुनवाई में कोर्ट ने आदेश दिया कि 6 अगस्त से मामले पर नियमित सुनवाई होगी, इसके साथ ही ये भी कहा कि मध्यस्थता कमेटी का कोई नतीजा नहीं निकला। लिहाजा मध्यस्थता प्रक्रिया को बंद कर दोबारा सुनवाई शुरू कराई जाय। कोर्ट के इस फैसले के बाद संतो में दो फाड़ की स्थिति बनी हुई है। संतो का एक धड़ा मध्यस्थता कमेटी की सड़ी मछली कौन है, सवाल कर रहा है, वहीं श्वेत पत्र लाकर सबके सामने लाने की बात कह रहा है। वहीं दूसरा धड़ा मध्यस्थता कमेटी के गठन को न्याय में विलंब की स्थिति पैदा करने की बात कह रहा है।
श्वेतपत्र जारी कर देशवासियों को बताया जाए कि मध्यस्थता क्यों फेल हुई
वाराणसी में धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी ने कहा कि अच्छे से चल रही मध्यस्था का यह हाल क्यों हुआ। वह सड़ी मछली कौन है, श्वेत पत्र लाकर सबके सामने उसे लाना चाहिए। चक्रपाणी महाराज ने सरकार पर बोला और कहा कि जब तीन तलाक पर कानून बना सकते हैं तो राम मंदिर पर क्यों नहीं। इन्होंने एससी-एसटी को भी आधार बनाया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ जाकर जब इस पर कानून बना सकते हैं तो राम मंदिर पर क्यों नहीं। इन्होंने सरकार को सत्ता के मद में चूर करार दिया और कहा कि सत्ता में बैठने के बाद अच्छे अच्छों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।
इसी कार्यक्रम में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के प्रतिनिधि अविमुक्तेश्वरानंद भी पहुंचे थे। अविमुक्तेश्वरानंद ने भी कहा कि श्वेतपत्र जारी कर देशवासियों को बताया जाए कि मध्यस्थता क्यों फेल हुई। इन्होंने एक सप्ताह में मध्यस्थता में हुयी बातों पर श्वेतपत्र जारी करेंगे।
समय की बर्बादी के लिए मध्यस्थता कमेटी का गठन हुआ था: नरेंद्रानंद सरस्वती
वहीं सुमेरु पीठ के पीठाधीश्वर शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने मध्यस्थता कमेटी को निराधार बताया और कहा कि मध्यस्थता कमेटी बनाने का कोई औचित्य ही नहीं था। समय की बर्बादी के लिए मध्यस्थता कमेटी का गठन हुआ। जिससे न्याय में विलंब की स्थिति पैदा हुयी। बातचीत जो पक्षकार हैं उनमें होनी चाहिए। अब दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।