UP News: लखनऊ (Lucknow) में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का दो दिनों का अधिवेशन हुआ. पहले दिन राज्य स्तरीय सम्मेलन हुआ और दूसरे दिन राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हुआ. एक बार फिर नरेश उत्तम पटेल (Naresh Uttam Patel) को सपा का प्रदेश अध्यक्ष चुना गया. 2017 से 2022 तक सपा के प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में चुनाव हुए लेकिन तीनों ही चुनाव में सपा को हार का सामना करना पड़ा. अब सपा की तैयारी 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) को लेकर है. ऐसे में ये अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की रणनीति है या फिर मजबूरी जो भी कहे उसे समझना बेहद जरूरी है.


लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर मैदान में सपा का जब राज्य स्तरीय सम्मेलन हुआ तब कार्यकर्ता बड़े जोश में नजर आ रहे थे. सब को लग रहा था कि पार्टी को 2024 लोकसभा चुनाव से पहले नया प्रदेश अध्यक्ष मिल सकता है. लेकिन जब निर्वाचन अधिकारी के तौर पर प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने नरेश उत्तम पटेल के नाम की घोषणा की तो यह तय हो गया कि सपा 2024 में भी प्रदेश में नरेश उत्तम पटेल के नेतृत्व में ही लोकसभा चुनाव में जाएगी.


क्यों जताया भरोषा?
सम्मेलन में आए कार्यकर्ताओं ने खुले मन से तो नहीं लेकिन दबी जुबान में कहीं ना कहीं इस फैसले को लेकर कुछ बातें जरूर कहीं. दरअसल, नरेश उत्तम पटेल 2017 से 2022 तक सपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे.सपा के वो चौथे प्रदेश अध्यक्ष हैं, पार्टी की स्थापना से लेकर अब तक सपा के चार प्रदेश अध्यक्ष ही हुए हैं. उनमें नरेश उत्तम पटेल भी शामिल हैं. आखिर इसके पीछे क्या वजह है क्यों पटेल पर ही अखिलेश यादव ने भरोसा जताया. यह समझना बेहद जरूरी है.


इस फैसले को अखिलेश यादव की सोची समझी रणनीति भी कहा जा सकता है क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनाव में कुर्मी वोट भी सपा को मिला. नरेश उत्तम पटेल भी कुर्मी बिरादरी से आते हैं. शायद यह भी एक वजह है कि अखिलेश यादव चार से पांच फीसदी जो कुर्मी वोट बैंक है, यूपी में उसे नाराज नहीं करना चाहते थे. इसीलिए नरेश उत्तम पटेल की दोबारा ताजपोशी प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर हुई. 


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विश्वासपात्र
इसके पीछे एक सबसे बड़ी वजह यह भी है कि अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर एक ऐसा नेता चाहिए जो उनका सबसे विश्वास पात्र हो. उसी लकीर पर काम करें जो अखिलेश यादव तय करें. इसमें नरेश उत्तम पटेल सबसे उपयुक्त साबित हुए क्योंकि जबसे समाजवादी परिवार में विवाद हुआ, उसके बाद से नरेश उत्तम पटेल जिस तरह से अखिलेश यादव के विश्वासपात्र सिपाही के तौर पर काम कर रहे हैं. वह भी कहीं ना कहीं इसके पीछे एक फैक्टर माना जा रहा है. 


तीसरी वजह
तीसरी सबसे बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि पिछड़ों के सबसे बड़े नेता सपा में खुद अखिलेश यादव हैं. ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उन्हें ऐसा व्यक्ति चाहिए जो पार्टी के सीनियर नेताओं के साथ भी समन्वय बना सके और युवा नेताओं से भी बैलेंस बना के रखे. नरेश उत्तम पटेल इस मानक पर भी फिट बैठते हैं क्योंकि नरेश उत्तम पटेल 80 के दशक में विधायक रह चुके हैं. मुलायम सिंह यादव के साथ काम किया है और दो बार एमएलसी रह चुके हैं. इसलिए उनकी सीनियरिटी को लेकर भी कोई पार्टी के भीतर सवाल नहीं खड़े कर सकता.


ये तीन चुनौती भी रही फैक्टर
हालांकि कुछ लोग ये भी कह रहे हैं की इसके पीछे अखिलेश यादव की एक मजबूरी है. उसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि अखिलेश यादव ने बाहर से आए हुए किसी नेता को यह जिम्मेदारी इसलिए नहीं सौंपी कि वह उस पर भरोसा नहीं कर सकते थे. आज नेता उनके साथ है, कल अगर किसी और के साथ चला जाए तो पार्टी के लिए फिर से दिक्कत खड़ी हो सकती है.


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