Azamgarh and Rampur By-Elections: आजमगढ़ और रामपुर सीट पर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की हार की वजह सिर्फ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की गलतियां ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी की मजबूत रणनीति और मेहनत भी है. एक तरफ जहां सपा अध्यक्ष इन दोनों जगह प्रचार करने नहीं गए वहीं दूसरी ओर बीजेपी संगठन से लेकर सीएम योगी और उनके मंत्री तक दोनों सीटों पर पसीना बहाते रहे. वोटर तक जाने का मौका सभी दलों पास बराबर था. लेकिन कोई नेता अति विश्वास से भरा रहा तो किसी ने अभेद किले को ढहाने में पूरी ताकत लगा दी. नतीजा सामने है.


 बीजेपी ने जिस तरह से बूथ मैनेजमेंट किया उसकी चर्चा सियासी गलियारे में खूब हो रही है. बीजेपी ने अपने एक एक कमजोर बूथ को छांटा और उस पर मंत्रियों, सांसदों, विधायकों को जिम्मेदारी देकर मजबूत करने का काम किया. सपा ने शायद भले ही 2022 विधानसभा के चुनावी नतीजों से सबक न लिया हो लेकिन बीजेपी ने यह गलती नहीं की. बीजेपी ने इन सीटों पर विधानसभा चुनाव के नतीजों पर मंथन कर अपनी खामियों को दूर करने के लिए पूरी मेहनत की और उसका नतीजा इस जीत के रूप में सामने आया.


प्रचार करने नहीं गए अखिलेश


उपचुनाव में एक तरफ जहां अखिलेश यादव प्रचार को नहीं गए तो वहीं दूसरी ओर बात बीजेपी की करें तो सीएम योगी, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के साथ ही अधिकतर मंत्रियों को आजमगढ़ और रामपुर में मोर्चाबंदी के लिए लगा दिया गया. संगठन के कई पदाधिकारियों को भी यह जिम्मेदारी दी गई. सांसदों और विधायकों को बूथ बांटकर लगाया गया. कुल मिलाकर इसे उपचुनाव नहीं बल्कि मुख्य चुनाव समझकर ही लड़ा और सपा के दोनों किलों में सेंधमारी की.


रामपुर में 50 फ़ीसदी से अधिक मुस्लिम और आजमगढ़ में 40 फ़ीसदी से अधिक मुस्लिम व यादव वोटर होने के बावजूद बीजेपी ने सपा को इस चुनाव में करारी शिकस्त दी. अगर इससे पहले के चुनावी नतीजों को देखें तो रामपुर में बीजेपी को 1991, 1998 और 2014 में जीत मिली थी वह भी तब जब यहां त्रिकोणीय मुकाबला था. वही आजमगढ़ में बीजेपी ने सिर्फ एक बार चुनाव जीता. बीजेपी ने 2009 में सपा से आए रमाकांत यादव के भरोसे चुनाव जीता था.



  • रामपुर सीट पर 1952 से अब तक 18 चुनाव हिये जिसमे बीजेपी सिर्फ 4 बार जीती.

  • 1991 में राजेन्द्र कुमार शर्मा, 1998 में मुख़्तार अब्बास नकवी, 2014 में नेपाल सिंह और इस उप चुनाव में घनश्याम लोधी.

  • आज़मगढ़ सीट पर 20 चुनाव में से बीजेपी सिर्फ 2 बार जीती.

  • 2009 में सपा से बीजेपी में आये रमाकांत यादव और इस बार दिनेश लाल यादव निरहुआ.

  • 2019 में चुनाव में निरहुआ को 3 लाख 31 हज़ार 704 वोट मिले लेकिन फिर भी अखिलेश यादव से 2 लाख, 59 हज़ार 874 वोट से हार गए थे.

  • 2014 से अब तक बीजेपी ने कन्नौज, बदायूं और अमेठी के बाद अब आज़मगढ़ और रामपुर में भी कमल खिला दिया है.


 आजमगढ़ में मुस्लिम और यादव वोटर मिलाकर 40 फीसदी से अधिक


आजमगढ़ में मुस्लिम और यादव वोटर मिलाकर 40 फीसदी से अधिक है. इनमे 24 फीसद से अधिक मुस्लिम वोटर है. बीजेपी ने एक बार फिर से भोजपुरी सिने स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ पर भरोसा जताया. बात रामपुर की करें तो यहां मुस्लिमों के बाद दूसरी बड़ी आबादी वाले पिछड़ों में से लोध जाति के घनश्याम लोधी को प्रत्याशी बनाया. सपा भले ही अपने प्रत्याशियों के चयन को लेकर अंत समय तक कन्फ्यूजन की स्थिति में रही हो लेकिन बीजेपी में किसी तरह का कन्फ्यूजन नहीं था. प्रत्याशियों के ऐलान के बाद बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी. अपने हर जाति के मंत्री को उनकी बिरादरी में ही बात कर समझाने की जिम्मेदारी थी. इसी को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार के मंत्रियों को दोनों लोकसभा क्षेत्रों में बांटा गया. बीजेपी की ये स्ट्रेटजी काम भी कर गई. विधानसभा चुनाव की तरह ही इस उपचुनाव में भी बीजेपी ने विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को अपनी तरफ करने का काम किया. मंत्रियों की टीम जब लोगों के बीच जाती तो उन्हें बताती कि कैसे सपा यहां से वोट लेती रही लेकिन काम नहीं किया. जबकि बीजेपी ने बिना भेदभाव के इन क्षेत्रों में भी मुफ़्त राशन, किसान सम्मान निधि, आयुष्मान कार्ड, पीएम आवास, शौचालय, उज्ज्वल योजना समेत अन्य योजनाओं का लाभ दिया.


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