बाराबंकी: समाजवादी पार्टी (सपा) ने बाराबंकी जिले की रामसनेहीघाट तहसील में स्थानीय प्रशासन द्वारा हाल में एक मस्जिद को ढहाए जाने की कड़ी निंदा करते हुए संबंधित उपजिलाधिकारी और अन्य सहयोगी अफसरों को तत्काल निलंबित कर मामला दर्ज करने और पूरे प्रकरण की हाई कोर्ट के न्यायाधीश से जांच कराने की मांग की है.


सपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को जिलाधिकारी आदर्श सिंह से मुलाकात कर उन्हें राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को संबोधित एक ज्ञापन सौंपा.


सपा का आरोप


प्रतिनिधिमंडल में शामिल विधान परिषद सदस्य राजू यादव ने एजेंसी को बताया, ‘‘ज्ञापन में रामसनेही घाट के सुमेरगंज कस्बे में स्थित 100 साल से ज्यादा पुरानी मस्जिद को उप जिलाधिकारी दिव्यांशु पटेल द्वारा अनाधिकृत तरीके से ढहाने की कार्रवाई कराए जाने की कड़ी निंदा की गई है.’’ ज्ञापन में कहा गया है कि वह मस्जिद सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति के तौर पर दर्ज है और मस्जिद ध्वस्त करने की कार्रवाई से पहले वक्फ बोर्ड को न तो कोई नोटिस दी गई और न ही उसे पक्षकार बनाया गया. उप जिलाधिकारी ने वक्फ अधिनियम का उल्लंघन करते हुए खुद अपने ही यहां वाद दायर कर ध्वस्तीकरण का फैसला सुना दिया, जबकि वक्फ से संबंधित सभी मामलों, विवादों और शिकायतों की सुनवाई के लिए वक्फ अधिकरण बना हुआ है.


हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी का आरोप


ज्ञापन में यह भी कहा गया है, ‘‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कोविड-19 महामारी और कोरोना कर्फ्यू को देखते हुए किसी भी तरह के ध्वस्तीकरण कार्य पर आगामी 31 मई तक रोक लगा दी थी, लेकिन अदालत के आदेशों की अवहेलना करते हुए स्थानीय प्रशासन ने मस्जिद को बुलडोजर चलाकर शहीद कर दिया और वहां रखे पवित्र ग्रंथों का अपमान किया.’’ ज्ञापन में मांग की गई है कि मस्जिद को असंवैधानिक तरीके से ढहाने का काम करने वाले उप जिलाधिकारी दिव्यांशु पटेल और उनके सहयोगी अफसरों को तत्काल निलंबित कर मामला दर्ज करके दंडित किया जाए. साथ ही इस पूरे प्रकरण की हाईकोर्ट के किसी सेवारत न्यायाधीश से जांच कराई जाए.


ये था पूरा मामला 


गौरतलब है कि रामसनेहीघाट तहसील के सुमेरगंज कस्बे में उप जिलाधिकारी आवास के ठीक सामने स्थित एक पुरानी मस्जिद को स्थानीय प्रशासन ने गत 17 मई की शाम को कड़े सुरक्षा बंदोबस्त के बीच ध्वस्त करा दिया था.


जिलाधिकारी आदर्श सिंह ने मस्जिद और उसके परिसर में बने कमरों को 'अवैध निर्माण' करार देते हुए कहा था कि इस मामले में संबंधित पक्षकारों को पिछली 15 मार्च को नोटिस भेजकर स्वामित्व के संबंध में सुनवाई का मौका दिया गया था लेकिन परिसर में रह रहे लोग नोटिस मिलने के बाद फरार हो गए, जिसके बाद तहसील प्रशासन ने 18 मार्च को परिसर पर कब्जा हासिल कर लिया.


उन्होंने दावा किया था कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने इस मामले में दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे गत दो अप्रैल को निस्तारित कर दिया था. इससे यह साबित हुआ कि वह निर्माण अवैध है. इस आधार पर रामसनेहीघाट उप जिलाधिकारी की अदालत में न्यायिक प्रक्रिया के तहत मुकदमा दायर किया गया और अदालत द्वारा पारित आदेश पर 17 मई को ध्वस्तीकरण कर दिया गया.


ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने की निंदा 


ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा था कि जिला प्रशासन ने 100 साल पुरानी मस्जिद गरीब नवाज को असंवैधानिक तरीके से जमींदोज कर दिया. इस मामले के दोषी अधिकारियों को निलंबित कर मामले की उच्च न्यायालय के किसी सेवारत न्यायाधीश से जांच कराई जाए और मस्जिद का पुनर्निर्माण करवा कर उसे मुस्लिम समुदाय के हवाले किया जाए.


उधर, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी इसकी कड़ी निंदा करते हुए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने और मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की थी. बोर्ड ने यह भी कहा था कि वह उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद मस्जिद ढहाए जाने के असंवैधानिक कृत्य के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाएगा.


ये भी पढ़ें.


कोरोना की तीसरी लहर को लेकर आयुष विभाग ने की तैयारी, कवच एप से जुड़ेगा ये खास फीचर