(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
उत्तर प्रदेश में 'मिशन 2022' की तैयारी में लगी समाजवादी पार्टी, पूर्व विधायकों और सांसदों को दिलाई गई सदस्यता
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव मिशन 2022 की तैयारी में जुट गए हैं. अखिलेश यादव ने सोमवार को 3 पूर्व सांसदों समेत कई पूर्व विधायकों को सपा की सदस्यता दिलाई.
लखनऊः उत्तर प्रदेश में 'बाइस में बाइसिकिल' का नारा देने वाली समाजवादी पार्टी अभी से पूरी तरह चुनावी गुणा गणित में लग गई है. इसी के तहत मिशन 2022 की तैयारी में जुटी समाजवादी पार्टी ने दूसरी पार्टियों से नेताओं को अपने यहां जगह देना शुरू कर दिया है. अपने इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए अखिलेश यादव ने सोमवार को 3 पूर्व सांसदों समेत कई पूर्व विधायकों को सपा की सदस्यता दिलाई. इससे पहले भी कई नेताओं को अखिलेश ने सपा में जगह देकर अपना इरादा साफ़ किया है. पहले बसपा में बगावत करा के और फिर कई पूर्व सांसदों को समाजवादी पार्टी में लाकर अखिलेश ये बताना चाहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सीधी टक्कर सिर्फ सपा ही देगी.
मजबूत विकल्प दिखना चाहते हैं अखिलेश
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव एक संदेश देने की कोशिश में लगातार बाग़ी हुए नेताओं को समाजवादी कुनबे में जगह दे रहे हैं. ये सारी कवायद इसलिए कि अखिलेश ख़ुद को भारतीय जनता पार्टी के विकल्प के तौर पर साबित करने की कोशिश कर रहे हैं. कहा जा सकता है कि इसकी शुरुआत तब हुई जब बहुजन समाज पार्टी के करीब आधा दर्जन विधायकों ने राज्यसभा चुनाव से पहले पार्टी से बग़ावत कर दी.
सभी बाग़ी विधायकों ने अखिलेश यादव से मुलाकात की. हड़बड़ाई मायावती ने तुरंत यह घोषणा कर दी कि सपा को हराने के लिए ज़रूरत पड़ी तो वो बीजेपी को भी समर्थन कर देंगी. मायावती के इस बयान का भी अखिलेश पूरा फ़ायदा लेने की जुगत में हैं और अपने परंपरागत मुसलमान वोटरों में यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि मायावती कभी भी बीजेपी को समर्थन कर सकती हैं. अगर सपा की यह रणनीति कामयाब हुई तो बसपा की दलित-मुसलमान की सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला कमज़ोर पड़ सकता है.
गठबंधन की राजनीति से अखिलेश की तौबा तौबा
यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में अखिलेश गठबंधन करके भुगत चुके हैं. यही वजह है कि 2022 में अकेले सपा मैदान में उतरने की घोषणा कर चुकी है. 2017 में अखिलेश ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया तो यूपी की जनता को लड़कों का साथ पसंद नहीं आया. सपा 47 सीटों पर सिमटकर रह गई और चुनाव परिणामों के बाद गठबंधन भी ध्वस्त हो गया. इसके बाद 2019 में अखिलेश ने बुआ बबुआ वाला गठबंधन करके सबको चौंका दिया. बसपा के साथ मिलकर लड़ने के बाद भी दोनों दल 15 सीटों पर रह गए. मायावती फिर भी फ़ायदे में रहीं और 10 सीटें उनकी पार्टी ने जीत ली. लेकिन सपा सिर्फ 5 सीटें ही जीत सकी. इस चुनाव के नतीजे के तुरंत बाद मायावती ने गठबंधन तोड़ लिया. ऐसे में अब अखिलेश 2022 में अकेले मैदान में जाने की तैयारी में हैं और विपक्षी दलों से रूठों को सम्मान देकर अपना कुनबा मजबूत कर रहे हैं.
किसने किसने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ली
समाजवादी पार्टी में सोमवार को कई नेताओं ने सदस्यता ली. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में 3 पूर्व सांसदों ने सपा की सदस्यता ग्रहण की. इनमें पूर्व सांसद बाल कुमार पटेल (कांग्रेस से सपा), कैलाश नाथ यादव (बसपा से सपा) और कैसर जहां (कांग्रेस से सपा) में हुई शामिल. इसके अलावा 4 पूर्व विधायक राम सिंह पटेल (कांग्रेस से सपा), जासमीर अंसारी (कांग्रेस से सपा), सुनील सिंह यादव (बसपा से सपा) और रमेश राही (कांग्रेस से सपा) भी पार्टी में शामिल हुए. कैंसर जहां सीतापुर से सांसद रहीं हैं वहीं बाल कुमार पटेल मिर्जापुर से सांसद रहे हैं. बसपा के शासन में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं पूर्व सांसद कैलाश नाथ सिंह यादव. बाल कुमार पटेल ददुआ के भाई हैं जबकि राम कुमार पटेल ददुआ के बेटे हैं. आपको बताए कि 2 नवम्बर को उन्नाव की पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता अनु टण्डन भी कांग्रेस का हाथ छोड़ सपा की साइकिल पर सवार हो चुकी हैं.
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