कैसे होता है कोर्ट कमीशन द्वारा सर्वे और क्या है प्रक्रिया? लॉ एक्सपर्ट ने दी बड़ी जानकारी, जानें- क्या है इसकी SOP
Samabhal की जामा मस्जिद में सर्वे को लेकर विवाद हुआ. कोर्ट ने इस संदर्भ में कोर्ट कमीशन बनाया था. आखिर क्या होता है और ये कैसे बनता है- जानें यहां.
Sambhal Court Commission: संभल की शाही जामा मस्जिद में कोर्ट कमिश्नर के सर्वे के दूसरे दिन सर्वे के दौरान बवाल हो गया इस दौरान जमकर ईट पत्थर चले, फायरिंग भी हुई जिसमें चार लोगों की जान भी चली गई है. कैसे होता है कोर्ट कमिश्नर का सर्वे, क्या है इसके लिए आपको विस्तार से समझाते हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता और विधि विशेषज्ञ विकल्प कुमार राय ने इस मामले में जानकारी देते हुए बताते हैं कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 75 में कमीशन नियुक्त करने की शक्ति प्रदत्त की गयी है एवं आदेश 26 में इसकी प्रक्रिया विस्तार से वर्णित है. कमीशन जारी करने की शक्ति अदालत के विवेकाधीन है और अदालत द्वारा पार्टियों के बीच पूरा न्याय करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है. इसका प्रयोग न्यायालय द्वारा या तो वाद के पक्षकार के आवेदन पर या स्वप्रेरणा से किया जा सकता है.
कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने की क्यों पड़ती है आवश्यकता?
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जब पक्षकारों के बीच विवाद आने जाने वाले रास्ते के लिए हो और वादी का कहना हो कि आवागमन के लिए सिर्फ एक ही रास्ता है और वह भी प्रतिवादी द्वारा रोक लिया गया है तो ऐसी स्थिति में सिर्फ साक्ष्य के आधार पर न्यायालय किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकता है क्योंकि इस तरह की भौतिक स्थिति को न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया जा सकता और न ही न्यायालय उस खास भौतिक स्थिति तक जाकर कोई निष्कर्ष दे सकता है.
एक कमीशन मूल रूप से न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति को न्यायालय की ओर से कार्य करने के लिए दिए गए निर्देश या भूमिकाएं हैं और इसके पीछे का विचार उन कार्यों का निष्पादन है जिसे न्यायालय को पूर्ण न्याय देने में मदद मिले. कमीशन का संचालन करने वाले ऐसे व्यक्ति को "कोर्ट कमिश्नर" के रूप में जाना जाता है. यह कोर्ट कमिश्नर एक तरीके से न्यायालय की आंख होती है जो मौके पर जाकर मुकदमे के दावे को कानून की कसौटी पर परखता है.
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न्यायालयों द्वारा भी अपने विभिन्न निर्णयों में कोर्ट कमिश्नर के नियुक्ति की प्रासंगिकता की की गयी है व्याख्या
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने जम्मी वेंकट कृष्ण राव और अन्य बनाम जम्मी वेंकट हनुमा रविंद्रनाथ, [2015 (5) ALT 14], के मामले में निर्धारित किया कि कमिश्नर द्वारा संपत्ति की भौतिक विशेषताओं को नोट करना न्यायालय को सम्पत्ति की पहचान के संबंध में उचित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है. इस उद्देश्य के लिए कमिश्नर की नियुक्ति का मतलब सबूत इकट्ठा करना नहीं है. खासकर जब वादी यह तर्क दे रहे हैं कि प्रतिवादी भौतिक विशेषताओं को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, उक्त कमिश्नर द्वारा नोट किया गया है, यह न्यायालय को भौतिक पहचान को समझने में सक्षम बनाता है. मुकदमे की तारीख और उसके बाद के किसी भी विलोपन को अदालत द्वारा मुकदमे के दौरान आसानी से जाना जा सकता है.
इसके लिए कोर्ट कमिश्नर वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी भी करता है. इसके बाद तयशुदा समय में जो देखा और जो समझा रहता है वह रिपोर्ट बनाकर अदालत में दाखिल करता है. इसके बाद अदालत उस मुकदमे को आगे बढ़ाने की दिशा तय करती है.
क्या होता है इसमें पुलिस का रोल
कोर्ट कमीशन में पुलिस और प्रशासन का काम या रोल सिर्फ कोर्ट कमिश्नर कार्यवाही को बिना किसी अवरोध के पूरा कराना होता है. यानी कुल मिलाकर कोर्ट कमिश्नर सर्वे में सरकार का कोई रोल नहीं होता है. कोई भी पक्ष सरकार पर परेशान करने या पक्षपात करने का आरोप लगाता है तो ये कानूनी लिहाज से सही साबित नहीं होता है क्योंकि यह पूरी तरह से अदालती कार्यवाही है.