Ayodhya News: वृंदावन (Vrindavan) के संत सदगुरु श्री ऋतेश्वर (Saint Riteshwar) ने अयोध्या में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे महंत नरेंद्र गिरि की मौत (Mahant Narendra Giri Death) को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि, अगर उन्होंने आत्महत्या की है तो इसका समर्थन नहीं किया जा सकता. अगर उनसे कोई गलत कार्य हुआ भी हुआ तो उन्हें विश्वामित्र की तरह पुनः खड़ा होकर राम के गुरु बनने के बारे में सोचना चाहिए था, लेकिन उन लोगों को कठोर सजा जरूर देनी चाहिए जिन्होंने उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर किया.
शिक्षा पद्धति को दिया दोष
इसी के साथ उन्होंने इस तरह की समाज में घट रही घटना का सारा दोष लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को दिया और कहा कि"बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया 'भारत मैकाले की शिक्षा पद्धति में पल रहा है. गुरुकुल की शिक्षा पद्धति नहीं है. मंदिरों और मठों के वह शिष्य भी जो पढ़ कर के आ रहे हैं, वह गुरुकुल से पढ़कर नहीं आ रहे इसलिए सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैकाले की शिक्षा पद्धति को समाप्त करें. गुरुकुल शिक्षा पद्धति लागू की जाय और समान नागरिक संहिता लागू की जाय.
दोषियों को कठोर सजा मिले
परंतु दुखद कह देने से यह मिटेगा नहीं. सबसे बड़ी बात क्या है, सबसे बड़ी बात अगर आत्महत्या हुई तो मुझे लगता है विश्वामित्र की तरह जीवन में अगर किसी से कभी गलत हो तो पुनः खड़ा होकर राम के गुरु बनने के विषय में सोचना चाहिए. इसलिए आत्महत्या का समर्थन हम नहीं कर सकते. यद्यपि जिन लोगों ने मजबूर किया होगा उनको कठोर से कठोर सजा देनी चाहिए और अगर यहां हत्या हुई तो यह कोई बड़ी बात नहीं है. बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया. भारत मैकाले की शिक्षा पद्धति में पल रहा है, गुरुकुल की शिक्षा पद्धति नहीं है. आज जो आश्रमों समूह में जो भी लोग पढ़ कर आ रहे हैं वो कॉन्वेंट की शिक्षा मैकाले की शिक्षा लेकर आ रहे हैं. उनकी दृष्टि धन पर, नारी पर, सत्ता पर रहती है.
रोज हो रही हैं ऐसी घटनाएं
तमाम ऐसी घटनाएं वृंदावन में रोज होती हैं. रोज आश्रम कब्जे किए जा रहे हैं, माफियाओं के द्वारा संतों की हत्या की जा रही है. नारी को खड़ा करके उनको बदनाम करके उनको ब्लैक मेलिंग किया जाता है. यह कोई पहली घटना नहीं है. यह तो अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे, इस नाते इतना मामला उठ गया और शायद भारत के लिए अच्छा है कि, भारत में रोकथाम अब हो जाएगी. इसके दो कारण हैं एक तो कानूनी कारण और दूसरा सामाजिक कारण दोनों पर बहुत लंबा विचार करना होगा.
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