Uttarakhand Landslide: उत्तराखंड और हिमाचल में लगातार हो रही बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही है. जिसकी वजह से हिमाचल में भूस्खलन से होने वाली बर्बादी के आंकड़ों के साथ जनहानि में भी बढ़ोतरी हो रही है. तो वहीं उत्तराखंड में भी बारिश का कहर लगातार जारी है. इस बीच वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक लगातार बारिश से हो रही तबाही को रोकने की कोशिश में लगे हुए हैं. जिस कारण वैज्ञानिक आपदा प्रभावित इलाकों में पहुंच कर बारिश से हो रही तबाही को रोकने के लिए रिसर्च कर रहे हैं.


वाडिया इंस्टिट्यूट के निदेशक काला चंद साई के मुताबिक पहाड़ों पर पानी की निकासी के लिए प्रॉपर मैनेजमेंट नहीं है. जिसके चलते घरों, होटलों के किचन, बाथरूम से निकलने वाला वेस्ट पानी धीरे-धीरे पहाड़ों में ही रिसने की वजह से मट्टी का कटाव करता रहा है. जिससे जमीन कमजोर पड़ गई और अत्यधिक बरसाती पानी आने से हमें कई जगहों पर भूधंसाव देखने को मिला है.


वाडिया संस्थान ने बताई भूस्खलन के पीछे की वजह


हालांकि सिर्फ बरसाती पानी और सालों से पहाड़ों में वेस्ट पानी का रिसाव ही इस भूस्खलन की वजह नहीं है. भूधंसाव के पीछे एक साथ कई वजह हैं, जिसमें क्लाइमेट चेंजिंग, असीमित तरीके से कंक्रीट के पक्के निर्माण, बहुमंजिले इमारत भी बड़ी वजह है. इसके साथ कैसे ग्लोबल वार्मिंग को कम किया जाना चाहिए इस पर वैज्ञानिक ने अपनी राय रखी है.


बढ़ती आबादी के कारण भी हो रहा नुकसान


गौरतलब है कि पहाड़ों पर पिछले कुछ दशकों में तेजी से आबादी बढ़ी है. जिसके चलते पहाड़ों के कटान, पेड़ों का कटान में तेजी आई है. जिससे मिट्टी का बहाव होने लगा. इसके साथ ही पहाड़ और जंगलों में प्रदूषण की वजह से वातावरण में हुए बदलाव भी इसके लिए जिम्मेदार हैं. ये सभी वजह पहाड़ों और जंगलों के पतन की वजह बन रहे हैं.  फिलहाल पहाड़ और जंगलों को सुरक्षित रखना है तो इन्सानों को अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव लाने पड़ेंगे. तभी आने वाले कल का भविष्य भी सुरक्षित हो सकेगा.


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