Uttarakhand News: उत्तराखंड में सड़क और सुरंग निर्माण परियोजनाओं के लिए पहाड़ों को काटने और भेदने में विस्फोटकों का उपयोग बढ़ गया है. हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान एक महत्वपूर्ण तकनीकी समस्या सामने आई है: विस्फोट की ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा पत्थरों को तोड़ने के बजाय बाहर की ओर बर्बाद हो जाता है. इससे न केवल निर्माण कार्य की दक्षता कम होती है बल्कि पहाड़ों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है. 


विस्फोट के कारण पहाड़ों में कंपन का दायरा 400 मीटर तक फैल सकता है, जिससे भूस्खलन और भू-धंसाव जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं. इसके अलावा, मकानों की दीवारों, छतों और फर्शों में दरारें आ सकती हैं. हाल ही में जोशीमठ में ऐसी घटनाओं की गंभीरता को देखते हुए, वैज्ञानिकों ने शॉक कंट्रोल आधारित नोनल डेटोनेशन सिस्टम का प्रयोग करने की सिफारिश की है. इस तकनीक से कंपन का दायरा 300 मीटर तक कम किया जा सकता है, जिससे पहाड़ों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है और निर्माण कार्य की प्रभावशीलता में सुधार हो सकता है


इसी तरह हाल ही में बागेश्वर जिले में भी दो दर्जन से अधिक घरों में दरारें आ गई थीं. इन घटनाओं ने पहाड़ पर रह रहे लोगों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. ऐसे में जहां-जहां आपदा के चिह्न भवनों और पहाड़ों में दरारों के रूप में सामने आ रहे हैं, वहां लोग निर्माण में इस्तेमाल किए जा रहे विस्फोटकों को जिम्मेदार बताते रहे हैं. हालांकि, परियोजना से जुड़े अधिकारी विस्फोट से पहाड़ को किसी तरह के नुकसान होने की आशंका से इन्कार करते रहे हैं.


भविष्य की योजनाएँ
सही तकनीकी का उपयोग न केवल निर्माण कार्य को सुगम बनाएगा बल्कि पर्यावरणीय जोखिमों को भी कम करेगा. उत्तराखंड में पहाड़ों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक है कि भविष्य की परियोजनाओं में उन्नत विस्फोटक तकनीकों का उपयोग किया जाए. इससे ना केवल भूस्खलन की घटनाओं को नियंत्रित किया जा सकेगा, बल्कि क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिरता भी बनी रहेगी. इस प्रकार, पहाड़ी राज्यों के विकास के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना न केवल निर्माण कार्य की गुणवत्ता को बढ़ाएगा बल्कि पहाड़ों के पारिस्थितिकी तंत्र को भी सुरक्षित रखेगा.


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