Azadi Ka Amrit Mahotsav: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशा होगा, कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे, जब अपनी ही जमीन होगी और अपना आसमां होगा. पंडित जगदंबिका प्रसाद हितेषी की यह पंक्तियां आजादी के नायकों के लिए उस समय किसी हथियार से कम नहीं थीं. काकोरी कांड कर अंग्रेजों की चूलें हिला देने वाले उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के शाहजहांपुर (Shahjahanpur) के अमर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil), अशफाक उल्ला खां (Ashfaq Ulla Khan) और ठाकुर रोशन सिंह को एक साथ अंग्रेजों ने फांसी तो दे दी लेकिन उनकी फांसी के बाद पूरे देश में आजादी के परवानों ने जिस तरह से आजादी के लिए आंदोलन शुरू किया उससे अंग्रेजों को 1947 में देश को छोड़कर भागना पड़ा.


गोरखपुर में दी गई थी राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian independence movement) क्रांतिकारी धारा के प्रमुख सेनानी थे जिन्हें 30 वर्ष की आयु में अंग्रेज सरकार ने फांसी की सजा दे दी थी. वे मैनपुरी षडयंत्र एवं काकोरी कांड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे. इसके साथ ही वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य भी थे. उनका जन्म 11 जून 1897 को शाहजहांपुर जनपद में हुआ था. उनकी मृत्यु की जगह और तारीख 19 दिसंबर 1927 गोरखपुर जेल थी जहां उन्हें फांसी दी गई थी. पंडित जी के पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी आंदोलन के प्रमुख सहयोगी अशफाक उल्ला खां उन्हें राम कहकर बुलाते थे इसलिए पंडित जी का उपनाम राम भी कहा जाता था. 


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19 वर्ष की आयु में क्रांतिकारी मार्ग पर रखा कदम
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषी इतिहासकार और साहित्यकार भी थे. उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था. उन्होंने 1916 में 19 वर्ष की आयु में क्रांतिकारी मार्ग पर कदम रखा था. 11 वर्ष के क्रांतिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित भी किया. उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिए किया गया. उनके जीवन काल में 11 पुस्तकें प्रकाशित हुईं जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा जब्त कर ली गईं थीं. बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रांत आगरा अवध की लखनऊ सेंट्रल जेल की 11 नंबर बैरक में रखा गया था. इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियों को एक साथ रखकर सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था. 




राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की दोस्ती
क्रांतिकारी विचारधारा को लेकर आगे बढ़ रहे हैं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आने पर अशफाक उल्ला खां को पंडित जी ने काफी मना किया और कहा कि आपके परिवार के लोग ऊंचे पदों पर हैं इसलिए आपका हमारे साथ रहना ठीक नहीं है लेकिन राष्ट्रवादी विचारधारा से ओतप्रोत अशफाक उल्ला खां पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर क्रांतिकारी विचारधारा को लेकर सिर्फ आगे ही नहीं बढ़े बल्कि फांसी के फंदे तक उनका साथ निभाया. ऐसी थी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां की दोस्ती.




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