Shaili Singh: स्पोर्टस कॉलेज से नहीं मुफलिसी से निकले हैं खिलाड़ी, पढ़ें शैली सिंह के संघर्ष की कहानी
Long Jumper Shaili Singh: झांसी के शैली सिंह ने अंडर-20 लॉन्ग जंप में सिल्वर मेडल जीतकर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा. हालांकि, इन सबके पीछे उनका कठिन संघर्ष है.
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Long Jumper Shaili Singh From Jhansi: देश में बड़े-बड़े स्पोर्टस कॉलेज (Sports College) हैं, सरकारें अरबों रुपए इन पर पानी की तरह पैसा बहाती हैं. लेकिन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मुफलिसी से निकल रहे हैं. अंडर 20 लॉन्ग जंप (Under 20 Long Hump) में सिल्वर मेडल हासिल करने वाली शैली सिंह (Shili Singh) की कहानी बहुत पीड़ादायक है. आरएसएस के सरस्वती शिशु मंदिर से स्कूली शिक्षा प्रारंभ हुई, वर्तमान में अंजू बॉबी (Anju Bobby George) जॉर्ज के बेंगलुरू (Bengaluru) स्थित स्पोर्ट्स कॉलेज में अध्ययनरत हैं.
ननिहाल में बीता बचपन
झांसी से 22 किमी दूर पारीछा गांव में मां विनीता सिंह के साथ ननिहाल में रही शैली सिंह के पिताजी कैलाश सिंह मध्यप्रदेश के दतिया जिले के कस्बा इंदरगढ़ के रहने वाले हैं. निजी कारणों से माता-पिता अलग हो गए. शैली सिंह की एक बड़ी बहन सानू बनारस में प्राइवेट जॉब करती हैं, छोटा भाई इसू 14 वर्ष ननिहाल में ही रहता है. शैली सिंह की स्कूली शिक्षा आरएसएस के संगठन विद्या भारती के सरस्वती शिशु मंदिर से प्रारंभ हुई. कक्षा छह से ही आरएसएस के ही विद्यालय सरस्वती विद्या मंदिर में शैली सिंह की लॉन्ग जंप देखकर गेम्स टीचर राहुल शर्मा को शैली में बहुत बड़ा खिलाड़ी नजर आ गया. रनिंग में लॉन्ग जंप में आरएसएस के विद्यालय ने शैली सिंह को प्रोत्साहित करने के लिए गोल्ड मेडल दिए. 2016 में शैली सिंह कक्षा 9 में थी, यही उसका टर्निंग प्वाइंट था. झांसी के ध्यानचंद स्टेडियम में लखनऊ स्पोर्टस कॉलेज के लिए ट्रॉयल चल रहा था. यहां उसका चयन हो गया. लखनऊ स्पोर्ट्स कॉलेज से अंजू बॉबी जॉर्ज के बेंगलुरू स्थित स्पोर्ट्स कॉलेज के लिए उसका चयन हो गया.
स्कूल की फीस जमा करने के नहीं होते थे पैसे
शैली सिंह के पिता से अलग होने के बाद मां विनीता सिंह अपने मायके में रहने लगी. अजीविका चलाने के लिए वह खुद परिश्रम करती थीं, घर पर ही वे सिलाई कढ़ाई का कार्य करके तीन बच्चों का पालन करती थीं. कभी-कभी शैली के पास स्कूल की फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं रहते थे. इस कारण विद्या भारती के विद्यालय सरस्वती विद्या मंदिर ने इसकी फीस माफ कर दी थी. शैली के पास पहनने के लिए जूते नहीं रहते थे. गांव के आसपास के ही सामाजिक लोग उसके जूतों की व्यवस्था करते थे.
शैली के संस्कृत के अध्यापक विजयकांत ने बताया कि, एक बार वह शैली के घर गए थे तो शैली की मां ने कहा था कि बेटी खेलना चाहती है. आपके विद्यालय में अगर खेलकूद की व्यवस्था हो तो हम आगे की शिक्षा के ही विद्यालय में कराना चाहेंगे. उसकी बात को गंभीरता से लेकर हमने शैली पर पूरा ध्यान दिया.
शैली की सहेली, इसके घर हमेशा रुकती थी...
सरस्वती विद्या मंदिर की तरफ से शैली ने इलाहाबाद, पुणे कानपुर आदि में खेला. शैली सिंह को लंबी कूद ऊंची कूद और दौड़ में महारत हासिल है. शैली की सहेली नारायणी वशिष्ठ को उम्मीद है कि, पेरिस में 2024 में ओलंपिक होगा, उसमें वह पार्टिसिपेट जरूर करे.
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