Shamli News: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) ने ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग की स्थापना के माध्यम से सुनहरे भारत का सपना देखा था लेकिन आज बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों की स्थापना के बाद हमारे परंपरागत ग्रामीण कुटीर उद्योग दम तोड़ रहे हैं. प्राचीन काल में शादी विवाह से लेकर घरेलू कामकाज में प्रयोग में लाए जाने वाले मिट्टी के बर्तन से संबंधित उद्योग आज आर्थिक मंदी के कारण दम तोड़ रहा है.


इससे जुड़ा हुआ कुम्हार वर्ग आज अपनी दो वक्त की रोटी के लिए खेत से लेकर सड़क तक संघर्ष कर रहा है लेकिन ना ही तो उनके पास बर्तन बनाने के लिए मिट्टी है औऱ ना ही बेचने के लिए कोई जगह है. इनका आरोप है कि सरकार भी उनकी इस जीविका की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है.


सुनील कुमार ने सुनाई अपनी आपबीती


सुनील कुमार का मिट्टी के बर्तन बनाने का पुश्तैनी धंधा है, लेकिन आज यह धंधा इनकी आमदनी का साधन नहीं बल्कि इनकी मजबूरी है क्योंकि यह इनकी रोजी रोटी का सवाल है. मेहनत अधिक करनी पड़ती है. बर्तन बनाने में लागत भी काफी अधिक आती है और जब सड़कों से गुजरता है  तो आदमी बर्तन देखकर यह कह कर चला जाता है यह मिट्टी का ही तो है, इतना महंगा क्यों?


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सुनील का कहना है की मिट्टी खोदना, उसे तैयार करना, बाद में चॉक पर चढ़ा कर उसे बर्तन के रूप में ढालना और फिर उसको आग में पकाना होता है और उसके बाद उसे रंगों से सजाना भी होता है. कई प्रक्रिया से गुजर कर मिट्टी के यें बर्तन तैयार किए जाते हैं. लेकिन हम सड़क पर कड़कड़ाती हुई धूप में बैठे हुए हैं. हमारे पास कोई शोरूम नहीं है. 12 महीने में केवल 4 महीने बिक्री होती है. इस काम में लागत अधिक आती है जबकि आमदनी अधिक नहीं है. पुश्तैनी काम है कोई और व्यवसाय नहीं कर सकते. इसलिए मजबूरी में यही पुश्तैनी काम पर निर्भर रहना पड़ता है.


विधायक ने दिया आश्वासन


इनकी समस्या को जानने के लिए स्थानीय विधायक प्रसन्न चौधरी ने मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों से भेंट की तथा उनसे उनकी समस्या के बारे में जानकारी हासिल की. विधायक ने आश्वासन दिया कि वह विधानसभा सहित अन्य माध्यमों से उनकी समस्या को समाधान कराने का प्रयास करेंगे. विधायक का कहना था कि सरकार की गलत नीतियों के कारण आज हमारे सैकड़ों कुटीर उद्योग दम तोड़ रहे हैं तथा उनसे जुड़े हजारों कामगार बेरोजगार हो रहे हैं सरकार को इन उद्योगों की तरफ ध्यान देकर इन्हें पुनर्जीवित करना चाहिए.


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