शनि की साढ़े साती के बारे में जानिये सब कुछ, किस अंग पर कैसा होता है प्रभाव
शनि की साढ़े साती से व्यक्ति के शरीर के अलग अलग हिस्से प्रभावित होते हैं। दांयी भुजा पर जब यह आता है तब बड़ी सफलता देने वाला होता है।
शनि की साढ़े साती का नाम आते ही कई लोगों के मन में भय व्याप्त हो जाता है। इसका प्रभाव अच्छे से अच्छा और बुरे से बुरा होता है। शनि के गोचर की बात की जाये तो 15 नवंबर 2011 को शनि के तुला राशि में प्रवेश के साथ ही वृश्चिक राशि की साढ़ेसाती आरंभ हुई थी जो अब 24 जनवरी की रात्रि शनिदेव के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही समाप्त हो जाएगी। सामान्य रूप से मार्गी-वक्री गोचर करते हुए शनिदेव एक राशि में 2700 दिन तक विचरण करते हैं किन्तु कई बार यह अवधि वक्री-मार्गी होते होते इसे भी पार कर जाती है। किसी भी राशि पर जिस पर साढ़ेसाती आरंभ होने वाली हो उस राशि के किस अंग पर इसका विचरण होता है यदि आप इसे समझकर अपनी योजनाओं को बनाएं और उपाय करें, तो आपके लिए अनुकूल रहेगा।
साढ़ेसाती के आरंभ होते ही इसका प्रथम प्रभाव 100 दिनों तक मनुष्य के मुख पर रहता है जो बेहद कष्ट कारक होता है। शनि के आरंभ का यह समय इतना पीड़ा देने वाला होता है कि व्यक्ति शनिदेव की साढ़ेसाती के नाम से घबराता है। उसके पश्चात 400 दिनों तक इसका प्रभाव प्राणियों के दाहिनी भुजा पर रहता है, जो सर्वथा विजयश्री दिलाता है। भारत के अधिकतर बड़े बड़े नेता साढ़ेसाती की इसी अवधि में सर्वोच्च शिखर तक पहुंचे हैं। इस अवधि में किए गए सभी संकल्प-कार्य पूर्णतया सफल रहते हैं।
उसके पश्चात 600 दिनों तक इसका प्रभाव मनुष्य के चरणों में रहता है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति देश-विदेश की यात्राएं करता है। समाज में प्रतिष्ठित लोगों से मेलजोल बढ़ता है और व्यापार एवं नौकरी आदि में अच्छी उन्नति तथा मकान-वाहन के सुख भोगता है। इसके ठीक बाद 500 दिनों तक साढ़ेसाती का प्रभाव मनुष्य के पेट पर रहता है, जो हर प्रकार से लाभदायक सिद्ध होता है स्वास्थ्य अच्छा रहता है और अनेकों स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद मिलता है। साढ़ेसाती का यह समय व्यक्ति के कामयाबियों के लिए अति शुभ फलदाई रहता है।
दोबारा 400 दिनों तक साढ़ेसाती का प्रभाव प्राणियों के बाईं भुजा पर रहता है, जो बेहद कष्टकारक रहता है, इस अवधि में व्यक्ति यह निर्णय लेने में विवश दिखाई देता है कि उसे करना क्या है और कहीं न कहीं वह निराश और परेशान हो जाता है।
उसके बाद 300 दिनों तक इसका प्रभाव व्यक्ति के मस्तक पर रहता है, जिसके फलस्वरूप प्राणियों के कार्य व्यापार में उन्नति सामाजिक प्रतिष्ठा, पद और गरिमा की वृद्धि होती है। इस अवधि में व्यक्ति जहां भी जाता है उसे कामयाबी और यश ही प्राप्त होता है। उसके उपरांत 200 दिन साढ़ेसाती का प्रभाव मनुष्य के नेत्रों पर रहता है, जिस के शुभप्रभाव के फलस्वरूप वह तीर्थ यात्रा, यज्ञ, जप-तप, पूजा-पाठ, दान पुण्य आदि सभी तरह के अच्छे कर्म करता है उसे घर परिवार में मांगलिक कार्यों से सुख मिलता है।
उसके उपरांत 200 दिनों तक साढ़ेसाती का अंतिम चरण होता है इस अवधि में ये जीवात्माओं के गुदा स्थान पर रहती है जिसके फलस्वरूप उसे मानसिक पीड़ा एवं कष्टों का सामना करना पड़ता है। साढ़ेसाती का यह कालखंड इस तरह से रहता है कि इसके मध्य आई परेशानियों को व्यक्ति जीवनपर्यंत याद रखता है। वर्तमान में साढ़ेसाती का अंतिम 200 दिन के कालखंड में वृश्चिक राशि पर चल रहा है जो 24 जनवरी को समाप्त हो जाएगा और वृश्चिक राशि इससे मुक्त हो जायेगी।
शनि के दुष्प्रभव से बचने के लिये ये करें उपाय यदि आप पर किसी भी तरह शनि प्रकोप चल रहा हो, चाहे वो महादशा हो, अन्तर्दशा हो, प्रत्यंतर दशा हो, सूक्ष्मदशा या प्राणदशा हो गोचर में अशुभ हों, मारक दशा हो, शाढ़ेसाती, ढैया और योगिनियों में उल्का की दशा हो तो, इन सबके कुप्रभाव से बचने का श्रेष्ठ उपाय है कि आप पीपल वृक्ष के साथ साथ अन्य फलदार वृक्ष लगाएं और शनि स्तोत्र, शनि कवच या इनका वैदिक मंत्र जाप करें इससे शनि जन्य दोषों से मुक्ति मिलती है।