ज्योतिष शास्त्र में कुंडली में शनि की स्थिति, दशा, महादशा, अंतर्दशा, शनि की साढ़े साती और ढैय्या को देखा जाता है। कुंडली में शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है। किसी एक राशि में शनि ढाई वर्षों तक रहता है। शनि की साढ़े साती से सारे लोग डरते हैं और यही कामना करते हैं।


शनि को न्याय का देवता भी कहा जाता है और ऐसी मान्यता है कि शनि देव मेहनती और ईमानदार लोगों पर जल्दी कृपा बरसाते हैं। ज्योतिष गणना के अनुसार शनि किसी भी व्यक्ति के जीवन काल में एक से लेकर दो बार शनि की साढ़े साती जरूर आती है।


नवग्रहों में शनि ही एक मात्र ऐसे ग्रह हैं जो सभी के प्रति सम भाव रखते हुए उनके कर्मों का फल देते हैं। अगर आपके कर्म बेहतर हैं तो शनि की कृपा से आप और अधिक उन्नति करेंगे।



शनिदेव एक राशि से दूसरी राशि में जाने के लिए करीब ढाई वर्ष का समय लेते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनि जिस भी राशि में होते हैं, उसका प्रभाव उस राशि पर तो रहता ही है, साथ ही राशि चक्र में पहले और बाद की राशि पर पड़ने से शनि की अवधि कुल मिलाकर साढ़े सात वर्ष तक होती है। इसलिए इस अवधि को शनि की साढ़े साती के नाम से पुकारा जाता है।


जैसे कि 24 जनवरी 2020 से शनि मकर राशि में भ्रमण करेंगे। ऐसे में उसके पहले की राशि यानी धनु में शनि की साढ़े साती का अंतिम चरण, मकर राशि पर दूसरा चरण और कुंभ राशि पर शनि की साढ़े साती का पहला चरण शुरू हो जाएगा। दूसरा चरण जातक के लिए सबसे कष्टदायी समझा जाता है। ऐसे में मकर राशि के लोग इस शनि के इस घेरे में आएंगे।



शनि की साढ़े साती का दूसरा चरण सबसे घातक माना गया है। जिस किसी के ऊपर ये चरण रहता है उसके जीवन में उसको तमाम तरह की परेशानियां आती हैं। साढ़े साती के तीसरे चरण में व्यक्ति को सुख-सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता। आमदनी कम होती है और खर्चे ज्यादा खर्च होते हैं। सेहत से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वाद-विवाद के योग बनते हैं।