हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक प्रकृति में मौजूद सभी अवयवों का अपना महत्व होता है। चंद्रमा की भी हम देवता के रूप में पूजा करते हैं। शरद पूर्णिमा का त्योहार भी चंद्रमा के पूजन से जुड़ा है। आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। महारास की रात्रि शरद पूर्णिमा की महिमा का वर्णन प्राचीन धर्मग्रंथों में अलग अलग रूप में मिलता है। इसी दिन से सर्दियों का आरंभ माना जाता है। अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के अधिक निकट होने से बलवान होगा। चंद्रमा की किरणों की छटा धरती को दूधिया रोशनी से नहलाएगी। इस छटा के बीच पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है।


मान्यता है कि इस दिन सोलह कलाओं से युक्त चंद्रमा से अमृत बरसता है। महिलाएं शाम ढलने के बाद पूजा-अर्चना करती हैं। छत पर अल्पना बनाकर गन्ना, खीर रखी जाती है। यह भी मान्यता है कि रात में धवल रोशनी में रखी गई खीर खाने से पित्त रोग से छुटकारा मिलता है।


शरद पूर्णिमा की तिथ‍ि और शुभ मुहूर्त


शरद पूर्णिमा तिथि: रविवार, 13 अक्‍टूबर 2019
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 अक्‍टूबर 2019 की रात 12 बजकर 36 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्‍त: 14 अक्‍टूबर की रात 02 बजकर 38 मिनट तक
चंद्रोदय का समय: 13 अक्‍टूबर 2019 की शाम 05 बजकर 26 मिनट

शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व


शरद पू्र्णिमा की रात को खुले आसमान के नीचे प्रसाद बनाकर रखने का वैज्ञान‍िक महत्व भी है। इस समय मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा होता है, यानी मॉनसून का अंत और ठंड की शुरुआत। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा धरती के बहुत नजदीक होता है। ऐसे में चंद्रमा से न‍िकलने वाली कि‍रणों में मौजूद रासायनिक तत्व सीधे धरती पर आकर ग‍िरते हैं, ज‍िससे इस रात रखे गये प्रसाद में चंद्रमा से न‍िकले लवण व विटामिन जैसे पोषक तत्‍व समाह‍ित हो जाते हैं।


विज्ञान के अनुसार दूध में लैक्टिक एसिड होता है। यह किरणों से शक्ति का शोषण करता है। चावल में मौजूद स्टार्च इस प्रक्रिया और आसान बनाता है। ये स्‍वास्‍थ्‍य के ल‍िए बहुत फायदेमंद है। ऐसे में इस प्रसाद को दूसरे द‍िन खाली पेट ग्रहण करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। सांस संबंधी बीमार‍ियों में लाभ म‍िलता है। मान‍सिक परेशान‍ियां दूर होती हैं।