वाराणसी, एबीपी गंगा। शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ मंदिर में उमड़ी। भक्तों ने माता से देश समाज और परिवार के सुख शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना की। शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी के दर्शन का विधान है।


मान्यता के अनुसार माता ब्रह्मचारिणी का उद्भव ब्रह्मा जी के कमंडल से हुआ था। ब्रह्माजी सृष्टि के सृजक हैं उनकी शक्ति के रूप में माता ब्रह्मचारिणी हैं। मानस पुत्रों से सृष्टि विस्तार नहीं हो सका तो ब्रह्मा जी की इसी इन्हीं शक्ति ने सृष्टि का विस्तार किया। माता ब्रह्मचारिणी ज्ञान वैभव व ध्यान की अधिष्ठात्री देवी हैं। माता एक हाथ में कमंडल और दूसरे में रुद्राक्ष की माला धारण करके भक्तों का कल्याण करती हैं। सच्चे दिल से माता की आराधना करने वालों की मां ब्रह्मचारिणी हर मनोकामना सिद्ध करती हैं।


देर रात से ही भक्तों की भीड़ मां के दर्शन के लिए अपनी बारी का इंतजार करते हाथों में श्रद्धा के पुष्प और मन में एक ही आस्था मां का आशीर्वाद मिले और सभी का कल्याण हो सभी के मुंह से माता की जय कारे से पूरा वातावरण भक्तिमय स्वर से गुंजायमान हो रहा था।
मां दुर्गा की नौ शक्तियों में दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है, यहां ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या है ब्रह्मचारिणी तप का आचरण करने वाली देवी ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थी तब इन्होंने नारद के उपदेश से भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। तपस्या के कारण तपस चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया।


ब्रह्मचारिणी मंदिर के पुजारी राजेश्वर सागरकर ने बताया कि शारदीय नवरात्र के द्वितीया तिथि को माता ब्रह्मचारिणी का दर्शन होता है। माता के दर्शन पूजन से विशेष फल की प्राप्ति होती है, भगवती का जप करने से नवचंडी पाठ करने से या सपाद लक्ष्य जप करवाने से माता प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। माता भगवती को नारियल चढ़ाने से सभी कामनाएं और मनोरथ पूर्ण होते हैं। माता को नैवैद्य में खीर का भोग अत्यंत प्रिय है।