शारदीय पूर्णिमा का महत्व और पूजन विधि
एबीपी गंगा के एस्ट्रो शो समय चक्र में एस्ट्रो फ्रेंड शशिशेखर त्रिपाठी ने शारदीय नवरात्रों के महत्व और लक्ष्मी पूजन विधि के बारे में बताया।
शशिशेखर त्रिपाठी। केवल दीपावली पर ही लक्ष्मी पूजन सभी करते हैं परंतु इस तथ्य से भी हमें अवगत होना होगा कि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की रात्रि में देवी लक्ष्मी को जगतिः अर्थात् कौन जाग रहा है? ऐसा कहते हुए विचरण करती है। जो जाग रहा होता है, उस पर भी कृपालु होकर उसके यहां निवास करती हैं अतः लक्ष्मी प्राप्ति के उद्देश्य से शरद पूर्णिमा के दिन भी व्रत का विधान है। इस पूर्णिमा के व्रत में (चतुर्दशी की रात्रि को) ऐरावत हाथी पर आसीन इन्द्र और महालक्ष्मी का पूजन कर अगले दिन उपवास करना चाहिए।
रात्रि के समय धूप दीप आदि से देव मंदिर, बाग-बगीचे, तुलसी तथा अश्वत्थ आदि वृक्षों को पूजा जाना चाहिए। पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल इंद्र का पूजन कर गरीबों को भोजन कराकर दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। दर्शकों इस दिन श्री सूक्त ,लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ भी किया जाता है।
शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा की चांदनी में अमृत का वास रहता है इसलिए उसकी किरणों में अमृतत्व एवं आरोग्य की प्राप्ति भी होती है। इस दिन खीर बनाकर चंद्रमा की चांदनी में ठंडी की जाती है। इस खीर को सभी में बांट दिया जाता है। कमजोर चंद्रमा-आनार की लकड़ी- केसर-ओम चंद्र चंद्राय नमः ।
धर्म और अध्यात्म के अनुसार पूर्णिमा और पूर्णिमा के आसपास के दिनों में प्राकृतिक वातावरण में दैवीय शक्ति और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी तत्वों से युक्त होता है। दांपत्य जीवन खराब वालों को इस दिन साथ बैठना चाहिए। चंद्रमा और श्रीकृष्ण को सफेद फूल जैसे सफेद गुलाब, चंपा, चमेली, चांदनी कुमुदनी, सफेद मोती, सफेद फल, सफेद चमकीले वस्त्र, सफेद अनाज जैसे चावल, सफेद मिठाई जैसे खीर आदि चढ़ाएं।
- महालक्ष्मी को पीली और लाल सामग्री चढ़ाएं। - मोर पंख को बांसुरी में बांधकर पूजन करें। - अकाशीय बत्ती लगाई जाती है