UP Election 2022: श्रावस्ती में लकड़ी का पुल बना इस बार का चुनावी मुद्दा, ग्रामीणों की चेतावनी- पुल नहीं तो वोट नहीं
आज़ादी के इतने सालों बाद भी श्रावस्ती जिले के इकोना क्षेत्र के लोग अभी भी विकास की राह देख रहे हैं. उन्हें अपने तहसील तक जाने के लिए राप्ती नदी पर बांस के डंडों और घास से बने पुल से होकर गुज़रना पड़ता है
Shravasti News: देश को आजाद हुए सात दशक बीत चुके हैं. देश डिजिटल इंडिया की तरफ तेज़ी से बढ़ रहा है. लेकिन भारत में कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां आज भी विकास की किरण नहीं पहुंची है. वहां के लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. ऐसे ही विकास की राह देख रहा है, श्रावस्ती जिले में राप्ती नदी पर स्थित ककरा घाट. इस घाट को पार कर के रोजाना सैकड़ों लोग अपने रोज़मर्रा के कामों के लिए इकोना तहसील पहुंचते हैं. लेकिन वहां कोई पुल न होने के कारण, उन लोगों को रोजाना जान जोखिम में डाल कर नदी पार करते हैं.
पुल न होने के कारण ऐसे नदी पार करते हैं ग्रामीण
श्रावस्ती जिले में स्थित इकौना क्षेत्र में राप्ती नदी पर कोई पुल नहीं बना है. इस जगह कोई पुल ना होने के कारण, सैकड़ों लोग लकड़ी के पुल को पार करके लोग हर रोज इकौना तहसील पहुंचते हैं और अपना काम निपटाते हैं. नदी को पार करने की समस्या के निदान के लिए ग्रामीणों ने खुद अपने आने जाने के लिए एक लकड़ी का पुल बनाया है. इस लकड़ी के पुल को बनाने में बांस के डंडों से और नदी के कछार में लगी घास का इस्तेमाल किया गया.
जिस पर हजारों लोग हर दिन आते जाते हैं. वहीं लकड़ी का बना यह पुल इस इलाके के सैकड़ों गांव को जोड़ने का काम करता है. यहां के स्थानीय निवासी हर रोज़ इसे पार करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. लेकिन शासन और प्रशासन की निगाह अभी तक यहां नहीं पहुंची है.
ग्रामीणों का पुल को लेकर यह है कहना
ग्रामीणों को कहना है, आस-पास के सैकड़ों गावों लोग इस पुल से को पार कर अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं. इस पुल से गुजरने वालों के लिए कभी-कभी यह मौत का पुल बन जाता है. लेकिन शासन और प्रशासन की निगाह अभी तक यहां नहीं पहुंची है. वहीं बरसात में राप्ती नदी विकराल रूप ले लेती है, जिसके बाद यह राप्ती नदी के धारा में बह जाता है. पुल के बहने के बाद ग्रामीणों के समस्याओं में इज़ाफा हो जाता है.
चुनावों में वादे के बाद नेता नहीं पूरी करते वादा
स्थानीय लोगों का कहना है कि चुनाव से स्थानीय लोग इस मौके को भुनाने की कोशिश करते हैं. सभी पार्टियों के नेता चुनाव में जीत के बाद इसको बनवाने का वादा करते हैं. लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके जीतने के बाद और उनकी सरकार बनने के बाद, सभी धरे रह जाते हैं. हम लोग फिर पांच साल तक इस लकड़ी के पुल से अपनी जान जोखिम में डाल कर इस पुल से गुज़रते हैं और अपनी रोजमर्रा के कामों को पूरा करते हैं. हम राह देखते हैं अगले पांच साल इस जगह पर पुल बनने की. वहीं कई लोगों ने abp गंगा से विशेष बातचीत में कहा कि, इस हालत में अब देखने वाली बात ये है कि कौन सी सरकार या कौन सा नेता इस पुल को बनवाने का वायदा पूरा करता है.
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