Ram Mandir: श्रीराम ने ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए इस जगह की थी तपस्या, रौद्र रूप में बहती गंगा भी हो गई थी शांत
Ram Mandir Pran Pratishtha: अयोध्या में 22 जनवरी को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. जिसे लेकर राम भक्तों में उत्साह का माहौल है.
Haridwar News: अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. सनातन धर्म से जुड़े हुए लोगों में इसको लेकर काफी उत्साह देखने को मिल रहा है. आज पूरा देश राम मय नजर आ रहा है. मगर हम आपको आज दिखाने जा रहे हैं वो स्थान जहां ब्रह्म हत्या का दोष लगने के बाद भगवान राम ने तपस्या की थी और उसी के समीप अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था.
धर्म नगरी हरिद्वार भगवान राम खुद अपने परिवार के साथ आए थे और उन्होंने रामघाट पर तपस्या की थी क्योंकि उनके द्वारा रावण का वध किया गया था और रावण एक ब्राह्मण था तो उनको ब्रह्म हत्या का पाप लगा था. भगवान वशिष्ठ ने उनको कहा था कि अगर आप हरिद्वार जाकर तप करें और यहां पर निवास करें तो ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिल जाएगी. तब भगवान राम हरिद्वार आए. तभी से यह स्थान रामानंदी अनुयाइयों के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है.
ब्राह्मण और ऋषि हो गए थे नाराज
ज्योतिष आचार्य प्रतीक मिश्रपूरी का कहना है कि रावण के वध के बाद सभी ब्राह्मण और ऋषि राम से नाराज थे क्योंकि रावण ब्राह्मण था. ऋषियों के कहने के बाद भगवान राम ने अश्वमेध यज्ञ किया मगर उसमें ब्राह्मण और ऋषियों ने दान लेने से मना कर दिया. तब कुछ बच्चों को भगवान राम ने दान दिया और यह सब तीर्थ पुरोहित बनें. इनके द्वारा भगवान राम को आशीर्वाद दिया गया और कहा कि आप बद्रिका वन में जाकर तपस्या करें तो आपको ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी.
ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुए
इसके बाद भगवान बद्रिका वन गए और हरिद्वार के रामघाट पर आकर भी तपस्या की. तब जाकर भगवान राम ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुए. रामघाट पर उस वक्त गंगा रौद्र रूप में बहती थी मगर राम की तपस्या से इस स्थान पर गंगा भी शांत होकर बहने लगी. ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिलने के बाद भगवान श्रीराम ने हरिद्वार में कुशावत घाट पर अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था.
तीर्थ पुरोहित उज्ज्वल पंडित का कहना है कि रामघाट पर स्नान और तपस्या करने के बाद भगवान राम कुशावत घाट पर आए और अपने पिता सहित अपने सभी पूर्वजों का श्राद्ध और दर्पण किया. तभी से जितने भी सनातन परंपरा से जुड़े लोग हैं वो रामघाट पर आकर स्नान और ध्यान करते हैं और फिर कुशावत घाट पर पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण करते हैं.
हरिद्वार मुक्ति का द्वार
राम नाम लिखने से पत्थर भी पानी पर तैरने लगता है. उन्हीं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने ब्रह्म हत्या का पाप लगने पर हरिद्वार में तपस्या की और तभी से जिस व्यक्ति पर ब्रह्म हत्या का पाप लगता है वो इस स्थान पर आकर पाप से मुक्त होने के लिए पूजा अर्चना करता है तो उसको ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाती है. हरिद्वार मुक्ति का द्वार है और यहां आने वाले श्रद्धालु मां गंगा में आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य के भागी भी बनते हैं.
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