(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Siddharthnagar News: शहीद सीआरपीएफ का गांव अभी भी विकास से वंचित, जानिए उनकी हिम्मत और साहस की कहानी
UP News: आजादी के बाद देश की रक्षा करते हुए सिद्धार्थनगर जिले के शहीद का यह गांव आज भी उपेक्षा का शिकार है. सीआरपीएफ में सूबेदार वीरेंद्र मणि त्रिपाठी 44 वर्ष की उम्र में 19 फरवरी 1999 को शहीद हुए थे.
Azadi ka Amrit Mahotsav: आजादी के बाद देश की रक्षा करते हुए सिद्धार्थनगर जिले के शहीद का यह गांव आज भी उपेक्षा का शिकार है. लोटन ब्लाक के भीलोजी गांव के ब्राह्मण परिवार में जन्मे सीआरपीएफ में सूबेदार वीरेंद्र मणि त्रिपाठी 44 वर्ष की उम्र में 19 फरवरी 1999 में मणिपुर के चिल्ली आमघाट नामक जगह पर नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में शहीद हो गए थे. शहीद वीरेंद्र मणि का पार्थिव शरीर गांव भीलोजी आया वहां पूरे परिवार के लोगों ने गर्व के साथ नम आंखों से उन्हें विदाई दी.
पिता भी थे सीआरपीएफ में
शहीद सूबेदार वीरेंद्र मणि के पिता हंस नाथ त्रिपाठी भी सीआरपीएफ में थे. घरेलू जिम्मेदारियों की वजह से 1987 में वीआरएस लेकर वो घर आ गए और अपने चार पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र वीरेंद्र मणि को देश की सेवा के लिए सीआरपीएफ में भेज दिया. देश की सेवा से ओतप्रोत इस परिवार का जज्बा परिवार में शहादत के बाद भी कम नही हुआ.
परिवार ने शहीद वीरेंद्र की दो बेटियों रीता और गीता में से छोटी बेटी रीता को 2014 में सीआरपीएफ में भर्ती करा दिया. जो कि वर्तमान में दिल्ली में अपनी सेवाएं दे रही हैं. कभी देश के लिए खुद सेवा कर चुके बुजुर्ग हंस नाथ त्रिपाठी कहते हैं कि बेटे की शहादत की खबर सुनकर पूरा परिवार स्तब्ध रह गया था. हिम्मत और साहस से इस परिस्थिति का सामना कर पोती को भी देश की सेवा के लिए भेज दिया.
भाई ने बताया कैसे हुए शहीद
शहीद बिरेंद्र मणि त्रिपाठी के छोटे भाई अनिल मणि त्रिपाठी वीरेंद्र मणि की शहादत के बारे में बताते हुए कहते हैं कि मणिपुर में उनके भाई सूबेदार के पोस्ट पर सीआरपीएफ में ड्यूटी पर थे. 19 फरवरी को शाम 5:00 बजे जब वह अपने पांच अन्य साथियों के साथ चिल्ली आमघाट के पास पहुंचे तो वहां पहले से घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने हमला कर दिया.
बहादुरी से लड़ते हुए अपने 5 अन्य साथियों के साथ वह भी वीरगति को प्राप्त हो गए. शहीद वीरेंद्र मणि के भाई को अपने भाई की शहादत पर गर्व है लेकिन शहीद के परिवार और गांव की उपेक्षा का दर्द भी है.
गांव का विकास अभी भी नहीं हुआ
इनका कहना है कि करीब 5 साल बीत जाने के बाद भी जिले के इकलौते शहीद का गांव आज भी उपेक्षित है. अनिल मणि कहते हैं कि आस-पड़ोस और इलाके के लोग तो उनके परिवार को बहुत सम्मान देते हैं और भाई की शहादत से पूरा गांव और परिवार को गर्व भी है. उन्होंने कहा कि गांव में शहीद भाई की याद में एक मूर्ति लगाने और गांव के विकास की मांग आज भी वह कर रहे हैं. शहीद की उपेक्षा का दर्द उनके बातों में आज भी झलकता है.
पड़ोसी ने ये बताया
उनके पड़ोसी कहते हैं कि शहीद का गांव होने के बावजूद इस गांव का विकास नहीं हुआ. पड़ोसी गणेश मणि कहते हैं कि गांव में कम से कम शहीद के नाम पर एक अस्पताल तो बनना ही चाहिए. साथ ही गांव की सड़कें और नालियों की जो दुर्दशा है उसको भी सरकार को सही कराना चाहिए. गणेश मणि बताते हैं कि शहीद के इस गांव में विकास के नाम पर वर्तमान बीजेपी विधायक ने तवर्ण द्वार बनवाया है.
विकास के नाम पर सिर्फ यही एक चीज देखने को अब तक मिली है. जबकि कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री रहते उनकी सरकार में कृषि मंत्री दिवाकर विक्रम सिंह ने गांव को गोद लेकर यहां के संपूर्ण विकास की बात की थी. नाली और सड़कों के निर्माण के साथ शहीद वीरेंद्र मणि के मूर्ति लगाने की भी बात थी लेकिन गांव में सिर्फ नालियों के निर्माण का काम होने के बाद यह योजना भी फाइलों में बंद हो गई.
तब से लेकर आज 22 साल बीत जाने के बाद भी गांव में शहीद लांस नायक वीरेंद्र मणि त्रिपाठी के गांव में शहीद के नाम पर विकास की एक ईंट भी नहीं रखी गई.