Sishamau By Election 2024: उत्तर प्रदेश में उपचुनाव को लेकर हर रोज सियासत गर्म हो रही है, एक तरफ उपचुनाव की तारीखों में फेरबदल कर दिया गया है तो वहीं दूसरी ओर आरोप प्रत्यारोप के दांव पेज भी बदस्तूर जारी है. उपचुनाव में शामिल कानपुर की सीसामऊ सीट जाति धर्म और फतवे की भेंट चढ़ रही है. नसीम सोलंकी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान एक मंदिर में शिवलिंग पर जलाभिषेक किया था जिसके बाद से मुस्लिम धर्म गुरु की ओर से नसीम सोलंकी के खिलाफ फतवा जारी कर दिया गया.


मुस्लिम धर्म गुरु का ऐलान सुनते ही हिंदू धर्म के मानने वाले महंत और पुजारी ने उसी शिव मंदिर के प्रांगण को हर की पौड़ी से लाए हुए गंगाजल से शुद्धिकरण किया. इसके बाद सियासत और भी ज्यादा तेज हो गई जहां एक ओर नसीम अपने ही धर्म के धर्म गुरुओं का विरोध झेल रही थी तो वहीं अब हिंदू पक्ष की ओर से भी मंदिर के प्रांगण को शुद्ध किए जाने का तंज नसीम सोलंकी के सिरमौर आया है.


उपचुनाव को लेकर सियासत तेज
 भारतीय जनता पार्टी नसीम सोलंकी के मंदिर में जलाभिषेक करने की बात को महज एक नाटक बता रही है.वहीं नसीम ने सभी बातों को दरकिनार कर अपने बयान में कहा कि वह जिस परिवार से आती हैं. उसे परिवार में सभी धर्म का हर वर्ग के लोगों का सम्मान है. इस सम्मान के चलते उन्होंने मंदिर में प्रवेश किया था. उपचुनाव को लेकर सियासत तेज है और यहां निर्णायक भूमिका निभाने वाले मुस्लिम और दलित मतदाता है.कानपुर सीट की सियासी समीकरण की बात की जाए तो इस सीट पर 40% मुस्लिम एकतरफा निर्णायक भूमिका निभाते है.


1991 में भाजपा को मिली थी जीत
पहली बार इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलाने वाले राकेश सोनकर इस सीट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे. यहां तक की कानपुर के राकेश सोनकर ने 1991 में भारतीय जनता पार्टी को इसी सीट से जीत दिलाई थी.क्योंकि दलित प्रत्याशी होने के चलते दलितों का वोट राकेश सोनकर को भरपूर मिला था. इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी का फिक्स वोट राकेश सोनकर के खाते में आ गया था. लेकिन ऐन मौके पर भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट सुरेश अवस्थी को उतार दिया.


क्या कहते हैं दलित मतदाता?
दलितों का कहना है कि हम इस भेदभाव को लंबे जमाने से झेल रहे हैं तमाम घटनाएं ऐसी सामने आई जहां पर दलितों को मंदिर में प्रवेश करने को लेकर विरोध किया गया अगर एक मुस्लिम महिला अपने धर्म के साथ सनातन धर्म के चलते हिंदू देवी देवताओं की पूजा अर्चना में शामिल हुई तो इसमें कौन सा गजब हो गया मंदिर में पूजा करने वाले किसी भी वर्ग के हो सकते हैं ऊपर वाले के दरवाजे सबके लिए खुले हैं ऐसे में यह भेदभाव अगर नसीम सोलंकी के साथ हो सकता है तो फिर हम दलितों के साथ क्यों नहीं.


बीजेपी का हो सकता है नुकसान!
नसीम सोलंकी के कदम को भले ही भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में भुनाना चाह रही हो. लेकिन मंदिर में प्रांगण को गंगाजल से हो जाने की चर्चा अब तूल पड़ती जा रही है. क्योंकि कहीं ना कहीं इस चुनाव में जिस तरीके से दलित मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसे मौके पर मंदिरों में इस तरह की चर्चाएं दलित मतदाताओं के भारतीय जनता पार्टी के साथ रुझान को काम करते हैं. अगर इस चुनाव में दलित वॉटर नाराज हुआ तो इसका खामियाजा भारतीय जनता पार्टी को चुनाव में झेलना पड़ सकता है.


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