लखनऊ। कानपुर के बिकरु कांड में गठित की गई एसआईटी ने अपनी जांच में पुलिस, अपराधी और सरकारी तंत्र की खामी का ऐसा गठजोड़ उजागर किया है कि जिसकी सिफारिश पर पुलिस,राजस्व और प्रशासन के सबसे ज्यादा अधिकारी दोषी पाए गए. 100 से अधिक अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की गई. बिकरु कांड के एसआईटी की क्या है खास बिंदु ? क्या की गई सिफारिश ?. इस ख़बर के जरिए समझिए.


दरअसल, कानपुर के बिकरु गांव में दुर्दांत अपराधी विकास दुबे ने डिप्टी एसपी समेत आठ पुलिसकर्मियों की जान ली. इसके बाद प्रशासनिक तंत्र की नाकामी और पुलिस की मिलीभगत उजागर हुई तो सरकार ने एसआईटी जांच के आदेश दिए. 4 महीने की कड़ी मशक्कत 100 से ज्यादा गवाहियों और दो हजार से ज्यादा दस्तावेजी सबूतों के आधार पर एसआईटी ने अब अपनी रिपोर्ट सौंप दी है.


कानपुर पुलिस पर सबसे बड़ा सवाल
एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में 80 राजस्व और पुलिस के अधिकारी और करीब दो दर्जन अन्य विभाग के अफसरों को बिकरु कांड के लिए दोषी बताया है.
एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में सबसे बड़ा सवाल कानपुर पुलिस और एसएसपी अनंत देव तिवारी पर खड़ा किया है. 1990 से 2020 यानी 30 सालों के पूरे कार्यकाल पर एसआईटी ने जांच की तो पता चला विकास दुबे, कानपुर पुलिस के दस्तावेजों में तो हिस्ट्रीशीटर बना रहा लेकिन उसके भाई, उसके पिता को दूसरी तरफ धड़ल्ले से लाइसेंसी असलहे भी जारी होते रहे.


2004 में रद्द हुआ लाइसेंस
1997 में जारी हुआ विकास दुबे का लाइसेंस 2004 में निरस्त हो गया. लेकिन लाइसेंस निरस्त होने के बावजूद विकास दुबे का असलहा ना तो खुद विकास दुबे ने जमा किया और ना ही पुलिस ने कभी सत्यापन कराया कि लाइसेंस कैंसिल होने के बाद असलहा जमा हुआ भी है या नहीं. यही वजह थी 16 साल तक विकास दुबे अपनी राइफल को रखे रहा और 2 जुलाई की रात उसने उसी बंदूक से पुलिस वालों की जान ले ली.


इतना ही नहीं विकास दुबे हिस्ट्रीशीटर घोषित हुआ लेकिन उसके भाई दीप प्रकाश दुबे, दीप प्रकाश दुबे की पत्नी और पिता को कानपुर जिला प्रशासन लाइसेंस जारी करता रहा. 2010 में प्रकाश दुबे का कानपुर देहात से लाइसेंस कैंसिल हुआ तो उसने नया लाइसेंस दीप कुमार दुबे के नाम पर कानपुर नगर से बनवा लिया.
2017 में कृष्णा नगर से विकास दुबे जिस बंदूक के साथ पकड़ा गया था, वह बंदूक भी दीप प्रकाश दुबे की थी.


कृष्णा नगर पुलिस ने यूपी एसटीएफ के द्वारा बरामद की गई इस बंदूक का कभी सत्यापन कराने की कोशिश नहीं की कि आखिर इसका लाइसेंसी कौन है और मिली किसके पास है ?. इन्हीं खामियों का फायदा उठाते हुए दीप प्रकाश दुबे की जब्त बंदूक भी कृष्णा नगर थाने से रिलीज कर दी गई. एसआईटी ने इस मामले में कृष्णा नगर में तैनात रहे इंस्पेक्टर, मामले के जांच अधिकारी और पर्यवेक्षण अधिकारी सीओ को लापरवाही का दोषी माना है.


सरकारी अभियानों का असर नहीं
एसआईटी ने अपनी जांच में यह भी खोज निकाला कि कैसे सरकारी अभियानों की कानपुर पुलिस ने धज्जियां उड़ाई. साल 2019 में उत्तर प्रदेश शासन ने सभी लाइसेंसों के सत्यापन का अभियान चलाया. कानपुर में भी चला. लेकिन कानपुर के चौबे पुर थाने से बने विकास दुबे और उसके गैंग के असलहो का कागजों में ही सत्यापन हो गया, असल में किसी अफसर ने मौके पर सत्यापन ही नहीं किया. एसआईटी ने जांच में पाया कि अगर इस अभियान में ही पुलिस ने विकास दुबे और उसके परिवार के पास मौजूद असलहे औरउनके लाइसेंस की जांच की होती तो शायद पता चल जाता कि विकास दुबे के पास कैंसिल हो चुके लाइसेंस का असलहा है. जो लाइसेंस विकास दुबे गैंग के बिकरु कांड के बाद कैंसिल हुए वह उसी समय कैंसिल हो जाते.


मारपीट के मामले में लापरवाही
लॉकडाउन से पहले मार्च महीने में ट्रैक्टर निकालने को लेकर हुई बिकरु में मारपीट में भी विकास दुबे पर एफआईआर हुई लेकिन चौबेपुर पुलिस लापरवाही बरतती रही. एफआईआर दर्ज होने के बाद अगर चौबेपुर पुलिस ने हाई कोर्ट से जमानत पर चल रहे विकास दुबे की जमानत ही रद्द करवा दी होती तो बिकरु काण्ड नहीं होता. एसआईटी ने इस मामले में लापरवाही बरतने वाले तत्कालीन एसपी ग्रामीण प्रद्युमन सिंह के खिलाफ भी कार्रवाई की संस्तुति की है.


दुबे की फायर पावर की जानकारी नहीं
बिकरू कांड के दिन यानी 2 जुलाई की रात को भी पुलिस की लापरवाही ही वारदात की असल वजह निकल कर आई. अफसरों के कहने पर आसपास के थानों की फोर्स ने विकास दुबे के घर पर धावा तो बोल दिया लेकिन पुलिस टीम की ना तो कोई तैयारी थी, ना ही किसी अफसर ने डी-ब्रीफिंग की थी. पुलिस फोर्स को यह तक नहीं पता था कि विकास दुबे और उसके गैंग के पास कितने प्रकार के और कितने असलहे हैं.


गैंग तो रजिस्टर लेकिन बाकी जानकारी नहीं
चौबेपुर पुलिस ने विकास दुबे के गैंग को रजिस्टर तो किया लेकिन ना तो गैंगमेंबर के बारे में पता लगाया और ना ही उसकी फायर पावर के बारे में पता किया. यही वजह थी कि वारदात की रात पुलिस के पास विकास दुबे से जुड़ी ना तो कोई जानकारी थी और ना ही कोई तैयारी. एसआईटी ने इस मामले में एसएसपी दिनेश कुमार पी को लापरवाही का दोषी माना है.


9 बिंदुओं पर 9 अलग-अलग रिपोर्ट
करीब 21 सौ दस्तावेजी सुबूत और 700 पन्ने की रिपोर्ट में एसआईटी ने 9 बिंदुओं पर 9 अलग-अलग रिपोर्ट दी हैं. जिनके आधार पर 100 से ज्यादा अधिकारी कार्रवाई की जद में आए हैं. इतना ही नहीं एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट के साथ सरकार को अभियोजन विभाग में खामी, जमानत पर रिहा अपराधियों पर निगरानी की व्यवस्था में खामी, लाइसेंस जारी करने में खामी को भी दूर करने की सिफारिश की है.


फिलहाल इतना जरूर है कि एसआईटी की जांच रिपोर्ट के बाद एसएसपी अनंत देव तिवारी, एसपी ग्रामीण रहे प्रद्युमन सिंह के साथ-साथ लखनऊ पुलिस के एक इंस्पेक्टर,एक सब इंस्पेक्टर, एक सीओ पर भी कार्रवाई की जहां तलवार लटक रही है तो वहीं दूसरी तरफ राजस्व विभाग के लेखपाल से लेकर तहसीलदार स्तर के अधिकारी भी विकास दुबे की अवैध संपत्ति को इकट्ठा करने के दोषी पाए गए हैं.


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