Sitapur News: सीतापुर में 7 बुजुर्गों ने खुद ही किया अपना पिंड दान, कहां- जिन्होंने जीते जी नहीं पूछा वो क्या..
Sitapur News: सीतापुर के नैमिषारण्य तीर्थ में वृद्धाश्रम में रह रहे कई बुजुर्गों ने जीते जी खुद का श्राद्ध और पिंडदान किया है. जीवन के इन मुश्किल भरे दिनों में इनका हालचाल लेने वाला कोई नहीं है.
Sitapur News: लखनऊ से सटे सीतापुर (Sitapur) के नैमिषारण्य तीर्थ (Naimisaranya) से चिंताजनक और समाज को आईना दिखाने वाली खबर है. यहां स्थित वृद्धाश्रम (Old Age Home) में रह रहे कई बुजुर्गों ने अपने जीवित रहते हुए अपनी मुक्ति के लिए श्राद्ध और पिंडदान (Pind Daan) किया है. ये घटना ये सोचने पर मजबूर कर रही है कि क्या ये वहीं भारत है जिसकी भूमि पर श्रवण कुमार जैसे बेटे ने जन्म लिया था. जिसने अपने अंधे माता-पिता को कांवर पर बैठा कर पदयात्रा करते हुए तीर्थ यात्रा कराई थी.
बुजुर्गों ने खुद के जीते जी किया पिंड दान
नैमिषारण्य के वृद्धाआश्रम में रह रहे कई बुजुर्ग ऐसे भी हैं जिनके अपनों ने ही उन्हें ठुकरा दिया है. इस आश्रम में 84 बुजुर्ग जिनमें 35 महिलाएं और 49 वृद्ध हैं जो अपने जीवन के अंतिम पलों को गुजार रहे हैं. जीवन के इन मुश्किल हालातों में उनका हालचाल लेने वाला कोई नहीं है. ऐसे में मरने के बाद उनका पिंडदान या श्राद्ध कौन करेगा यह भी एक बड़ा प्रश्न है. शायद यही वजह रही होगी कि अंत में आश्रम में रहने वाले 7 बुजुर्गों ने अपने हाथों से ही खुद के जीते जी पिंड दान कराया है ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके. इनमें दो महिलाएं और 5 बुजुर्ग शामिल हैं जिन्होंने अपनी पिंड दान किया है.
नैमिष के वृद्धाआश्रम में रहने को मजबूर ये सभी बुजुर्ग मजबूर है क्योंकि इनके अपनों ने ही ही इन्हें छोड़ दिया है. इनका जीते जी कोई सहारा नहीं है तो मरने के बाद श्राद्ध व इनका पिंडदान कौन करेगा. जिसकी चिंता इन्हें सताती है. इन बुजुर्गों का कहना है कि कम से कम मौत को बाद तो इन्हें मोक्ष मिल ही जाएगा.
पितृपक्ष का सनातन धर्म में बड़ा महत्व
पुरोहित लक्ष्मी नारायण ने बताया कि पितृपक्ष का समय हिंदू धर्म के लोगों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण होता है. मान्यता है कि इन दिनों में पितृ अपनी तृप्ति, मोक्ष के लिए अपने वंशजों से गया, तर्पण, श्राद्ध आदि पितृकर्माे की कामना करते हैं. सनातन मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में नाभि गया के रूप में प्रतिष्ठित नैमिषारण्य तीर्थ में पितरों के लिए किया गया पितृ कर्म कई गुना अधिक पुण्य प्रदान करता है. इसी विश्वास के चलते नैमिषतीर्थ में पूरे पितृपक्ष के इन 15 दिनों में देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आकर अपने पितरों की स्मृति में पितृ कर्म करते हैं.
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