कोरोना काल में ऐसा भी देखने को मिला जब लोग अपनों से ही किनारा करने लगे. यहां तक कि खून के रिश्ते पराये हो गये. अस्पतालों में अपनों की ही लाशें गैरों की तरह पड़ी रही. 


कोरोना से लड़ते हुए जिन लोगों ने अपनी जान गवांई, उन्होंने अपने परिजनों को भी अपने से बहुत दूर कर दिया है. जान गंवाने वालों के शवों को तो सरकारी तंत्र ने जैसे-तैसे उनका दाह संस्कार कर दिया था, लेकिन उनकी अस्थियां आज भी अपने परिजनों को ढूंढ रही हैं, कि शायद कोई आकर उनका विसर्जन कर मोक्ष प्रदान कर दे. 


लंबे इंतजार के बाद जब कोई नहीं आया तो स्वयं सेवी संस्था से जड़े लोग आगे आए और उन्होंने ये समाजिक जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली. कानपुर में ऐसे ही सामाजिक कार्यकर्ता ने 14 लावारिस अस्थि कलशों का गंगा किनारे मंत्रोच्चारण के साथ भू विसर्जन किया.


दरअसल कोविड का संक्रमण ना फैले इसके लिए कोविड से मरने वालों का दाह संस्कार विद्युत शवदाह गृह में कर दिया गया था. ऐसे में अस्पताल से कई शवों को लेने वाले लोग जब नहीं पहुंचे तो मानवीय भावनाओं का ख्याल रखते हुए उनका दाह संस्कार कर अस्थियों को सुरक्षित कर दिया गया. ताकि भविष्य में मृतक के परिजन आकर उनका विधिवत विसर्जन कर सकें. एक साल से भी जब अस्थियां यूं ही पड़ी रही तो समाज सेवियों ने अस्थियों का भू विसर्जन कराया. गंगा में अस्थियां का विसर्जन ना कर समाज सवियों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी संदेश दिया है.


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