प्रयागराज (मोहम्मद मोइन). संगम नगरी प्रयागराज में भगवान शिव का एक ऐसा अनूठा मंदिर है, जहां लोग गंभीर बीमारियों से निजात पाने के लिए आते हैं. प्रयागराज में संगम के किनारे सोमेश्वर महादेव के नाम से स्थित इस अनूठे मंदिर की स्थापना खुद चंद्रदेव ने तब की थी, जब उन्हें श्राप की वजह से कुष्ठरोग हो गया था. पौराणिक कथाओं के मुताबिक़ कुष्ठ रोग होने के बाद चन्द्रमा ने इसी जगह शिवलिंग स्थापित कर अपनी बीमारी से मुक्ति पाई थी. चंद्रदेव द्वारा स्थापित किये जाने और यहीं उनका कुष्ठरोग ठीक होने की वजह से बड़ी संख्या में श्रद्धालु निरोगी होने की कामना के साथ यहां दर्शन पूजन के लिए आते हैं. इस साल सावन में यहां कोरोना की महामारी से बचाव और उसके नाश होने की कामना के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है.
काशी को भगवान भोलेनाथ की नगरी कहा जाता है, लेकिन संगम नगरी प्रयागराज से भी जटाधारी शिव का गहरा नाता है. सृष्टि की रचना के समय खुद ब्रह्मा ने प्रयागराज के दारागंज इलाके में दशश्वमेध स्वरुप में शिव को स्थापित किया था तो त्रेता युग में भगवान राम को सवा करोड़ शिवलिंग स्थापित करने के बाद ही ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली थी. प्रयागराज में भगवान शिव की कचहरी है तो द्वापर युग में पांडवों द्वारा स्थापित पडिला महादेव मंदिर भी. इन सबके अलावा गंगा -यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी तट पर अरैल इलाके में स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर की अलग और अनूठी कथा है.
चंद्रदेव को मिला था श्राप
पदम पुराण की कथा के मुताबिक़ राजा दक्ष ने अपनी सत्ताइस पुत्रियों का विवाह चंद्रदेव से किया था. चंद्रदेव सोलह कलाओं में माहिर होने की वजह से बेहद खूबसूरत नज़र आते थे. सत्ताइस पत्नियां होने के बावजूद चंद्रदेव सिर्फ रोहिणी से ही सबसे ज़्यादा प्यार करते थे. बाकी छब्बीस पत्नियों को उपेक्षित रखने की वजह से चंद्रदेव को श्राप की वजह से कुष्ठ रोग हो गया था. तमाम जगहों पर उपचार कराने के बावजूद उनकी बीमारी कहीं ठीक नहीं हो रही थी. ऐसे में देवताओं की सलाह पर चन्द्रमा ने तीर्थराज प्रयागराज में आकर यहां संगम के किनारे अरैल इलाके में शिवलिंग स्थापित कर भगवान शिव की आराधना की. कहा जाता है कि चन्द्रमा की तपस्या से भोलेनाथ इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने न सिर्फ साक्षात रूप में दर्शन दिए, बल्कि उनका कुष्ठरोग ठीक होने का आशीर्वाद भी दिया.
धर्मग्रंथों के मुताबिक़ भगवान शिव की आराधना की वजह से ही चन्द्रमा को अपनी बीमारी से निजात मिली. यहीं स्थापित शिवलिंग की वजह से उन्हें महीने में पंद्रह दिन पूरी चमक बिखेरने का भी वरदान मिला. मान्यताओं के मुताबिक़ चंद्रदेव द्वारा स्थापित इस मंदिर में सच्चे मन से की गई पूजा बेकार नहीं जाती और गंभीर से गंभीर बीमारियों वाले लोगों को भी अपना रोग ठीक होने का आभास होने लगता है. वैसे तो यहां पूरे साल देश के कोने कोने से श्रद्धालु पूजन अर्चन के लिए आते हैं, लेकिन कुंभ और माघ के मेले में तो यहां तिल रखने तक की जगह नहीं होती.
सावन में लगता है मेला
सावन में हर साल यहां एक महीने के मेले का आयोजन होता है, हालांकि कोरोना की वजह से इस साल यहां मेला नहीं लगा है. भक्तों को घर पर रहकर ही इस मंदिर का ध्यान करते हुए पूजा अर्चना करने की सलाह दी गई है, लेकिन इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग भोलेनाथ के दर्शन कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए मंदिर तक आ रहे हैं. चन्द्रमा का एक नाम सोम भी है, इसीलिये उनके द्वारा स्थापित किये जाने की वजह से मंदिर को सोमेश्वर महादेव नाम दिया गया है. मंदिर परिसर में भगवान भोलेनाथ के साथ कई अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं. यहां आने वाले श्रद्धालु इन सभी देवी देवताओं के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य करते हैं.
मंदिर को यह मौजूदा और भव्य स्वरुप देश की आज़ादी के वक्त मिला है. सावन महीने में यहां पूरे दिन रुद्राभिषेक होता है. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई हर मनोकामना पूरी होती है, लेकिन बीमारियों से निजात पाने की कामना के साथ सबसे ज़्यादा श्रद्धालु यहां पर आते हैं. श्रद्धालुओं को इस बात का भरोसा होता है कि सर्व कल्याण के देवता भगवान भोलनाथ ने जिस तरह चंद्रदेव को उनके कुष्ठरोग ने निजात दिलाई थी, उसी तरह वह उन्हें उनके रोगों से भी मुक्ति दिलाएंगे. कोरोना के नाश के लिए सावन महीने के पहले दिन से विशेष अनुष्ठान किये जा रहे हैं.
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