सोनभद्र: पृथ्वी पर गंगा को भगीरथ अपने (पूर्वजों) पितरों के उद्धार के लिए लाये थे तो वहीं, उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में 105 वर्षों से अधिक समय पहले विलुप्त हो चुकी तथा अपने मूल स्वरूप को खो चुकी सिरोही नदी को पुनर्जीवित कराने के लिए भारतीय जनता पार्टी के सदर विधायक भूपेश चौबे भागीरथ बने और अपने मुकाम में सफल रहे.
इस तरह नदीं को किया पुनर्जीवित
विधायक ने बताया कि इस विलुप्त हो चुकी नदी की जानकारी जिलाध्यक्ष रहने के दौरान ग्रामीणों से मिली. 1916 में घाघर मुख्य नहर के बनने से सिरोही नदी अस्तित्व विहीन हो कर सुख गयी और हजारों हेक्टेयर खेती ने पानी के अभाव में दम तोड़ दिया. ग्रामीण पीने के पानी के लिये मोहताज हो गये. जिसके लिए भूपेश चौबे ने विधायक बनने के बाद इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू कर दिया. विधायक के प्रयास को उस वक्त बल मिला जब सरकार द्वारा जल संरक्षण और नदी पुनरुद्धार योजना शुरू की गई. इसके लिए विधायक ने मुख्यमंत्री और सिंचाई मंत्री से वार्ता करके घाघर नहर से एक कुलावा देने पर सिरोही नदी को पुनर्जीवित करने के लिए मांग की. विधायक अपने अथक प्रयास से सिरोही नदी का पुनर्जीवित करने के मुकाम में सफल रहे और इस वर्ष जाकर नदी में घाघर नहर से पानी छोड़ा गया, जिससे दर्जनों गांवों का जल स्तर बढ़ा तो वहीं हजारों हेक्टेयर जमीन उपजाऊ हो गयी. इसके साथ ही नदी में पानी आने से धोबही गांव के कुल नौ तालाब भी भर गये.
नदी ने अपना अस्तित्व खो दिया
सोनभद्र में सदर विकास खण्ड के कुसम्हा गांव से निकली सिरोही नदी लगभग 10 किलोमीटर की परिक्रमा करने के बाद बेलन नदी में मिल जाती है. इस नदी का स्वरूप उस वक्त खत्म हो गया जब ब्रिटिश शासन काल 1912 ई. में धंधरौल बांध का निर्माण हुआ और 1916 ई. में घाघर नहर निकाली गई जिसके निर्माण के बाद सिरोही नदी का अस्तित्व ही खत्म हो गया और समय के साथ-साथ नदी ने भी अपना अस्तित्व खो दिया. जिसके कारण नदी के दोनों किनारों पर अवस्थित दर्जनों गांवों में पानी का संकट और हजारों हेक्टेयर उपजाऊ जमीन भगवन भरोसे हो गई.
नदी जोड़ो योजना ने बदली तस्वीर
समय बीतता गया और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नदी जोड़ों योजना की शुरुआत ने यहां के लोगों को बल दिया और स्थानीय स्तर पर लोग नदी के अस्तित्व को लेकर प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर मांग करने लगे. सिरोही नदी के पुनर्जीवित करने की मांग को उस वक्त बल मिला जब वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने भूपेश चौबे को प्रत्याशी बनाया और चुनाव के दौरान ही ग्रामीणों ने सिरोही नदी को पुनर्जीवित कराने की मांग रखी तो विधायक ने जीतन के बाद नदी को पुनर्जीवित करने का आश्वासन दिया. इसके बाद वह समय भी आ गया जब सिरोही नदी को पुनर्जीवित होने जा रही थी. इसके लिए सदर विधायक भूपेश चौबे ने सिंचाई मंत्री और मुख्यमंत्री तक से गुहार लगाई तो घाघर मुख्य नहर से कुलावा देकर नदी में पानी छोड़ा गया जिसके बाद सिरोही नदी पुनर्जीवित हो गयी. विधायक भूपेश चौबे ने अथक प्रयास से सौ वर्षों से विलुप्त हो चुकी सिरोही नदी को पुनर्जीवित कर दिया. जिससे दर्जनों गांवों का लगभग हजारों हेक्टेयर जमीन सिंचित होने के साथ ही भूगर्भ जल का स्तर बढ़ गया, इसके साथ ही धौबही गांव के कुल 9 तालाब नदी के पुनर्जीवित होने लबालब भरे हुए हैं, जिससे कि गांव के लोग रबी और खरीफ फसल के साथ ही सब्जी की भी खेती कर रहे हैं.
नदी सुख जाने के बाद हालात हो गये थे खराब
सिरोही नदी के किनारे स्थित धोबही गांव के संदीप मिश्रा का कहना है कि, यह प्राचीन नदी है जो अंग्रेजों के शासनकाल में सुख जाने की वजह से अपना अस्तित्व खो चुकी थी. जिसकी वजह से दर्जनों गांव में जनवरी शुरू होते ही पेयजल की समस्या शुरू हो जाती थी और गांवों में टैंकर द्वारा पेयजल की आपूर्ति किया जाता था. वह 2015 में ग्राम प्रधान बने तो जल संरक्षण को लेकर तालाब की खुदाई करवाई गई. आज विधायक भूपेश चौबे द्वारा घाघर नहर से कुलावा निकलवा कर पानी मिलने पर पुनर्जीवित हुई सिरोही नदी से गांव के नौ तालाब भरे हुए हैं. नदी का पानी तालाब में होकर आगे बढ़ता है और बेलन नदी में मिल जाता है. ग्रामीणों ने सदर विधायक की तारीफ करते हुए वर्षों से विलुप्त हो चुकी सिरोही नदी को पुनर्जीवित करने की बधाई दी. सदर विधायक को देवता मान रहे हैं.
हजारों हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होने लगी
वहीं, किसान रमेश मिश्रा का कहना है कि सिरोही नदी सैकड़ों वर्ष पुरानी है जो लगभग दस किलोमीटर की दूरी तय करती है और इसके दोनों तरफ दर्जनों गांव स्थित हैं, जिसकी मदद से हजारों हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होती थी, लेकिन 1912 में धंधरौल बांध बनने के बाद उससे निकली घाघर नहर से नदी दो भागों में बंटकर अपना अस्तित्व खो दिया. सैकड़ों वर्ष बाद सदर विधायक के प्रयास से नदी को घाघर नहर से कुलावा निकाल कर जल छोड़ा गया तो सिरोही नदी पुनर्जीवित हो गयी और आज हजारों हेक्टेयर जमीन सिंचित होने लगी व भूगर्भ जल स्तर बढ़ गया.
पीने के पानी की समस्या दूर हुई
किसान ओम प्रकाश मिश्रा का कहना है कि, पहले नदी में पानी नहीं होने से पानी का लेयर नीचे था, खेती नहीं होती थी. अब पानी का लेयर भी ऊपर होगा खेती बाड़ी भी होगी. नदी में पानी नहीं था जिससे पीने के पानी के लिये दिक्कत होती थी, खेती नहीं कर पा रहे थे. परिवार चलाने के लिये मजदूरी करनी पड़ती थी. अब नदी मे पानी होने से पीने के पानी की समस्या दूर हो गयी है, खेती भी कर रहे हैं.
यह प्रेरणा अटल बिहारी बाजपेई के नदी जोड़ने के अभियान से मिली. इसके चलते विलुप्त हो रही नदी की अविरलता लाने के लिये संकल्प लिया था. उस समय मैं जिलाध्यक्ष था, इस गांव में मेरा आना जाना था. गांव के लोगों ने इसे जिंदा करने की बात कही ताकि इनकी खेती हो सके और पीने का पानी भी मिल सके. बंजर जमीन पर खेती होने लगे. जब मैं विधायक बना, मैंने इस पर कार्य करना शुरू किया. देश के किसान अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, किसान के पास पानी नहीं है तो उनकी खेती का कोई मूल्य नहीं पानी से किसान आत्म निर्भर होगा. किसान की आत्मनिर्भरता देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. अब किसान तीन बार यहां खेती करते हैं. काम को संपन्न करने में कठिनाई तो बहुत आई लेकिन ग्रामीणों की बात से प्रेरित होकर कार्य किया और समस्या का समाधान होता गया. इसके लिए मुख्यमंत्री जी व सिंचाई मंत्री ने काफी सहयोग किया.
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