Drinking Water Crisis In Sonbhadra: कहते हैं कि जल ही जीवन है लेकिन हकीकत यह है कि उत्तर प्रदेश स्थित सोनभद्र (Sonbhadra) में हर साल दो से तीन मीटर तक जल स्तर कम हो रहा है. सोनभद्र में लगभग 25 वर्ष से जल प्रदूषण गंभीर मसला बना हुआ है जहां दस विकास खण्डों में लगभग 26 गांव पिछले 20 साल से फ्लोरोसिस जनित दिव्यांगता से गंभीर रूप से पीड़ित हैं. सूबे के आखिरी छोर पर चार राज्यों की सीमा से लगा पूर्वांचल का बुंदेलखंड कहे जाने वाले सोनभद्र जिले में आजादी के 75 वर्ष बाद भी यहां की एक बड़ी आबादी के लिए शुद्ध पेयजल की उपलब्धता चुनौती बनी हुई है.
कई ब्लाक के जलस्तर में प्री-पोस्ट मानसून में दो से तीन मीटर की गिरावट सामने आई है. जल प्रदूषण के अहम कारक जलस्तर में आती गिरावट को रोकने के लिए दस से 15 वर्ष के भीतर काम के बदले अनाज योजना, भूमि संरक्षण योजना, मनरेगा, लघु सिंचाई, ग्राम पंचायत निधि से सैकड़ों चेकडैमों-तालाबों के निर्माण और गहरीकरण के कार्य किए गए. कई अफसरों ने इसको लेकर अपनी पीठ भी थपथपवाई. बावजूद पेयजल की उपलब्धता और जलस्तर में साल दर साल आती कमी, सोनभद्र के हालात मुश्किल बनाए हुए है. दस ब्लॉकों वाले जिले में दो ब्लॉकों की स्थिति ज्यादा गंभीर बताई जा रही है.
इन तत्वों की वजह से खड़ी हुई है चुनौती
जनपद के भूगर्भ जल में आयरन, फ्लोराइड, नाइट्रेट, मरकरी जैसे रासायनिक तत्वों की अधिकता जिला मुख्यालय सहित जिले के बड़े हिस्से में शुद्ध पेयजल की उपलब्धता को लेकर संकट खड़ा किए हुए है. इसको लेकर एनजीटी की तरफ से कई निर्देश जारी किए गए हैं. जलस्तर सुधारने और जल प्रदूषण में कमी लाने के लिए ढेरों प्रयास भी हो रहे हैं, हालात में कुछ सुधार भी देखने को मिले हैं लेकिन अभी तक की जो स्थिति है, उससे हालात चिंताजनक बने हुए हैं. बता दें कि विश्व जल दिवस प्रतिवर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना और जल संरक्षण के महत्व पर ध्यान केंद्रित कराना है.
जिले के करीब 22 लाख आबादी के लिए पेयजल की सुविधा
बेतहाशा दोहन और मानसून की बेरुखी के चलते भूजल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है. इसकी वजह से शहर में अभी से जल संकट गहराने लगा है. देहात में भी हालात गंभीर हैं. जिले में पिछले चार सालों में लगातार भूगर्भ जल स्तर में गिरावट आई है. 10 विकास खंडों में से दुद्धी व नगवां ब्लॉक सेमी क्रिटिकल जोन में चले गए हैं. इसके अलावा कुछ इलाकों में जिस तेजी से भूजल में गिरावट आई है, उससे गर्मी के दिनों में पेयजल संकट के हालात और बदतर होने की आशंका जताई जा रही है. जिले में भूगर्भ जल का दोहन इतना अधिक है कि बरसात का पानी इसकी भरपाई नहीं कर पा रहा है.
जिले की करीब 22 लाख आबादी के लिए शुद्ध पेयजल की उपलब्धता बड़ी चुनौती बनी हुई है. कई ब्लाकों के जलस्तर में प्री-पोस्ट मानसून में दो से तीन मीटर की गिरावट सामने आई है. भूमि संरक्षण योजना, मनरेगा, लघु सिंचाई, ग्राम पंचायत निधि से सैकड़ों चेकडैमों तालाबों के निर्माण और गहरीकरण के कार्य किए गए. इसके बावजूद पेयजल की उपलब्धता और जलस्तर में साल दर साल कमी आती गई. जिले के दस ब्लाकों वाले जिले में दो ब्लाकों की स्थिति ज्यादा गंभीर बताई जा रही है. जिले के बड़े हिस्से में शुद्ध पेयजल की उपलब्धता को लेकर संकट खड़ा किए हुए हैं.
पिछले साल भर से खराब पड़ा है सोलर समरसिबल
नगवां विकास खण्ड गोंगा के ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि गांव में पेयजल की बहुत समस्या है जिसे वह नगवां बांध से पानी लेने आती हैं. गांव में कुछ हैण्डपम्प तो लेकिन वह सालों से खराब पड़ा हुआ है. बार-बार ग्राम प्रधान से कहते है फिर भी उनके द्वारा हैण्डपम्प नहीं बनवाया गया. वहीं बढ़ती गर्मी को देखते हुए गांव का पुरुष वर्ग भी चिंतित है क्योंकि जिला प्रशासन की तरफ से एक सोलर युक्त समरसेबल पम्प लगाया गया है जो पिछले एक वर्ष से खराब पड़ा हुआ है. ग्रामीण बताते है कि ग्राम प्रधान ने समरसेबल में बिजली की व्यवस्था करते हैं तो उन्हें पेयजल मिल जाता है, नहीं तो कोसो दूर नगवां बांध से ही पानी लाना पड़ता है.
इसको लेकर एक ग्रामीण ने बताया कि पानी पीने से कमर में दर्द,जोड़ों में दर्द, हड्डियां गलने लगती है और धीरे-धीरे आदमी बीमार होकर मर जाते है. इससे लोगो के दांत पीले ही जाते है. यहां तक की बच्चों पर इसका प्रभाव सबसे अधिक होता है जिसके कारण शादी व्याह में भी दिक्कते आ रही है.
बीजेपी सदर विधायक ने कही ये बात
सोनभद्र म्योरपुर एयरपोर्ट से 10 किलोमीटर दूर पडरी ग्राम पंचायत के बोदराडाड में डेढ़ सौ परिवार रहते हैं. इस गांव की आबादी लगभग 500 के आस-पास है लेकिन इस गांव में आज तक ना तो एक भी हैंडपंप है और लोग अपनी प्यास बुझाने के लिए नाला और रिहन्द बांध के प्रदूषित पानी पीते हैं. इसी गांव से सटे कमरी डाड गांव की आबादी 800 के करीब है, यहां के करीब 200 लोग आज भी रिहंद जलाशय के प्रदूषित पानी पीने को विवश है. हर साल यहां प्रदूषित पानी पीने के कारण डायरिया फैलता है और कई लोगों की मौत हो जाती है क्योंकि इस गांव में भी दो हैंड पंप हैं.
इस संबंध में बीजेपी के सदर विधायक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयास से विन्ध्य क्षेत्र में हर घर नल योजना के प्रथम चरण का काम धंधरौल बांध से शुरू किया है, जिसके सम्पन्न होते ही सभी को शुद्ध पेयजल उपलब्ध होने लगेगा. इसके पूर्व अगर कहीं समस्या पेयजल की आ रही है तो उसे दूर किया जाएगा, इसके लिये अधिकारियों से वार्ता करके टैंकर से पानी की आपूर्ति कराया जाएगा. वहीं पेयजल की समस्या को लेकर बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं तो यह गलत है. इसके संबंध में भी अधिकारियों से वार्ता की जाएगी.
वहीं जिला पंचायत राज अधिकारी ने कहा कि इस जनपद पेयजल की समस्या खास कर गर्मी के दिनों में बढ़ जाती है, जिसको देखते हुए टैंकर पर पानी की आपूर्ति कराई जाती है. इसके साथ ही समय-समय पर हैंडपम्पों की मरम्मत कराया जाता है ताकि कहीं पेयजल की समस्या न आने पाए.
एनजीटी की तरफ से जारी किए गए दिशा-निर्देश
इसको लेकर एनजीटी की तरफ से कई निर्देश जारी किए गए हैं. जलस्तर सुधारने और जल प्रदूषण में कमी लाने के लिए ढेरों प्रयास भी हो रहे हैं, हालात में कुछ सुधार भी देखने को मिले हैं, लेकिन अभी तक की जो स्थिति है, वह जिले के कई हिस्सों में भयावह स्थिति बनाए हुए है. जिले में पहले दुद्धी ब्लॉक को ही सेमी क्रिटिकल ब्लाक का दर्जा हासिल था, लेकिन अब 2019-2020 से अब इस सूची में नगवां का भी नाम जुड़ गया है. शेष ब्लॉकों में जलस्तर की स्थिति को अभी सेफजोन में माना जा रहा है, लेकिन जिस तरह से सभी ब्लाकों में धीरे-धीरे प्रदूषण का दायरा बढ़ रहा है, उससे लोगों की चिंता बढ़ती जा रही है.