Sonbhadra News: सरकार भले ही सब कुछ ठीक होने के लाख दावे कर ले लेकिन दूर दराज के गांव में स्वास्थ की स्थिति आजादी से पहले की है. भले ही सरकार गांव- गांव स्वास्थ्य केंद्र बना दे लेकिनगांव के सरकारी अस्पतालों मे बुनियादी सुविधा नदारद है. हम बात हर रहे हैं लखनऊ से 500 किलोमीटर दूर ऊर्जा की राजधानी कहे जाने वाले सोनभद्र की. सोनभद्र मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर सेंदुर (मकरा) ग्राम पंचायत में 60 दिन में 36 मौतों के बाद भी स्वास्थ महकमा नहीं चेत रहा है. मौत के खेल में स्वास्थ विभाग, पंचायत विभाग को दोषी बता रहा है. वजहों का पता लगाने के बजाए एक दूसरे पर दोषारोपण का खेल जारी है.
स्वास्थ विभाग तमाम दावे कर ले, बावजूद गांव में मौत का सिलसिला जारी है. दो माह में 36 मौत होने की खबर है जबकि स्वास्थ्य विभाग 16 मौतों की पुष्टि कर रहा है. लैब की जांच में मृतकों के मलेरिया से मौत होने की बात सामने आई है. आज भी गांव में सैकड़ों लोग बीमार हैं, जिनकी रिपोर्ट में मलेरिया, टाइफाइड की बात सामने आई है. मीडिया में लगातार खबरें आने के बाद आनन फानन पिछले 1 सप्ताह से म्योरपुर सीएचसी की टीम दवाइयां और जांच किट से गांव में कैंप लगाकर ग्रामीणों का इलाज तो कर रही है. लेकिन गांव के ग्रामीणों में सबसे ज्यादा खून की समस्या देखने को मिल रही है. क्षेत्रीय विधायक और सूबे में समाज कल्याण राज्य मंत्री संजीव गौड ने 15 मौतों की पुष्टि तो की है लेकिन जब 36 मौतों की बात बताई गई तो उन्होंने बीजेपी कार्यकर्ताओं से जांच कराने की बात कही. ग्रामीणों की मानें तो गांव में 50 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. हालांकि इसकी कोई अधिकारिक पुष्टि नहीं कर रहा है और न ही एबीपी न्यूज़ या एबीपी गंगा सत्यापित करता है.
सोनभद्र जिले के म्योरपुर विकास खण्ड क्षेत्र के मकरा गांव में दिन की शुरुआत किसी न किसी अपने को श्मशान घाट पहुंचाने से होती है. लगभग 4500 लोगों की आबादी वाले इस गांव में 40 फीसद से अधिक अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लोग हैं. 16 टोला, 8 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले इस गांव में पिछले 2 माह में 36 लोगों की मौत बुखार लगने के कारण होने की बात सामने आई है. मकरा गांव के 65 वर्षीय लक्ष्मीनिया की 26 वर्षीय बहू नीतू की जान बुखार लगने से चली गई. इसके बाद 12 महीने की नाती कविता, 4 वर्षीय रिया, 5 वर्षीय राजेंद्र, 2 वर्षीय आरती की मौत बुखार लगने के बाद हो गई. एक महीना के अंदर परिवार के 5 लोगों की मौत हो जाने से पूरे परिवार में मातम छाया हुआ है. लक्ष्मीनिया बताती हैं कि पहले बुखार आया और फिर पीलिया हो जाने के कारण इन लोगों की मौत हो गई.
इसी गांव के 35 वर्षीय हरिनारायण ने भी गांव में फैली इस बीमारी के कारण अपने 2 बेटों और पत्नी को खो दिया. सबसे पहले 26 वर्षीय पत्नी सुशीला की मौत हुई, उसके बाद 3 वर्षीय दिव्यांशु और 15 माह के हिमांशु की मौत भी 1 हफ्ते के अंदर हो गई. इसके अलावा हरिनारायण के परिवार में बड़े भाई के एक लड़के की मौत इसी बीमारी के कारण हो गई. खेती-बाड़ी और मजदूरी कर जीवन यापन करने वाले हरिनारायण की पूरा संसार ही बीमारी से उजड़ गया. 55 वर्षीय सावित्री के 4 वर्षीय नाती प्रीतम की मौत भी बुखार के कारण हो गई. सावित्री बताती हैं कि 2 दिन से प्रीतम को बुखार आ रहा था. उसे दिखाने के लिए दुद्धी ले जा रहे थे कि रास्ते में ही दम तोड़ दिया. आरोप है कि सरकारी हॉस्पिटल में कोई भी डॉक्टर नहीं बैठता है और ना ही दवा मिलती है. पहले तो स्वास्थ्य विभाग मौतों की बात पर पर्दा डालता रहा लेकिन जब मीडिया में मौतों की खबर आने लगी तब जाकर स्वास्थ्य विभाग जागा और गांव में कैंप लगाकर लोगों का इलाज करने लगा. ग्रामीणों का कहना है कि तुर्रा पिपरी में हॉस्पिटल है लेकिन कोई नहीं सुनता. हॉस्पिटल में जाने पर खून जांच कराने की बात कही जाती है. सरकारी अस्पताल में जांच हुई तो कहते हैं कुछ नहीं है. रेणुकूट में जांच कराया तो बताते हैं कि मलेरिया, टाइफाइड है.
पर्यावरण कार्यकर्ता जगत नारायण विश्वकर्मा गांव में मौतों की वजह दूषित पानी मानते हैं. उनका कहना है कि इस क्षेत्र में 60 हैंडपंप हैं जिसमें 8 खराब है बाकी पानी तो दे रहा है लेकिन दूषित है. पानी में फ्लोराइड और मरकरी की मात्रा बहुत ज्यादा है. उनका दावा है कि अगर कोई पानी ज्यादा दिन तक पियेगा तो बीमारी के साथ मौत निश्चित है. इस संबंध में सोनभद्र के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ नेम सिंह का कहना है कि गांव में साफ सफाई और शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं होने के कारण अज्ञात बीमारी से लोगों की मौत हुई है. इसके पीछे स्वास्थ्य विभाग की कोई लापरवाही नहीं है बल्कि गांव में साफ सफाई की जिम्मेदारी पंचायत विभाग की है. वहीं जिलाधिकारी टीके शिबू का कहना है कि गांव में होनेवाली मौत के कारणों की जांच हो रही है. जांच रिपोर्ट मिलने के बाद दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी.
आज भी सैकड़ों की तादाद में मलेरिया, टाइफाइड और पीलिया के मरीज गांव में हैं. स्वास्थ्य विभाग हर दिन कैंप कर लोगों का इलाज कर रहा है. आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार का वितरण किया जा रहा है. गांव में विशेष प्रकार के मच्छरदानी का वितरण किया जा रहा है. दीवारों पर साफ सफाई के तमाम संदेश लिखे जा रहे हैं. झाड़ियों की सफाई का काम पूरे गांव में चल रहा है. क्षेत्रीय विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार में समाज कल्याण राज्य मंत्री संजीव गौड ने इन मौतों के लिए प्रदूषित पानी को जिम्मेदार बताया है. उन्होंने 15 लोगों की मौत की पुष्टि तो की है लेकिन जब पूछा गया कि 36 मौत की खबर है तब उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं से इस बात की जांच कराएंगे की कितनी मौतें हुई है.
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