प्रयागराज, मोहम्मद मोईन। कोरोना महामारी और लॉकडाउन की बंदिशों में भी नाम बदलकर सियासत चमकाने का खेल बदस्तूर जारी है. इलाहाबाद जिले, रेलवे स्टेशन और बैंक का नाम बदले जाने के बाद अब पूरब का आक्सफोर्ड कही जाने वाली इलाहाबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी का नाम बदले जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
एमएचआरडी ने इसके लिए इलाहाबाद युनिवर्सिटी से कार्य परिषद के सदस्यों की राय लेकर जल्द ही प्रस्ताव भेजने को कहा है. तकरीबन 135 साल पुरानी इस युनिवर्सिटी का नाम बदलने की प्रक्रिया पर जहां एक तरफ सवाल उठ रहे हैं तो वहीं इस पर सियासत भी शुरू हो गई है.
समाजवादी पार्टी ने जहां इस फैसले को राजनीति से प्रेरित बताते हुए राष्ट्रपति को चिट्ठी भेजकर उनसे इस मामले में दखल देने की मांग की है तो वहीं कांग्रेस पार्टी ने एलान किया है कि देश में सत्ता परिवर्तन होने पर युनिवर्सिटी को फिर इलाहाबाद के नाम से ही कर दिया जाएगा. वैसे, इमरजेंसी जैसे हालात में नाम बदलने की जल्दबाजी खुद यहां के टीचर्स और स्टूडेंट्स को भी रास नहीं आ रही है.
कभी समूची दुनिया में आफ्सफोर्ड आफ द ईस्ट के नाम से अपनी अलग व खास पहचान रखने वाली इलाहाबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी ने देश को तमाम नामचीन हस्तियां दी हैं. कई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दूसरे राजनेता, नौकरशाह, लेखक, पत्रकार और वैज्ञानिक इसी युनिवर्सिटी से डिग्री लेकर बुलंदियों तक पहुंचे हैं. युनिवर्सिटी की वजह से ही यह शहर आज भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों का गढ़ माना जाता है. इलाहाबाद को कुछ सालों पहले तक युनिवर्सिटी की वजह से आईएएस फैक्ट्री तक कहा जाता था.
बहरहाल, यूपी की योगी सरकार ने अक्टूबर 2018 में इलाहाबाद जिले का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया था। उस वक्त भी इस फैसले पर खूब कोहराम मचा था। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला आज भी पेंडिंग है। योगी सरकार ने भले ही इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया था, लेकिन केंद्र सरकार के दफ्तरों में पुराना नाम ही चलता रहा। इससे प्रयागराज को उसका पुराना गौरव वापस मिल गया था, तो साथ ही इलाहाबाद की पहचान भी कायम रहने पाई थी।
इसी साल फरवरी महीने में महाशिवरात्रि के दिन रेलवे ने इलाहाबाद समेत शहर के दूसरे रेलवे स्टेशनों का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया था. इलाहाबाद के नाम पर देश के चुनिंदा सबसे बड़े बैंकों में शुमार इलाहाबाद बैंक का नाम भी कुछ दिनों पहले बदल दिया गया. दो दिन पहले एमएचआरडी ने इलाहाबाद युनिवर्सिटी को लेटर भेजकर कार्य परिषद के सभी सदस्यों से ई-मेल के जरिये राय मांगकर इस सेंट्रल युनिवर्सिटी का नाम बदले जाने का प्रस्ताव भेजने का फरमान जारी कर दिया. सरकार और उससे जुड़े लोगों द्वारा मनोनीत सदस्य क्या राय देंगे, इसे समझना कतई मुश्किल नहीं है.
जब से मंत्रालय के फरमान की बात सामने आई है, तब से इस पर कोहराम मच गया है. लोगों को सबसे ज्यादा हैरत इस बात पर हो रही है कि अगर नाम बदलना ही था तो कोरोना की महामारी और लॉकडाउन की बंदिश खत्म होने और हालात सामान्य होने का इंतजार किया जा सकता था. ज्यदातर लोगों का यही सवाल है कि नाम बदलने के लिए आखिर इतना उतावलापन क्यों दिखाया जा रहा है.
इलाहाबाद युनिवर्सिटी तकरीबन 135 साल पुरानी है. संयोग से इलाहाबाद के साथ उस वक्त जिन तीन अन्य शहरों मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई में युनिवर्सिटी स्थापित की गई थी, उन सभी शहरों का नाम कई दशक पहले ही बदल चुका है. हालांकि, शहर के नाम बदले जाने के बावजूद वहां की युनिवर्सिटीज पुराने नाम पर ही चल रही हैं.
युनिवर्सिटी के तमाम छात्र और टीचर्स इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं। नौकरी से बंधा होने की वजह से टीचर्स तो मुंह नहीं खोल रहे हैं, लेकिन विपक्षी पार्टियों ने तो इस मुद्दे पर अपने तेवर साफ कर दिए हैं. समाजवादी पार्टी के एमएलसी वासुदेव यादव ने इस मामले में राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर उनसे दखल देने की मांग की है तो इसी शहर से चार बार विधायक रह चुके कांग्रेस पार्टी के नेता अनुग्रह नारायण सिंह ने बीजेपी और उसकी सरकार पर सियासी तीर चलाते हुए केंद्र में सरकार बदलने पर युनिवर्सिटी का नाम फिर से इलाहाबाद करने की बात कही है. युनिवर्सिटी के पीआरओ डा शैलेन्द्र मिश्र का कहना है कि इस मामले में युनिवर्सिटी सिर्फ मंत्रालय के निर्देशों का ही पालन कर रही है और नाम बदलने के मामले में आखिरी फैसला भी उसी का होगा.