Moradabad 1980 Riot: योगी सरकार के फैसले पर दो खेमों में बंटी सपा, जानिए इन सांसदों की क्या है राय
Moradabad Riot Report: योगी सरकार के फैसले पर समाजवादी पार्टी एकमत नहीं है. मामला मुरादाबाद 1980 दंगे की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का है. दो सांसदों ने अलग- अलग राय दी है.
UP News: मुरादाबाद 1980 दंगे की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के फैसले पर राजनीति तेज हो गई है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के फैसले ने समाजवादी पार्टी को दो खेमों में बांट दिया है. मुरादाबाद से सपा सांसद डॉक्टर एसटी हसन (Dr ST Hasan) रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के फैसले को सही ठहरा रहे हैं. वहीं संभल से सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ( Shafiq Ur Rahman Barq) रिपोर्ट को सामने लाए जाने का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने मुरादाबाद दंगे के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराते हुए रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मंशा 2024 का चुनाव बताया है. उनका कहना है कि बीजेपी का हिंदू मुस्लिम नफरत फैलाने वाला एजेंडा है. योगी सरकार के फैसले से मुरादाबाद में पीड़ित परिवारों को इंसाफ की उम्मीद जगी है.
सपा के दो सांसद नहीं हैं एकमत
मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को 60 से 70 हजार मुसलमान ईदगाह में ईद उल फितर की नमाज पढ़ रहे थे. नमाजियों की इमामत तत्कालीन शहर इमाम सैय्यद कमाल फहीम कर रहे थे. अचानक नमाजियों के बीच कीचड़ से सना एक सूअर आ घुसा. सुअर की वजह से नमाजियों में अफरातफरी फैल गई. नमाजियों ने पुलिस प्रशासन की व्यवस्था पर नाराजगी जताई. बात इतनी बढ़ी की पुलिस को गोली चलानी पड़ी और ईदगाह के मैदान में नमाजियों की लाशें बिछ गईं. विरोध में आक्रोशित भीड़ ने गलशहीद पुलिस चौकी को आग लगा दी. देखते-देखते दंगा भड़क गया.
सैकड़ों की दंगे में मौत हुई और हालात बेकाबू हो गए. दंगे में एक पीसीएस अधिकरी सहित कई पुलिस वालों की भी जान गई. दंगे की वजह से तीन महीने तक मुरादाबाद में कर्फ्यू लगा रहा. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मुरादाबाद पहुंचकर लोगों से शांति बनाने की अपील की. हालात पर काबू पाने के लिए बीएसएफ को मुरादाबाद की सड़कों पर उतारा गया. बड़ी मुश्किल से मुरादाबाद के हालात सामान्य हो पाए थे.
सरकार के फैसले पर बंटी राय
घटना का शिकार होनेवाले पीड़ित परिवारों के जख्म आज भी हरे हैं. चश्मदीद घटना को याद कर भावुक हो जाते हैं और जलियांवाला बाग नरसंहार से तुलना करते हैं. मुरादाबाद दंगे की सैकड़ों दर्द भरी कहानियां हैं. चश्मदीदों को आज भी 13 अगस्त की घटना अच्छी तरह याद है. अपनों को खोने का दर्द पीड़ित परिवार अब तक भूले नहीं हैं. 43 साल बाद अब योगी सरकार सक्सेना आयोग की जांच रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखने जा रही है.
सूत्रों के मुताबिक सक्सेना रिपोर्ट में मुस्लिम लीग के नेता डॉ शमीम को घटना का जिम्मेदार बताया गया है. हालांकि पीड़ित परिजन और चश्मदीद पत्रकार एकजुट होकर डॉ शमीम को घटना के लिए जिम्मेदार बताना गलत मानते हैं. ईद के दिन की घटना से पहले रमजान में दो पक्ष आमने सामने हो गए थे. कारण बारात के बैंड बाजे का विवाद बताया गया. बाल्मीकि और मुसलमान समुदाय आमने सामने आ गए. घटना से दोनों समुदायों में नफरत का माहौल शुरू हुआ और फिर ईद की नमाज में जानवर के घुस आने से हंगामा हो गया.
पुलिस ने सीधे गोलियां चला दी. पीड़ितों के मुताबिक पीएसी ने मुसलमानों पर बहुत जुल्म किया था. सरकार ने मुरादाबाद में 25 साल तक पीएसी की तैनाती पर रोक लगा दी. फिर बीएसएफ ने हालात को काबू में किया. अब दंगे की रिपोर्ट सार्वजनिक करने के फैसले को लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.
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