उत्तराखंड: कभी सीमा पर सेना की 'आंख-कान' था गुरिल्ला संगठन, आज रोजगार के लिए भटकने पर मजबूर
उत्तराखंड के सीमावर्ती इलाकों में कभी सेना के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला गुरिल्ला संगठन के लोग आज रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं.
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देहरादून. भारतीय सीमावर्ती इलाकों में कभी एसएसबी के वॉलंटियर बनकर तो कभी सेना के खुफिया गुप्तचर बनकर रेकी करने वाले एसएसबी गुरिल्ला संगठन के लोग रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं. प्रशासन की बेरुखी झेल रहा गुरिल्ला संगठन रोजगार के लिए विभागीय दफ्तरों के चक्कर काट रहा है.
पुरुषों के साथ महिलाओं को भी मिली ट्रेनिंग
संगठन से जुड़े लोग बताते हैं कि भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार को जब गुप्तचरों की कमी खली तो कई लोगों को गुप्तचर का प्रशिक्षण दिया गया. प्रशिक्षण के बाद इन्हें सीमावर्ती इलाको में होने वाली हर गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने का जिम्मा सौंपा गया. पुरुषों के साथ इस काम के लिए महिलाओं को भी ट्रेनिंग दी गई थी. महिलाएं घसेरी या पशु चरवाहा बनकर सीमा पर होने वाली गतिविधियों की जानकारी देती थी.
उस वक्त सरकार की तरफ से इन्हें मानदेय दिया जा रहा था, लेकिन साल 2002 के बाद सरकार ने गुरिल्ला संगठन की सुध लेना बंद कर दिया. हालांकि इसके बाद भी गुरिल्ला संगठन को प्रशिक्षण दिया जाता रहा, लेकिन अब प्रशिक्षण बंद करने के साथ ही साथ एसएसबी गुरिल्ला संगठन से जुड़े लोग बेरोजगार भी होते चले गये. अब प्रशिक्षत एसएसबी गुरिल्ला संगठन बेरोजगारी के दौर से गुजर रहा है.
वन विभाग कार्यालय पहुंचे लोग ये लोग लंबे समय से रोजगार और पेंशन दिए जाने की मांग कर रहे हैं. अपनी मांगों को लेकर इन्होंने प्रदेश में कई बार धरना भी दिया. रोजगार की उम्मीद लेकर शासन और प्रशासन दोनों के चक्कर काट रहे हैं. इसी सिलसिले में मंगलवार को ये लोग संगठन वन विभाग कार्यालय पहुंचे. डीएफओ ने इस विषय पर विचार विमर्श कर संगठन को भरोसा दिया है कि अपने स्तर से वे पूर्ण प्रयास करेंगे.
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