आगरा, एबीपी गंगा। संत परंपरा में राधा स्वामी मत अपना विशेष स्थान रखता है। आगरा के पन्नी गली में खत्री परिवार में जन्मे शिवदयाल सिंह ने इस राधा स्वामी मत की स्थापना की थी जो बाद में अपने भक्तों के बीच स्वामी जी महाराज के नाम से जाने गए। आगरा के स्वामीबाग में स्वामी जी महाराज की समाधि पर आज एक विशेष, भव्य और अलौकिक मंदिर बनकर तैयार हो गया है, इस मंदिर की नींव 1903 में डाली गई थी, हम आपको इस मंदिर की खूबसूरती के साथ साथ इस मंदिर के आध्यत्मिक और धार्मिक रूप के बारे में बताएंगे।


आगरा के स्वामीबाग स्थित सफेद संगमरमर से बना राधास्वामी मंदिर आज लाखों करोड़ों श्रद्धालओं की आस्था को बहुत बड़ा केंद्र बना हुआ है। बताया जाता है साल 1903 में इस मंदिर की आधार शिला रखी गयी थी और आज भी 100 साल बीत जाने के बाद आज भी लगातार इसका निर्माण कार्य हो रहा है।



161 फीट ऊंचे राधास्वामी मंदिर पर 31 फीट ऊंचे कलश की स्थापना की गई है जिस पर करीब 17 किलोग्राम सोने की परत चढ़ाई गयी है।

कहा जाता है कि जब स्वामी जी महाराज के भक्तों की संख्या बढ़ने लगी और उनका पन्नी गली स्थित घर छोटा पड़ने लगा तो उन्होंने अपने आश्रम के लिए एक जगह तलाशना शुरू कर दिया। वसंत पंचमी के दिन साल 1861 में स्वामी जी महाराज ने अपने राधास्वामी मत को शुरू किया और देखते ही देखते जब उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी तो उन्होंने एक मल्लाह से जगह खरीदकर स्वामीबाग आश्रम की स्थापना की जो आज के समय में राधास्वामी मत से जुड़े लोगों का सबसे बड़ा भक्ति का केंद्र है।



15 जून साल 1878 में स्वामी जी महाराज परलोक गमन हुए तो उनके द्वितीय सन्त हुजूर महाराज ने पवित्र रज को प्रतिष्ठापित किया और उनकी स्वामीबाग में ही समाधि बनाई, जहां स्वामी बाग में उन्होंने अंतिम समय बिताया और जहां वह अपने अनुयायियों के साथ सत्संग किया करते थे। साल 1879 में स्वामीबाग में समाधि का निर्माण किया गया जो लाल पत्थरों से बनी हुई थी।


लेकिन बाद में जो स्वामी जी महाराज की समाधि के ऊपर जो निर्माणाधीन भव्य मंदिर देख रहे हैं। उसको राधास्वामी मत के तीसरे संत सतगुरु महाराज साहब के आदेश से बनाया किया जा रहा है। क्योंकि उनका विचार था कि इस मत का भविष्य में बहुत अधिक विस्तार होने वाला है। ताकि ये जगह उनके माकूल श्रद्धांजलि का केंद्र बने और यहां सत्संगियों के मिलने और अभ्यास का केंद्र बने।



उसके बाद साल 1879 में बनी समाधि को गिराकर आज जो भव्य रूप दुनिया देख रही है उसकी कल्पना की गई। वर्तमान समाधि की रूपरेखा महाराज साहब के निर्देश पर इटैलियन फर्म फ्रिजोनि ने डिजायन की, और इसमें कुछ संशोधन लाला तोताराम ने किये। और आज इस मंदिर का भव्य रूप दुनिया के सामने है।


इस मंदिर में भारत की धरोहर नक्काशी, पच्चीकारी का अद्भुत कला नजर आती है, जो यहां आने वाला कोई भी व्यक्ति यहां आता है, तो इसकी तारीफ करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं। राधास्वामी मंदिर में भारत के विभिन्न प्रान्तों और धर्मों के समृध्द सांस्कृतिक विचारों का समावेश बड़ी खूबसूरत तरीके से किया गया है।


161 फीट ऊंचे मंदिर और उस पर लगे 31 फीट ऊंचे कलश को बाहर से देखने पर गगनचुम्भी किसी इमारत का अहसास होता है। भूमि तल पर सत्संग हाल का निर्माण किया गया है जो 68 गुना 68 फीट का है। मंदिर की दीवारों पर संत सतगुरुओं की वाणी तराशी गयी है। स्तम्भों पर गुरु के वचन तराशे गए हैं। फूल पत्तियों की नक्काशी बता रही है कि इस मंदिर के जरिए पर्यवारण के प्रति प्रेम को भी ज़ाहिर किया गया है।


दीवारों पर राधास्वामी नाम कई भारतीय भाषाओं में तराशे गए हैं। हाल के केंद्र में स्वामीजी महाराज और उनकी धर्मपत्नी राधा जी महाराज की पवित्र चैतन्य रज स्थापित की गई है। तल के चारों ओर बरामदा है और 52 कुओं पर इस विशालकाय खूबसूरत मंदिर की आधारशिला रखी गयी है। मंदिर के चारों तरफ 20 फुट चौड़ी नहर भी बनाई गई है जिसमें फव्वारे लगे हुए हैं। पूर्व दिशा में स्वामी जी महाराज का पवित्र कुआं है जो बहुत खूबसूरती से मंदिर से ही जोड़ लिया गया है। मंदिर के बारे में कहा जाता था कि इसे श्राप है कि ये कभी पूरा नहीं होगा लेकिन ये मंदिर का निर्माण कार्य पूर्णता की ओर है। मंदिर प्रशासन के हिसाब से 1903 से शुरू हुए इस मंदिर के पूरी तरह पूर्ण होने में अभी 6 से 7 साल और लग सकते हैं।