13 मई को कर्नाटक के विधानसभा चुनाव और यूपी के नगर निकाय चुनाव का परिणाम आया. इन परिणामों में जहां एक तरफ एकमात्र दक्षिण राज्य में सत्ता में रही बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा तो वहीं दूसरी तरफ यूपी नगर निकाय चुनाव में इसी पार्टी यानी बीजेपी को भारी सफलता मिली है. 


बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के सभी 17 नगर निगमों के मेयर पदों पर अपना कब्जा जमा लिया है और इस जीत ने उत्तर प्रदेश और पार्टी के अंदर योगी आदित्यनाथ का कद और भी  बढ़ा दिया है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ये पहला ऐसा चुनाव है जहां योगी आदित्यनाथ अपने बूते पर प्रचार कर रहे थे. 


एक तरफ जहां कर्नाटक विधानसभा प्रचार के दौरान बीजेपी की पूरी केन्द्रीय टीम पूरी ताकत से लोगों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने में लगी थी. उसी वक्त सीएम योगी आदित्य ने सूबे में खुद चुनाव प्रचार की कमान थाम ली थी और  ट्रिपल इंजन की सरकार बनाने के लिए मैदान में थे. 


उत्तर प्रदेश के सभी 17 मेयर पदों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा होना भगवा आंधी की तरह देखा जा रहा है. दरअसल उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों को बीजेपी का परंपरागत वोटर कहा जाता है. वहीं इस चुनाव के परिणाम को प्रदेश में योगी सरकार के एक साल के कार्यकाल के रिपोर्ट कार्ड पर जनता की मुहर भी माना जा रहा है.


ऐसे में सवाल उठता है कि कर्नाटक में बीजेपी, मोदी-शाह की असफलता के बीच यूपी में योगी आदित्यनाथ के भगवा परचम के क्या मायने हैं, क्या इस जीत के बाद योगी आदित्यनाथ का बीजेपी कद बढ़ गया? 


जनता ने आखिर क्यों दिया योगी का साथ, 3 कारण 


माफिया की छुट्टी- अतीक अहमद की हत्या और मुख्तार अंसारी की संपत्ति जब्त करने के कारण निकाय चुनाव से पहले बीजेपी के पक्ष में बड़ी लहर बनी. दरअसल योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में हमेशा से ही माफिया राज पर अंकुश लगाने का काम किया है. 


जहां कभी मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद के आतंक से जनता परेशान रहती थी वहीं योगी प्रशासन ने न सिर्फ 2 महीने के अंदर अतीक का साम्राज्य ध्वस्त कर दिया. बल्कि कई दशक से चल रहे मामलों में मुख्तार को 10 साल की सजा सुनाई गई और उसकी संपत्तियों को जब्त करने का काम भी किया गया. नगर निकाय चुनाव से पहले योगी सरकार का ये कदम जनता में लोकप्रिय बनकर उभरा है. 


6 साल के दौरान यूपी में हुए जमकर विकास- उत्तर प्रदेश में पिछले 6 साल से योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यभार संभाल रहे हैं. इन 6 सालों में राज्य में कई बड़े प्रोजेक्ट्स की शुरुआत हुई है. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने दिल्ली से मेरठ तक रैपिड मेट्रो ट्रेन, कानपुर में मेट्रो ट्रेन, गोरखपुर समेत कई महानगरों में मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट की नींव रखकर लोगों को भरोसा दिलाया है कि वह न सिर्फ विकास की बातें करते है बल्कि कार्य भी कर के दिखाती है. 


योगी आदित्यनाथ के इन प्रोजेक्ट्स के कारण पहली बार यूपी में आयोजित इन्वेस्टर्स समिट से निवेशकों का आगमन हुआ है, जिससे राज्य का बेरोजगारी दर भी कम होगा. योगी सरकार के ये प्रोडक्ट और विकास कार्य विपक्षी दलों की आलोचनाओं पर भारी पड़ गए, जिनके दम पर वे राज्य सरकार को घेरते रहे हैं.


योगी की हाजिर जबाबी- चुनाव प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ के भाषण और हाजिर जवाबी का भी फायदा पार्टी को होती रही है. योगी विपक्ष के किसी भी आरोप या आलोचनाओं का पलटवार उसी के अंदाज में देने के कारण हमेशा चर्चित में रहे हैं. 


उदाहरण के तौर पर इसी साल बजट सत्र ही याद कर लीजिए. उस दौरान समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की ने सीएम ने विधानसभा में जिस अंदाज में खिंचाई की थी, उसके वीडियो जमकर वायरल हुआ था. निकाय चुनाव प्रचार के दौरान भी योगी आदित्यनाथ ने कई दफा संबोधन में ऐसे चुटीले अंदाज में विपक्ष के आरोपों का जवाब दिया है, जिस पर न सिर्फ जमकर तालियां बजती नजर आईं बल्कि वह सोशल मीडिया पर भी छाया रहा. 


नगर निगम चुनाव के प्रदर्शन के बाद योगी का कद कैसे और बढ़ा


साल 2017 में जब से योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम का पद संभाल रहे हैं तब से ही राज्य का विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री  मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था. साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी की जीत का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही दिया गया था. 


विधानसभा चुनाव के ठीक कुछ महीनों बाद राज्य में निकाय चुनाव हुआ और वहां भी पार्टी की जीत हुई, लेकिन इस चुनाव में भी श्रेय नरेंद्र मोदी और बीजेपी को ही मिला था. 


लेकिन साल 2023 के हुए नगर निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत हुई और इस बार इस चुनाव प्रचार का नेतृत्व पीएम मोदी बल्कि योगी कर रहे थे. और ऐसे में पार्टी की जीत का कारण योगी सरकार की प्रशासनिक क्षमता और दक्षता को बताया जा रहा है.


बड़ी ताकत बनकर कैसे उभरे योगी


साल 2017 में हुए 16 नगर निगम के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 14 सीटें अपने नाम की थी और बीएसपी 2  पर चुनाव जीती थी. हालांकि साल 2023 में नगर निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 17 सीटों पर बड़ी जीत हासिल कर ली है. योगी सरकार के मजबूत फैसलों को उनकी जनता पसंद करती है. यही कारण है कि राज्य में माफियाओं के खिलाफ लिया गया एक्शन अतीक अशरफ समेत उसके गुर्गों के खिलाफ कार्रवाई ने योगी की लोकप्रियता में चार चांद लगा दी है.


नगर निकाय चुनाव में योगी का प्रचार 


नगर निकाय चुनाव प्रचार के दौरान सीएम योगी ने कुल 50 से ज्यादा सभाएं की. जबकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 9 जनसभाओं को संबोधित किया और बहुजन समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मायावती पूरे प्रचार के दौरान क्षेत्र से दूर रहीं हैं. लोगों को  योगी आदित्यनाथ का जनता तक पहुंचने की ये कोशिश भी खूब भाया. वो


योगी आदित्यनाथ ने प्रचार दौरान उन वादों को पूरा करने की तरफ लोगों का ध्यान खींचा जिसे उन्होंने विधानसभा चुनाव प्रचार के वक्त किया था. अब नतीजों से तो जाहिर है योगी जनता का भरोसा जीतने में कामयाब हुए हैं. 


योगी ने 2024 लोकसभा चुनाव की जमीन की तैयार


यूपी निकाय चुनाव की घोषणा के साथ ही इस चुनाव को साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा था. यही कारण रहा कि योगी ने प्रचार के दौरान अपनी पूरी ताकत झोंक दी. तारीखों के ऐलान के साथ ही बीजेपी राज्य के सभी 17 मेयर सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ी और जो नतीजे आए उससे यह साबित हो गया कि योगी आदित्यनाथ का सीएम के तौर पर काम करने का तरीका यूपी की जनता को पसंद आ रहा है. इस तरह की जीत किसी भी पार्टी को तभी मिलती है, जब सभी जाति-धर्म के लोग वोट करते हैं.


हिंदू+पसमांदा मुसलमान समीकरण बनाने में कामयाब हुई बीजेपी 


राज्य के 17 मेयर सीटें जीतने के बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय जनता पार्टी का पसमांदा मुसलमानों को अपनी तरफ करने का सबसे बड़ा प्रयोग सफल रहा. बीजेपी ने निकाय चुनावों में कुल 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. जिसमें से 90 फीसदी से ज्यादा पसमांदा मुस्लिम थे.


भारतीय जनता पार्टी पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेल रही थे. ऐसे में बीजेपी ने निकाय चुनाव के परिणाम में बेहतर प्रदर्शन करके ये साबित कर दिया है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में एक नया सामाजिक समीकरण बनेगा और बीजेपी को पसमांदा मुस्लिमों का साथ मिलेगा. 


कर्नाटक में क्यों फ्लॉप हो गई बीजेपी 


कर्नाटक में 10 मई एक चरण में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हुई और 13 मई को नतीजे जारी किए गए. 224 विधानसभा सीटों पर 72.82 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले थे. कर्नाटक में किसी भी पार्टी को सरकार बनाने के लिए 113 सीटों की जादुई आंकड़े की जरूरत होती है. कांग्रेस ने जहां बहुमत के आंकड़े को पार करते हुए 135 सीटों पर जीत हासिल की है तो वहीं बीजेपी को महज 66 सीटों से पराजय का सामना करना पड़ा. जबकि किंगमेकर कहे जाने वाले देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस को सिर्फ 19 सीटों से काम चलाना पड़ेगा. 


इस राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान पूरे सात दिनों में 17 रैलियां की और पांच रोड शो में भी शामिल हुए. बीजेपी चाहती थी कि कर्नाटक में उनकी पार्टी की जीत हो ताकि वह आने वाले चुनावों में इस जीत को प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल कर सके. 


हालांकि बीजेपी का ये प्रचार कुछ खास असर नहीं कर पाया. बीजेपी चुनावी जीत के लिए पीएम मोदी पर निर्भर हो गई. कर्नाटक चुनाव के परिणाम ने यह साबित कर दिया है कि बार-बार पीएम मोदी पर ही चुनावी जीत के लिए निर्भर रहना बीजेपी के लिए घातक हो सकता है.