सोनभद्र: जंगल, जंगल के बीच गांव चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. इस गांव का 14 साल का 8वीं मे पढ़ने वाले छात्र ने लॉकडाउन में बिगड़ रहे बच्चों को पढ़ाने का मन बनाया. छात्र अमित ने गांव के छोटे छोटे बच्चों को अपने घर पर इकठ्ठा किया और शुरू कर दी पढाई. आदिवासी क्षेत्र में महत्वपूर्ण कामों की कमी है. यकीन है कि बच्चे बहुत रचनात्मक होते हैं और अपने लिए कुछ न कुछ काम तो बना ही लेते हैं. मऊकलां गांव में 8वीं में पढ़ने वाले आदिवासी छात्र अमित धांगर ने कुछ अलग करने का संकल्प लिया.
मकान की छत पर पढ़ाते हैं
जंगल के बीच में बसे गांव के बच्चों को हमेशा जंगली जानवरों का खतरा रहता है. इसलिए 8वीं के छात्र अमित गांव में पिता को मिले आवास की छत पर बच्चों को पढाता है, ताकि पढाई के दौरान कोई जंगली जानवर ना आ जाये. लकड़ी की सीढ़ी से चढ़ते छोटे छोटे बच्चे जंगली जानवरों से बचते पढाई के लिए छोटे से मकान के छत पर जाकर पढाई कर रहे हैं. बिना बाउन्ड्री की छत के ऊपर पढ़ रहे छात्र सुबह 9 बजे से 11 बजे तक पढाई करते हैं, तो वहीं शाम के तीन बजे से 5 बजे तक पढ़ाई करते हैं.
रंग ला रही है अमित की मेहनत
आदिवासी गांव मऊकलां में समुदाय के पास अपने परंपरागत काम महुआ की शराब बनाना या मजदूरी करना है. इन इलाकों के बच्चे भी किसी वयस्क की तरह ही काम करते हैं. आदिवासी इन कामों को नियमित रूप से करते हैं, और उन कामों को उनके बच्चे भी सीखते हैं. इस समय भी ज़्यादातर आदिवासी बाहुल्य गांवों में बच्चे अनेक कामों में व्यस्त हैं. लॉकडाउन में बच्चों के स्कूल बन्द होने से उनके पास घरेलू काम के आलावा कोई काम नहीं था. बच्चे गांव में गाली गलौज, खेलकूद में लग गए. जिससे गांव के आदिवासी बच्चों का जीवन बिगड़ने लगा. ऐसे में बच्चों को ना बिगड़ने, व उनको शिक्षित करने का बीड़ा उठाया 8वीं में पढ़ने वाले छात्र अमित ने. उसने अपनी शिक्षा के साथ छोटे छोटे बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाये रखी. आज आदिवासी छोटे छोटे बच्चे अपनी आदिवासी भाषा के अलवा कड़वा बोली, हिन्दी के अलवा अंग्रेजी बोल रहे हैं.
कोरोना महामारी के चलते बच्चों की शिक्षा को लेकर बहुत चिंतित होंगे. भारत में लगभग 25 करोड़ बच्चे पहली से 12वीं तक 15.5 लाख स्कूलों में पढ़ते हैं. इनमें 70 फीसदी स्कूल सरकारी हैं. विश्व भर में कोविड-19 से बचाव के लिए लोगों के किसी भी जगह इकठ्ठा होने पर पाबंदी लगा दी गयी.
लॉकडाउन से पढ़ा रहे हैं अमित
अमित ने बताया कि, कोरोना लॉकडाउन से हम पढ़ा रहे हैं. अब इंटरनेट का जमाना है, लेकिन हम भी नहीं पढ़ पा रहे थे. हम भी और कमजोर होते जा रहे थे. बच्चे भी नहीं पढ़ पा रहे हैं, कमजोर हो जाएंगे और हमारा गांव बिगड़ता जा रहा था. इस गांव के बच्चे बहुत ज्यादा गाली गलौज करते हैं. इधर गांव में गाली गलौज बहुत ज्यादा होता है. हम पढ़ाएंगे तो हम भी अच्छे रहेंगे. ज्ञान देने से बढ़ता है और हमारा भी ज्ञान बढ़ेगा. गांव में बच्चों के बीच गाली गलौज कम हो गया है. हमें इज्जत भी मिलने लगी है. हम पढ़ाने लगे तो हमें खुशी मिलने लगी.
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