देहरादून, रवि कैंतुरा। उत्तराखंड में लॉकडाउन के दौरान सुसाइड के मामले बढ़े हैं। पुलिस का मानना है कि मौजूदा दौर में नकारात्मक मनोदशा भी इसका कारण है। साथ ही जहां पुलिस ऐसे मामलों पर गहनता से तहक़िक़ात कर रही है। वहीं जानकारों का कहना है कि लॉकडाउन में लोगों की ज़िंदगी एकदम से बदल गई है, लोग घरों में क़ैद हो गये हैं। साथ ही डिप्रेशन, चिंता और घरेलू झगड़े सुसाइड के कारण बने हैं।
ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में पहले कभी सुसाइड ना हुए हों लेकिन अगर हम लॉकडाउन के दौरान इन मामलों पर ग़ौर करें तो ये मामले पहले की अपेक्षा ज़्यादा बढ़े हैं। लॉकडाउन में 22 मार्च से 22 अप्रैल तक एक महीने के दौरान राज्य में 20 सुसाइड हुए। वहीं 23 अप्रैल से 11 मई तक 18 दिनों के भीतर संख्या 25 पहुंच गई। वहीं लॉकडाउन से पहले उत्तराखंड में जनवरी महीने में केवल 12 सुसाइड हुए। यानी कि क़रीब 13 फीसदी सुसाइड मामलों में लॉकडाउन के दौरान बढ़ोतरी हुई।
मनोचिकित्सक मुकुल शर्मा का मानना है कि लॉकडाउन से पहले सामान्य जीवन था लेकिन लॉकडाउन होने के बाद से लोग एक तरह से घरों में क़ैद हो गये। इसके साथ ही डिप्रेशन, चिंताएं और घरेलू झगड़े भी बढ़े हैं। एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ सिर्फ 50 फीसदी लोगों को ही सही उपचार और दवा मिल पाई। मनोचिकित्सक मानते हैं कि डिप्रेशन में दवाइयां ना मिलने से हिंसा की प्रवृति बढ़ती है और जीवन का महत्व ऐसे लोगों के लिए समाप्त हो जाता है।
वहीं देहरादून के डीआईजी अरुण मोहन जोशी का कहना है कि लॉकडाउन होने से लोगों में नेगेटिविटि बढ़ी है, ऐसे मामलों के पीछे और क्या वजह हो सकती है, उनपर भी काम किया जा रहा है। साथ ही सुसाइड के मामलों पर गहनता से जांच की जा रही है।
लॉकडाउन में सामान्य ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गई है। ऐसे में लोग ना तो किसी से मिल पा रहे हैं और ना ही अपना दुख-दर्द अपनों के साथ शेयर कर पा रहे हैं। कोरोना को रोकने के लिए जहां लॉकडाउन ज़रूरी है वहीं लोगों को भी देश हित में लॉकडाउन के साथ अपना ख़्याल रखना भी।