UP News: पूर्व सांसद चौधरी सुखराम सिंह यादव (Sukhram Singh Yadav) 25 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की जनसभा के बीच बीजेपी (BJP) का दामन थाम सकते हैं. इस दिन उनके पिता चौधरी हरमोहन सिंह यादव (Harmohan Singh Yadav) की पुण्यतिथि है. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री हैं. पीएमओ कार्यक्रम की बाबत विवरण ले चुका है. हालांकि संभावना यह भी है कि 25 को नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के चलते वह वर्चुअल संबोधन कर सकते हैं.
 
यादव के गढ़ को तोड़ने की कोशिश
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी अभी से इलेक्शन मोड पर है. यूपी में नौ फीसदी यादव वोट हैं, जिसे सपा का वोट बैंक माना जाता है. हरमोहन परिवार का अखिलेश यादव के कारण सपा से मोह भंग हो चुका है. पीएम मोदी का कार्यक्रम मिलते ही सुखराम सीधे लखनऊ शिवपाल यादव से मिलने गए. वहां से दोनों पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव से आशीर्वाद लेने पहुंचे. बीजेपी अबकी सपा की भी हालत कांग्रेस और बसपा की तरह करने को प्रयासरत है.  


पीएम मोदी का कानपुर आगमन इसी रणनीति की कड़ी बताया जाता है. यादवों का एक धड़ा कानपुर के चौधरी हरमोहन सिंह यादव के परिवार की अगुवायी में बीजेपी से हाथ मिलाएगा. शुरुआत चौधरी हरमोहन के पौत्र मोहित यादव के बीजेपी ज्वाइन करने के साथ ही हो चुकी है. प्रदेश में यादवों की दो उपजातियां कमरिया और घोसी हैं. मुलायम कमरिया जबकि हरमोहन घोसी है. 


ये है आंकड़ा
घोसी वर्ग के लोगों को टीस है कि समाजवादी पार्टी के शासनकाल में उन्हें बहुत कुछ नहीं मिला जबकि मुलायम सिंह यादव को राजनीति में स्थापित करने में इस धड़े की बड़ी भूमिका रही है. एक अनुमान के मुताबिक करीब 75 फीसदी घोसी तो 25 फीसदी के करीब कमरिया यादव है. मोहित यादव कहते हैं कि सपा के शासनकाल में तीन चौथाई से अधिक कमरिया यादवों की भर्ती हुई. बीजेपी शासनकाल में भर्ती पाए यादवों का यह आंकड़ा उलट गया. नौकरियों में घोसी वर्ग की नियुक्तियां हुईं. 


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हो सकते हैं बीजेपी का चेहरा
घोसी यादव के नेता चौधरी स्व.रामगोपाल यादव (पूर्व सांसद) चौधरी स्व. हरमोहन सिंह यादव (पूर्व सांसद) मेहरबान सिंह का पुरवा (कानपुर) गांव के हैं. इनकी अगली पीढ़ी अभी भी गांव में ही रहती है. हरमोहन सिंह के पुत्र सुखराम और पौत्र मोहित घोसियों को बीजेपी की ओर एकजुट करने में लगे हैं. यूपी विधानसभा चुनाव में घोसियों के वोट बीजेपी में भी गए थे. बताते हैं कि यादव महासभा ने चौधरी हरमोहन की पहल पर मुलायम सिंह यादव को यादवों का सर्वमान्य नेता स्थापित करने के प्रस्ताव पर मुहर लगायी थी.


पहले यादव चौधरी चरण सिंह का वोट बैंक हुआ करता था. फिलहाल यूपी की पॉलिटिक्स में यादवों की पहचान सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार से ही है. यही मिथक तोड़ने को मोदी का कानपुर दौरा प्रस्तावित है. सुखराम यादवों में बीजेपी का चेहरा हो सकते हैं.  


यादवों को बीजेपी में लाने का उठाया बीड़ा
सीएसडीएस के एक सर्वे के मुताबिक 2009 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 73% यादव समाजवादी पार्टी के साथ थे. जबकि 2014 के चुनाव तक इसमें बीजेपी सेंधमारी कर चुकी थी और यह घटकर सपा के पक्ष में सिर्फ 53% ही रह गया. बीजेपी को 27% यादवों के वोट हासिल हुए. जबकि 2009 में उसे इस जाति के सिर्फ छह फीसदी ही वोट मिले थे. कांग्रेस ने जहां 2009 में 11 फीसदी यादवों का समर्थन हासिल किया था. वहीं 2014 में वह और कम होकर सिर्फ आठ फीसदी ही रह गया. 


सर्वे का दिलचस्प पहलू ये है कि पिछले दो चुनावों में बसपा के पक्ष में पांच फीसदी से अधिक यादव नहीं आए. बात 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव की करें तो कांग्रेस को इस जाति के सिर्फ चार-चार परसेंट वोट मिले. सपा को 2007 में 72% जबकि 2012 में घटकर सिर्फ 66% यादवों का मत हासिल हुआ. बीजेपी लगातार इस जाति में पैठ बनाने की कोशिश करती नजर आ रही है. चौधरी परिवार की सपा से बगावत और वर्ग फैक्टर बीजेपी को मजबूती दे सकता है.


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